इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोपी में बरी व्यक्ति को अपर जिला जज बनाने का निर्देश

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Dec 14, 2024 19:45

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में एक व्यक्ति को जासूसी के आरोप से बरी करने के बाद उसे अपर जिला जज के पद पर नियुक्त करने का राज्य सरकार को निर्देश दिया है...

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में एक व्यक्ति को जासूसी के आरोप से बरी करने के बाद उसे अपर जिला जज के पद पर नियुक्त करने का राज्य सरकार को निर्देश दिया है। यह व्यक्ति पाकिस्तान के लिए जासूसी करने और राजद्रोह के आरोप में पहले गिरफ्तार हुआ था, लेकिन निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया था। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता को अपर जिला जज (उच्च न्यायिक सेवा काडर के तहत) के पद पर नियुक्ति पत्र 15 जनवरी 2025 तक जारी किया जाए। इस व्यक्ति ने 2017 में उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा को सफलतापूर्वक पास किया था।

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया
प्रदीप कुमार नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डी. रमेश की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को दो आपराधिक मामलों में 'बाइज्जत बरी' कर दिया गया था और इन दोनों मामलों में आरोपों में कोई सत्यता नहीं पाई गई। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता का आचरण सत्यापन कराए और सभी औपचारिकताएं पूरी कर 15 जनवरी 2025 तक नियुक्ति पत्र जारी करे। याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा, 2016 के लिए आवेदन किया था, जिसमें उसने अपने खिलाफ चले दो मुकदमों (जासूसी और राजद्रोह) और उन मुकदमों में 6 मार्च 2014 को बरी किए जाने का उल्लेख किया था। ये मुकदमे कोतवाली, कानपुर नगर में 2002 में दर्ज किए गए थे।



याचिकाकर्ता ने चयन प्रक्रिया में  लिया था भाग
याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा में भाग लिया और सफल घोषित किया गया। इसके बाद, 18 अगस्त 2017 को उच्च न्यायालय ने चयनित अभ्यर्थियों की सूची राज्य सरकार को भेजी और नियुक्ति की सिफारिश की। हालांकि, याचिकाकर्ता को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया। अदालत ने 6 दिसंबर के अपने आदेश में कहा, "इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता को जासूसी के गंभीर आरोप का सामना करना पड़ा और राज्य सरकार के लिए इस पर गंभीरता से विचार करना जरूरी था। लेकिन दूसरी ओर, इस आपराधिक मुकदमे में याचिकाकर्ता को 'बाइज्जत बरी' कर दिया गया, जहां आरोप में कोई सच्चाई नहीं पाई गई।"

याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं थे ठोस सबूत 
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी एजेंसी के लिए काम किया हो, यह निष्कर्ष निकालने के लिए राज्य सरकार के पास कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। वह खुफिया एजेंसियों के राडार पर था, इस बात का कोई मतलब नहीं है। यह बयान अदालत ने यह स्पष्ट करते हुए दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे, जो यह साबित कर सकें कि वह किसी विदेशी एजेंसी के लिए काम कर रहा था। प्रदीप कुमार और उनका परिवार कानपुर के मेस्टन रोड इलाके में रहते हैं।

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