सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह रोकथाम कानून को लेकर बड़ी टिप्पणी कर दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि बाल विवाह गलत है और इसे रोकने वाले कानून के आड़े किसी भी मजहब का पर्सनल लॉ नहीं आ सकता।
बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : कहा- कोई पर्सनल लॉ इसके आड़े नहीं आ सकता, दिशा-निर्देश भी किया जारी
Oct 18, 2024 15:25
Oct 18, 2024 15:25
- बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
- कानून में खामियों की ओर इशारा
- कहा- पर्सनल लॉ नहीं आ सकता आड़े
‘जीवनसाथी चुनना हर किसी का अधिकार’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनपसंद जीवनसाथी चुनना हर किसी का अधिकार है और बाल विवाह से ये अधिकार प्रभावित होता है। बाल विवाह की रोकथाम के कानून को ‘पर्सनल लॉ’ के जरिए प्रभावित नहीं किया जा सकता। इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं।
कानून में खामियों की ओर इशारा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून में कई खामियां हैं और इसे दूर करने की जरूरत है। कोर्ट ने इस संबंध में कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए। अदालत ने कहा कि बाल विवाह कराने वाले अपराधियों को दंडित किया जाना अंतिम विकल्प होना चाहिए। उससे पहले अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए।
2006 में आया था कानून
बाल विवाह निषेध कानून साल 2006 में आया था। इसका पूरा नाम प्रोहिबिशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट है। इससे पहले भारत में 1929 का बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम लागू था। अदालत ने कहा कि बाल विवाह पर रोकथाम की स्ट्रेटजी अलग-अलग समुदायों के अनुसार बनाई जानी चाहिए। कानून के बहु-क्षेत्रीय समन्वय होने पर ही यह सफल होगा।
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