शिक्षा की सीढ़ी से ही तरक्की की ऊंचाइयों पर पहुंचा जा सकता है : पढ़िए स्वामी प्रसाद मौर्य ने और क्या कहा

UPT | मानिकपुर में चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की प्रतिमा का अनावरण करते अतिथि।

Oct 15, 2024 23:55

मानिकपुर में चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की प्रतिमा का अनावरण व विधायक निधि से नवनिर्मित कक्ष का उद्घाटन कर उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री व राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा

Pratapgarh News : प्रतापगढ़। स्वामी प्रसाद मौर्य ने शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा का पवित्र पावन मंदिर सभी धार्मिक मंदिरों से सर्वोपरि होता है। धार्मिक मंदिरों में अक्सर एक ही जाति, धर्म, या संप्रदाय के लोग जाते हैं, लेकिन शिक्षा के मंदिर में सभी जाति, भाषा, धर्म, और संप्रदाय के लोग एकजुट होकर मैत्री भाव से अध्ययन करते हैं। यह शिक्षा का मंदिर ही है जहां हमारे बौद्धिक विकास के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के नवनिर्माण में हमारा योगदान सुनिश्चित होता है।

चंद्रगुप्त मौर्य इंटरमीडिएट कॉलेज, मानिकपुर में चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की प्रतिमा का अनावरण और विधायक निधि से नवनिर्मित कक्ष का उद्घाटन करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने शिक्षा की महत्ता पर विचार साझा किए। इस समारोह में उन्होंने बताया कि शिक्षा समाज को संगठित करती है और वंचित वर्गों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। 

चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल का स्वर्णिम युग
अपने आधे घंटे के ओजस्वी भाषण में स्वामी प्रसाद मौर्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल को स्वर्णिम युग बताया। उन्होंने कहा कि चंद्रगुप्त मौर्य ने अखंड भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनकर देश को एकजुट किया। उस समय का भारत म्यांमार, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे आज के खंड-खंड राष्ट्रों को भी अपने में समेटे हुए था। भारत को उस समय 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था, जहां दूध और दही की नदियां बहती थीं। लेकिन आज वही भारत गरीबी से जूझ रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर हमारा देश इतना गरीब क्यों है, जब पहले यह इतना समृद्ध था।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने बताया कि 19वीं सदी के मध्य तक भारत में शूद्रों और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था। ब्रिटिश शासनकाल में 1833 में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार मिला। 1848 में समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा राव फुले ने पहली बार महिलाओं और शूद्रों के लिए स्कूल खोला। 1853 में सरकारी स्कूलों की स्थापना की गई, जिसके बाद शूद्रों और सभी जातियों की महिलाओं को पढ़ने-लिखने का अधिकार प्राप्त हुआ।

आधुनिक भारत में शिक्षा की चुनौतियां और संघर्ष 
स्वामी प्रसाद मौर्य ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का उल्लेख करते हुए बताया कि आजादी के बाद उन्होंने सर्वजातीय समान शिक्षा का अधिकार दिलाया। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि आज सत्ता के भूखे भेड़िए पिछड़े, दलित और आदिवासी वर्गों को शिक्षा से वंचित करने की साजिश रच रहे हैं। उच्च शिक्षा को इतना महंगा कर दिया गया है कि गरीब परिवार के बच्चों के लिए कॉलेज में दाखिला लेना मुश्किल हो गया है। यह एक सोची-समझी चाल है, जिससे गरीबों को और गरीब बनाया जा रहा है और उन्हें सिर्फ 5 किलोग्राम राशन में उलझाया जा रहा है। बहराइच की घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उपचुनावों के मद्देनजर हिंदू-मुस्लिम मुद्दों को उछालने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने जनता से अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सतर्क और सजग रहने की अपील की ताकि लोकतंत्र सुरक्षित रहे और सभी के अधिकारों की रक्षा हो सके।

समारोह में छात्राओं की प्रस्तुति और विशिष्ट अतिथियों का सम्मान
इस अवसर पर चंद्रगुप्त मौर्य पर आधारित नाट्य प्रहसन और नृत्य प्रस्तुत कर विद्यालय की छात्राओं ने सम्राट की वीरता और संघर्ष की कहानी को जीवंत कर दिया। दर्शकों ने उनकी प्रस्तुति की सराहना की। समारोह की अध्यक्षता कॉलेज के अध्यक्ष डॉ. आर. पी. मौर्य ने की और धन्यवाद ज्ञापन प्रबंधक रामेश्वर सिंह मौर्य ने दिया। कार्यक्रम का संचालन दिलीप मौर्य ने किया। इस मौके पर प्रधानाचार्य रामपाल मौर्य, मानिकपुर नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि आशुतोष जायसवाल उर्फ डिंपू भैया, पूर्व अध्यक्ष राम नरेश मौर्य, अब्दुल हाशिम, नंदलाल मौर्य, डॉ. विजय यादव, पार्टी अध्यक्ष मनीराम मौर्य, उपाध्यक्ष शिव दुलारे मौर्य, राम मनोहर मौर्य, रमेश मौर्य, शिवनारायण मौर्य, डॉ. जेपी यादव, दुर्गा प्रसाद यादव, रवि सोनकर, गुलाब चंद्र मौर्य, और डॉ. रामचंद्र मौर्य समेत बड़ी संख्या में गणमान्य लोग उपस्थित रहे। समारोह ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि शिक्षा ही वह साधन है जो समाज के सभी वर्गों को एकजुट कर सकती है और उनके भविष्य को उज्जवल बना सकती है। 

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