महाकुंभ 2025 : संगम में महानिर्वाणी अखाड़े ने किया पहला शाही स्नान, साधु-संतों को देखने लिए श्रद्धालुओं का तांता

UPT | अखाड़ों के शाही स्नान के लिए जाते महानिर्वाणी और अटल के संत और नागा संन्यासी

Jan 14, 2025 11:11

महाकुंभ के दौरान मकर संक्रांति पर अखाड़ों के ‘शाही स्नान’ का विशेष महत्व है। इस अवसर पर, विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत पवित्र संगम में स्नान करेंगे।

Prayagraj News : प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का भव्य आरंभ 14 जनवरी को मकर संक्रांति के पावन अवसर पर हुआ। इस अद्वितीय आयोजन ने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था को नया आयाम दिया, बल्कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवंत रूप में प्रदर्शित किया। मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व है, जिसे नए जीवन, सकारात्मक ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। इस ऐतिहासिक अवसर पर महाकुंभ का पहला शाही स्नान हुआ, जिसने श्रद्धालुओं और साधु-संतों के बीच अपार भक्ति और उत्साह का माहौल बना दिया।

पहले शाही स्नान की शुरुआत: परंपराओं और आस्था का महोत्सव
महाकुंभ 2025 के दौरान मकर संक्रांति पर विभिन्न अखाड़ों ने पारंपरिक रूप से संगम में स्नान कर इस आध्यात्मिक आयोजन की शुरुआत की।  सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शम्भू पंचायती अटल अखाड़ा ने सुबह 5:15 बजे अपने शिविरों से प्रस्थान किया और 6:15 बजे पवित्र संगम पर पहुंचे और स्नान कर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया। इनके बाद श्री तपोनिधि पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा और श्री पंचायती अखाड़ा आनंद ने स्नान किया। इस क्रम में श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा और श्री पंचाग्नि अखाड़ा ने भी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाएंगे। हर अखाड़ा अपने निर्धारित समय पर संगम घाट पर पहुंच कर स्नान के बाद वापस अपने शिविरों में लौट जाएंगे। अखाड़ों के संतों के इस अमृत स्नान को देखने के लिए संगम पर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है।

संतों का भव्य स्वरूप और अनुष्ठान
शाही स्नान के दौरान संतों ने पारंपरिक वेशभूषा धारण की और अखाड़ों के ध्वज और प्रतीकों के साथ संगम घाट तक पहुंचे। नगा साधुओं की टोली, गाजे-बाजे और धार्मिक जयघोषों के साथ संगम तक पहुंची। पवित्र जल में डुबकी लगाकर संतों ने महाकुंभ के आध्यात्मिक महत्व को और बढ़ाया।

सभी अखाड़ों का स्नान कार्यक्रम:
सन्यासी अखाड़े:
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शम्भू पंचायती अटल अखाड़ा
प्रस्थान: सुबह 5:15 बजे
आगमन: सुबह 6:15 बजे
स्नान: 6:15 से 6:55 बजे तक
वापसी: 7:55 बजे

2. श्री तपोनिधि पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा और श्री पंचायती अखाड़ा आनंद
प्रस्थान: सुबह 6:05 बजे
आगमन: सुबह 7:05 बजे
स्नान: 7:05 से 7:45 बजे तक
वापसी: 8:45 बजे

3. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, श्री पंचाग्नि अखाड़ा
प्रस्थान: सुबह 7:00 बजे
आगमन: सुबह 8:00 बजे
स्नान: 8:00 से 8:40 बजे तक
वापसी: 9:45 बजे

बैरागी अखाड़े:
1. अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा
प्रस्थान: सुबह 9:40 बजे
आगमन: सुबह 10:40 बजे
स्नान: 10:40 से 11:10 बजे तक
वापसी: 12:10 बजे

2. अखिल भारतीय श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा
प्रस्थान: सुबह 10:20 बजे
आगमन: सुबह 11:20 बजे
स्नान: 11:20 से 12:10 बजे तक
वापसी: 1:10 बजे

3. अखिल भारतीय श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा
प्रस्थान: सुबह 11:20 बजे
आगमन: दोपहर 12:20 बजे
स्नान: 12:20 से 12:50 बजे तक
वापसी: 1:50 बजे

उदासीन अखाड़े:
1. श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा
प्रस्थान: दोपहर 12:15 बजे
आगमन: दोपहर 1:15 बजे
स्नान: 1:15 से 2:10 बजे तक
वापसी: 3:10 बजे

2. श्री पंचायती अखाड़ा वड़ा उदासीन निर्वाण
प्रस्थान: दोपहर 1:20 बजे
आगमन: 2:20 बजे
स्नान: 2:20 से 3:20 बजे तक
वापसी: 4:20 बजे

3. श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा
प्रस्थान: दोपहर 2:40 बजे
आगमन: 3:40 बजे
स्नान: 3:40 से 4:20 बजे तक
वापसी: 5:20 बजे

श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़
मकर संक्रांति के इस ऐतिहासिक आयोजन को देखने के लिए संगम पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। लाखों की संख्या में श्रद्धालु, संतों के स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के दर्शन के लिए पहुंचे। संगम में डुबकी लगाकर उन्होंने अपने जीवन में शांति, समृद्धि और पापों से मुक्ति की कामना की।

महाकुंभ 2025: आध्यात्मिकता और आस्था का प्रतीक
महाकुंभ 2025 के इस पहले शाही स्नान ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक एकता का संदेश दिया। इस ऐतिहासिक आयोजन ने श्रद्धालुओं को एक साथ जोड़ने और भक्ति की शक्ति का अनुभव कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आने वाले स्नान:
महाकुंभ के अन्य प्रमुख स्नान जैसे मौनी अमावस्या (29 जनवरी 2025) और बसंत पंचमी (12 फरवरी 2025) पर भी लाखों श्रद्धालुओं के संगम में डुबकी लगाने की संभावना है।
महाकुंभ 2025 का यह शुभारंभ न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और भक्ति के गहरे स्वरूप को दर्शाता है।

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