उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले से चौंकाने वाला मामला सामने आया है। गांव के एक निवासी ने दो सदी बाद अपने पूर्वज की तेरहवीं करने का फैसला लिया है...
दो सदी बाद पूर्वज की तेरहवीं करने का फैसला : 1820 की बगावत और 2024 में पिंड दान, जानें क्या है मामला
Sep 06, 2024 19:56
Sep 06, 2024 19:56
अंग्रेजों ने दी रूह कांपने वाली सजा
गोड़हरा गांव के निवासी फकीर सिंह ने 1820 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया था। इस विद्रोह के कारण अंग्रेजों ने उन्हें एक ऐसी सजा दी जिसे सुनकर लोगों की रूह कांप उठी। गांव के बुजुर्गों के अनुसार, अंग्रेजों ने फकीर सिंह को मारकर जंगल में एक पेड़ से बांध दिया था। वहां, जंगली जानवरों ने उनकी लाश को अपना शिकार बना लिया। इस घटना के चलते न तो उनका दाह संस्कार हो सका और न ही उनके पारंपरिक क्रिया-कर्म किए जा सके। यह सब बातें गांव के बड़े बुजुर्गों से सुनते हुए लोगों के बीच चली आ रही हैं।
9 सितंबर को होगी तेरहवीं
अब, फकीर सिंह की आठवीं पीढ़ी के सदस्य प्रमोद सिंह ने 204 साल बाद उनके तेरहवीं और अन्य धार्मिक क्रिया-कर्म करने का निर्णय लिया है। परिवार ने किसी भी अनहोनी की आशंका को दूर करने के लिए और गयाजी पूजन की तैयारी के तहत ज्योतिषियों की सलाह पर स्व. फकीर सिंह की 204 साल बाद शुद्धि और त्रयोदशी का कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया है। उनकी तेरहवीं 9 सितंबर को निर्धारित की गई है। इसके बाद, परिजन फकीर सिंह की आत्मा की पूर्ण शांति के लिए पिंडदान करने के लिए गया की ओर प्रस्थान करेंगे।
प्रमोद सिंह ने बताया यह कारण
प्रमोद सिंह ने इस बारे में बताया कि हिंदू धर्म के अनुसार, किसी व्यक्ति का विधिपूर्वक क्रिया-कर्म किए बिना उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि इस संबंध में लोगों ने हमारे पास आकर सलाह ली और हमारे गुरुओं ने बताया कि बिना तेरहवीं किए कोई भी व्यक्ति गया जाकर पिंडदान नहीं कर सकता। इसके बिना पूर्वजों की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। हमारे धार्मिक शास्त्रों में भी इसी प्रकार का निर्देश दिया गया है।
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