UPPCL : आरएफपी में उद्योगपतियों को तरजीह-उपभोक्ताओं के सरप्लस का जिक्र नहीं, कंसल्टेंट आयोग को कैसे देगा राय?

आरएफपी में उद्योगपतियों को तरजीह-उपभोक्ताओं के सरप्लस का जिक्र नहीं, कंसल्टेंट आयोग को कैसे देगा राय?
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Jan 15, 2025 09:00

दक्षिणांचल व पूर्वाचल विद्युत वितरण निगम पर ही लगभग 16000 करोड़ उपभोक्ताओं का सरप्लस निकलेगा। आरडीएसएस योजना में जो लगभग 44000 करोड़ खर्च किया जा रहा है, उसको एसेट्स के रूप में कैसे शामिल किया जाएगा, इस पर कोई बात नहीं की गई है।

Jan 15, 2025 09:00

Lucknow News : उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PuVVNL) को निजी हाथों में सौंपने के लिए ट्रांजैक्शन एडवाइजर (कंसल्टेंट) के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) का मसौदा जारी करने पर विवाद जरूरी है। इस बीच इसे लेकर एक और नया खुलासा हुआ है, जो इस पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े कर रहा है। उपभोक्ता परिषद ने आरएफी की वैधता और स्वीकारता पर अध्ययन किया है। इसमें आरएफपी की लीगल वैधानिकता नियमों की कसौटी पर खरी उतरती नजर नहीं आ रही है।

निजी घरानों को फायदा पहुंचाने का खेल
यूपीपीसीएल की तरफ से जारी आरएफपी में ट्रांजैक्शन एडवाइजर के जो स्कोप आफ वर्क रहेगा, उसमें सबसे बड़ी वैधानिक चूक सामने आ रही है। इससे साबित हो रहा है कि पूरा मसौदा उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिहाज से तैयार किया गया है। इसमें उनके हितों को लेकर तो काम करने की इजाजत दी गई है। लेकिन, प्रदेश के उपभोक्ताओं का हित संरक्षित करने का कोई भी उपाय शामिल नहीं किया गया है। 



उपभोक्ताओं की 33122 करोड़ की धनराशि का क्या होगा?
इसके साथ ही इसमें इस अध्ययन की कोई इजाजत दी गई है कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33122 करोड़ सरप्लस का आगे क्या होगा। उपभोक्ताओं को अपने हिस्से की इतनी बड़ी धनराशि का लाभ कैसे मिलेगा, खास तौर पर जब बिजली कंपनियां अपने हिस्से की पाई पाई तक उपभोक्ताओं पर ब्याज लगाकर वसूल लेती हैं। ऐसे में जब साल दर साल उनके हिस्से का बकाया बढ़ता जा रहा है, उस पर चुप्पी क्यों साधी हुई है।  

गोलमाल : कैबिनेट की फैसले की समीक्षा करेगा कंसल्टेंट
बताया जा रहा है कि दक्षिणांचल व पूर्वाचल विद्युत वितरण निगम पर ही लगभग 16000 करोड़ उपभोक्ताओं का सरप्लस निकलेगा। आरडीएसएस योजना में जो लगभग 44000 करोड़ खर्च किया जा रहा है, उसको एसेट्स के रूप में कैसे शामिल किया जाएगा, इस पर कोई बात नहीं की गई है। सबसे चौंकाने वाला मामला यह है कि वर्ष 2010 में कैबिनेट का जो निर्णय टोरेंट पावर के मामले में 20 वर्ष के लिए प्रावधानित है, उसकी समीक्षा के लिए भी ट्रांजैक्शन एडवाइजर को काम करना है। ऐसे में सवाल उठ रहा हैं कि आखिर यह कैसा कंसल्टेंट है, जो केबिनेट निर्णय की समीक्षा का उपाय बताएगा।

विद्युत नियामक आयोग को कैसे सलाह दे सकता है कंसल्टेंट?
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 लोकमहत्व के मामले में राज्य सरकार को विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्देश जारी करने का अधिकार देती है। यही धारा 109 केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग को लोक महत्व के मामले में निर्देश का अधिकार देती है। इन दोनों धाराओं पर भी ट्रांजैक्शन एडवाइजर अपना मत देगा। इससे जाहिर होता है कि पावर कारपोरेशन को कानून का ज्ञान ही नहीं है। कंसल्टेंट कैसे आयोग को अपना मत दे सकता है। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 109 केंद्र सरकार के लिए बनाई गई धारा है। उस पर भी ट्रांजैक्शन एडवाइजर अपनी राय किस तरह दे सकता है? ट्रांजैक्शन एडवाइजर ना हो गया कोई सुपर पावर हो गया, जो नियमों से परे जाकर आयोग को अपनी राय देगा।

यूपीपीसीएल को लीगल सवालों का करना पड़ेगा सामना
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि आरएफपी में खुलासा हुआ है कि ट्रिपल पी मॉडल यानी निजीकरण के मामले में ट्रांजैक्शन एडवाइजर को अपनी राय देनी है। आखिर जब निजीकरण की बात हो रही है तो विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 पर कैसे कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाएगा। इसके बारे में ट्रांजैक्शन एडवाइजर को क्या सलाह देनी है, इसका कोई जिक्र नहीं है। इस तरह पूरे रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल पर नजर डालें तो ट्रांजैक्शन एडवाइजर का स्कोप ऑफ वर्क ही विवादित है। ऐसे में निजीकरण की बात तो पावर कारपोरेशन पूरी तरह भूल जाए। आने वाले समय में लीगल सवालों का वह जवाब वह कैसे देगा, उसे पहले इसकी तैयारी करनी चाहिए। 

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