इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला : 'बहू मायके में रहने पर भी ले सकती है खर्चा', गुजारा भत्ता के लिए ससुराल में रहना जरूरी नहीं 

UPT | Allahabad High Court

Sep 05, 2024 20:31

अंततः, हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि भूरी देवी अपने ससुर से भरण-पोषण की हकदार है और ससुराल छोड़कर माता-पिता के साथ रहने से उसका भरण-पोषण का दावा प्रभावित नहीं होता...

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि विधवा बहू को अपने ससुर से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए ससुराल में रहना आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का दावा करने के लिए यह कानून की कोई अनिवार्य शर्त नहीं है कि बहू को पहले अपने ससुराल में रहना स्वीकार करना होगा। विधवा महिलाओं का अपने माता-पिता के साथ रहना विभिन्न कारणों और परिस्थितियों के तहत सामान्य प्रथा है।

महिला द्वारा अपने माता-पिता के साथ रहने के निर्णय के कारण यह नहीं माना जा सकता कि उसने बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर को छोड़ा है, या यह कि उसके पास अपने दम पर जीवनयापन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। यह निर्णय जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ द्वारा सुनाया गया।



राजपति बनाम भूरी देवी मामला 
हाईकोर्ट ने राजपति बनाम भूरी देवी के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस मामले में, प्रतिवादी विधवा भूरी देवी के पति और अपीलकर्ता राजपति के बेटे की हत्या 1999 में हो गई थी, जिसके बाद भूरी देवी अविवाहित रही।

भूरी देवी ने आगरा के फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण के लिए मुकदमा दायर किया, जिसमें उसने बताया कि उसे अपने पति के नियोक्ता से केवल 80,000 रुपए का टर्मिनल बकाया मिला था। उसने ससुर की संपत्ति पर भी अपना हक जताया, जो उसके पति का हिस्सा था। इसके विपरीत, ससुर ने दावा किया कि भूरी देवी लाभकारी कार्यरत है और उसके खाते में 20,000 रुपए जमा किए गए हैं। उसने यह भी कहा कि भूरी देवी को मिले टर्मिनल बकाया में उसे कोई हिस्सा नहीं मिला।

भरण-पोषण देने का आदेश दिया
फैमिली कोर्ट ने इस दावे को खारिज करते हुए भूरी देवी को 20,000 रुपए का मुआवजा और प्रतिमाह 3,000 रुपए भरण-पोषण देने का आदेश दिया। ससुर ने इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने पाया कि ससुर ने भूरी देवी के टर्मिनल बकाया राशि के दुरुपयोग के कोई ठोस दस्तावेजी सबूत प्रस्तुत नहीं किए। सिर्फ मौखिक दावे किए गए थे। ससुर ने भूरी देवी के पुनर्विवाह और लाभकारी रोजगार के दावों को भी साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए। अंततः, हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि भूरी देवी अपने ससुर से भरण-पोषण की हकदार है और ससुराल छोड़कर माता-पिता के साथ रहने से उसका भरण-पोषण का दावा प्रभावित नहीं होता। 

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