ऑथर Asmita Patel

इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा बयान : फर्जी दस्तावेज से होने वाली शादियां देती हैं अपराध को जन्म, अब पुलिस को लेना होगा एक्शन

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Nov 04, 2024 10:21

शादियां मानव तस्करी, यौन शोषण और जबरन श्रम को जन्म दे रही हैं। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की अदालत ने इस संदर्भ में कई जिलों के पुलिस अधिकारियों को फर्जी दस्तावेज...

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जिसमें कहा गया है कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर होने वाली शादियां मानव तस्करी, यौन शोषण और जबरन श्रम को जन्म दे रही हैं। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की अदालत ने इस संदर्भ में कई जिलों के पुलिस अधिकारियों को फर्जी दस्तावेज तैयार करने वालों के खिलाफ विस्तृत जांच करने और एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। 

जानिए पूरा मामला
यह आदेश उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया गया। जिनमें फिरोजाबाद, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मैनपुरी और अलीगढ़ के जोड़ों ने सुरक्षा की गुहार लगाई थी। इन जोड़ों ने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की थी और उनके खिलाफ उत्पीड़न की आशंका थी। कोर्ट ने सभी संबंधित जिलों के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया कि वे सभी जोड़ों को फर्जी दस्तावेज मुहैया कराने वाले व्यक्तियों की विस्तृत जांच करें और अगली सुनवाई की तारीख पर रिपोर्ट पेश करें।

दस्तावेजों की सत्यता पर सवाल
कोर्ट ने पहले ही सरकार से याचियों के दस्तावेजों के सत्यापन की रिपोर्ट मांगी थी। सुनवाई के दौरान प्रस्तुत रिपोर्ट में पाया गया कि याचिका के साथ संलग्न विवाह प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, अंकपत्र और आयु प्रमाणपत्र फर्जी थे। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि कई मामलों में लड़कियों की उम्र 12 से 14 वर्ष बताई गई है, जो कि गंभीर चिंता का विषय है।

दलालों का संगठित गिरोह
कोर्ट ने यह भी चिंता जताई कि धार्मिक ट्रस्टों के नाम पर जिला अदालतों के इर्द-गिर्द दलालों का एक संगठित गिरोह सक्रिय है, जिसमें पुरोहितों और कानूनी पेशेवरों का समावेश है। ये लोग फर्जी दस्तावेज तैयार कर युवाओं को गलत तरीके से विवाह करने में सहायता कर रहे हैं। 

आम जनता पर पड़ेगा गहरा असर
स्थानीय पुलिस भी ऐसे गिरोहों को पकड़ने और फर्जी विवाह प्रमाणपत्रों के स्रोत का पता लगाने में असफल रही है। इसके परिणामस्वरूप, कई जोड़े फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अदालत से सुरक्षा आदेश प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे संगठित अपराध न केवल समाज के लिए हानिकारक हैं, बल्कि युवाओं के भविष्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। अक्सर इस तरह के मामलों में बच्चे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात के शिकार हो जाते हैं।

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