अमेठी क्षेत्र में शक्ति संपन्न राष्ट्रीय-राजनीतिक गांधी परिवार की सक्रिय रूप से प्रतिभाग सर्वप्रथम 1975 में हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने अमेठी के अति पिछड़े गांव खेरौना में देशभर के कुछ युवा कांग्रेसियों के साथ श्रमदान के माध्यम से राजनीति में आने का कदम उठाया।
बड़े सियासी घटनाक्रमों का गवाह रहा है 'अमेठी' रोचक है गांधी परिवार की कर्मभूमि 'अमेठी' की कहानी
Dec 11, 2023 16:52
Dec 11, 2023 16:52
- गांधी परिवार के गढ़ 'अमेठी' का राजनीतिक इतिहास
- 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या
संजय गांधी के श्रमदान से सुर्खियों में आया
अमेठी क्षेत्र में गांधी परिवार का सक्रिय रूप से प्रतिभाग सर्वप्रथम 1975 में हुआ। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने अमेठी के अति पिछड़े गांव खेरौना में देशभर के कुछ युवा कांग्रेसियों के साथ श्रमदान के माध्यम से राजनीति में दस्तक दी। तब उस घटना ने देशभर में सुर्खियां बटोरी थीं।सन 1977 में हुआ लोकसभा चुनाव
अमेठी में संजय गांधी के कार्यशील होने के साथ ही देश में आपातकाल घोषित हो चुका था। इसके बाद 1977 में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में संजय गांधी और इंदिरा गांधी की पराजय हुई थी। इसके साथ ही उत्तर भारत में कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हुई। इतना ही नहीं यूपी और बिहार में खाता ही नहीं खुला। वहीं सन 1977 में अमेठी के ही निवासी रवींद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को हराकर संसद में प्रवेश किया।सन 1980 में जीते संजय गांधी
सन 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस की वापसी हुई। इंदिरा गांधी रायबरेली से पुन: निर्वाचित हुई जबकि संजय गांधी अमेठी के सांसद बने बता दें कि एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत हो गई। संजय गांधी की मौत के बाद गांधी परिवार ने कुछ वक़्त बाद इस सदमे से उबरते हुए अमेठी के सियासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजकुमार संजय सिंह सहित विभिन्न नेताओं के प्रयास एवं अनुरोध के फलस्वरूप राजीव गांधी को सक्रिय राजनीति में उतारा और वह 1981 में अमेठी से सांसद बने और अपने जीवन के आखिरी वक़्त (20 मई 1991) तक संसद में अमेठी के संसद थे।सहानुभूति की लहर में राजीव जीते
संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी उनकी मौत के बाद पारिवारिक विवाद के कारण इंदिरा गांधी से अलग हो गईं। इसके बाद 31 अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी जटिल परिस्थितियों में राजीव गांधी को प्रधानमंत्री का पद स्वीकार करना पड़ा था। इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ ही महीनों के बाद संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में सहानुभूति लहर का बेहद प्रभाव रहा तथा कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ और राजीव गांधी देश के पुन: प्रधानमंत्री बने।राजीव की हत्या के बाद सोनिया
एक बार फिर से देश चुनाव की तरफ बढ़ ही रहा था कि इसी दौरान 1991 में चुनाव अभियान के दौरान ही राजीव गांधी की निर्मम हत्या कर दी गई। तब राजीव गांधी की अमेठी की विरासत को उनके परिवार के बेहद करीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने संभाला। सतीश शर्मा दो बार लगातार न सिर्फ सांसद बने बल्कि केंद्र में पेट्रोलियम मंत्री का भी कार्यभार उन्हें सौंपा गया।सन 1998 के लोक सभा चुनाव
अमेठी रियासत के राजकुमार डॉ. संजय सिंह (अमेठी सियासत के राजा ) ने भाजपा का दामन थामकर कैप्टन सतीश शर्मा के विजय रथ को रोक लिया। संयोगवश जल्द ही संसदीय चुनाव घोषित हुए और इस बार सोनिया गांधी ने अपने पति की पूर्व संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। वहीं इस बीच रायबरेली की विशिष्ट सीट भी उनके अपनों के ही कब्ज़े में रही। गांधी परिवार ने इसके बाद सियासत को खुलकर अपनाया और बाद में सोनिया गांधी ने जहां अपनी सास इंदिरा गांधी की संसदीय सीट रही रायबरेली को अपनाया वहीं उनके बेटे राहुल गांधी ने पिता की सियासत का गढ़ रहे अमेठी का नेतृत्व किया।पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनके नवासे संजय गांधी, राजीव गांधी तथा उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने इस जिले का प्रतिनिधित्व किया है। 2004, 2009, 2014 में राहुल गांधी यहां से सांसद चुने गए। लेकिन 2019 आम चुनाव में उन्हें हार मिली।
राहुल गांधी 2004 के आम चुनाव में पहली बार अमेठी से सांसद बने। 2009 और 2014 में भी अमेठी की जनता ने राहुल को चुना। लेकिन 2019 आम चुनाव में उन्हें हार मिली। तब भारतीय जनता पार्टी की नेता स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को मात देकर यहां उलटफेर किया और सांसद बनीं।
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