रूस-यूक्रेन युद्ध में आजमगढ़ और मऊ के 14 युवक फंस गए। जिन्हें रसोइया, कारपेंटर और सिक्योरिटी गार्ड के वीजा पर रूस भेजा गया था। लेकिन इन युवकों को सैन्य प्रशिक्षण देकर युद्ध में भेज दिया गया...
नौकरी का झांसा : मऊ-आजमगढ़ के 14 युवक रूस-यूक्रेन युद्ध में भेजे गए, तीन की हुई मौत और दो लौटे स्वदेश
Jan 15, 2025 14:09
Jan 15, 2025 14:09
एजेंट के झांसे में फंसे युवक
मऊ और आजमगढ़ के 14 युवक एक एजेंट विनोद के जरिए रूस गए थे। एजेंट ने इन्हें हर महीने 2 लाख रुपये वेतन का वादा किया था। सभी को रसोइया, कारपेंटर और सिक्योरिटी गार्ड के वीजा पर रूस भेजा गया, लेकिन वहां पहुंचते ही इनका सपना टूट गया। इन्हें सैन्य प्रशिक्षण देकर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उतार दिया गया।
रूस-यूक्रेन युद्ध में मृतकों की संख्या
रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक आजमगढ़ के कन्हैया यादव और मऊ के श्यामसुंदर यादव की मौत हो चुकी है। कन्हैया यादव को रूस में सैन्य प्रशिक्षण के बाद युद्ध में भेजा गया था। जहां उन्हें गोली लगी और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। श्यामसुंदर यादव भी युद्ध में मारे गए। जिनकी मौत 3 जून 2024 को हुई थी।
रूस में फंसे बाकी युवक
बाकी 9 युवकों के परिवार वाले उन्हें सुरक्षित घर लौटाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इनमें से कुछ युवकों के बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है, जबकि 2 युवक पैर में गोली लगने के बाद भारत लौट आए हैं।
भारत सरकार कर रही प्रयास
इन परिवारों ने अपनी सरकार से अपील की है कि उनके बच्चों को सुरक्षित वापस लाया जाए। भारतीय विदेश मंत्रालय और अन्य सरकारी एजेंसियों से संपर्क कर कई प्रयास किए गए हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने इस मामले को रूस के सामने सख्ती से उठाया है और रूस ने जल्द ही भारतीयों को भेजने का आश्वासन दिया है। इन 9 परिवारों के लिए अब एक उम्मीद की किरण है, क्योंकि रूस ने भारतीयों को जल्द वापस भेजने का वादा किया है। इस दौरान प्रशासन और भारतीय दूतावास से मदद मिलने की उम्मीद जताई जा रही है, जिससे इन परिवारों को राहत मिल सकती है।
रूस से लौटे बृजेश ने सुनाई आपबीती
रूस से घल लौटे बृजेश ने बताया कि रूस पहुंचने पर पहला सप्ताह सामान्य रहा। रोज परिवार से बातचीत कर रहे थे। लेकिन एक सप्ताह बाद ट्रेन से दूसरी जगह भेज दिया गया। साथ में एक रूसी सेना का अधिकारी भी मौजूद था, जो हमें एक प्रशिक्षण केंद्र पर ले गया। जहां पर हम लोगों को अलग-अलग गन, ग्रेनेड चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। वहां पर हमारी कोई नहीं सुन रहा था। प्रशिक्षण के बाद हमें चार-चार के ग्रुप में बांट कर युद्ध में उतार दिया गया। युद्ध में सबसे पहले घोसी तहसील के चंदापार निवासी सुनील यादव की जान चली गई। सुनील, श्यामसुंदर और दो लोगों के ग्रुप को हमारे ग्रुप से दूर भेजा गया था।
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