पेपर लीक से संबंधित एक वीडियो के वायरल होने के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। पार्टी ने उनसे इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा है। विधायक ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें फंसाया जा रहा है।
पेपर लीक विवाद में घिरे बेदीराम : 2006 में भी आया था नाम, विधायक ने दी ये सफाई, अतीत से वर्तमान तक का सफर
Jun 29, 2024 12:07
Jun 29, 2024 12:07
- 2006 में भी पेपर लीक में आया था बेदीराम का नाम
- गैंगस्टर की हुई थी कार्रवाई
- विधायक ने दी ये सफाई
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विवाद की शुरुआत
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें कथित तौर पर बेदीराम पेपर लीक से जुड़ी बातें करते नजर आ रहे हैं। यह वीडियो तेजी से फैला और विपक्षी दलों ने इसे लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है। वहीं, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने बेदीराम के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
2006 में भी पेपर लीक में आया था नाम
यह पहली बार नहीं है जब बेदीराम का नाम पेपर लीक जैसे मामलों में आया हो। उनका नाम पहले भी कई बार ऐसे विवादों में शामिल रहा है। 2006 में रेलवे का पेपर लीक कराने के मामले में उनका नाम सामने आया था। लखनऊ के कृष्णनगर में एसओजी और एसटीएफ ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। यहीं पर उन पर गैंगस्टर एक्ट भी लगाया गया था। इसके बाद 2008 में गोमतीनगर, लखनऊ में फिर से एक मुकदमा दर्ज हुआ। 2009 में जयपुर, राजस्थान में भी उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। 2014 में भोपाल, मध्य प्रदेश और लखनऊ के आशियानाबाद में भी मुकदमे दर्ज हुए। 2010 में मड़ियाहूं और 2021 में जलालपुर में भी उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए।
राजनीति में प्रवेश
लगातार कानूनी मामलों में फंसते देख बेदीराम ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने सबसे पहले अपनी पत्नी बदामा देवी को जलालपुर (जौनपुर) से ब्लॉक प्रमुख का चुनाव लड़वाया और जिताया। यह चुनाव केराकत के तत्कालीन भाजपा विधायक दिनेश चौधरी के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल था, क्योंकि उनकी बहू भी इस चुनाव में उतरी थीं। लेकिन बेदीराम ने अपनी राजनीतिक चतुराई का परिचय देते हुए भाजपा में भी सेंध लगाई और अपनी पत्नी को विजयी बनवाया। इस सफलता के बाद बेदीराम ने खुद विधायक बनने का लक्ष्य रखा। उन्होंने सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से गठबंधन किया और गाजीपुर के जखनिया सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ा। उनकी जीत ने जौनपुर के लोगों को हैरान कर दिया, क्योंकि वह मूल रूप से जौनपुर के केराकत तहसील क्षेत्र के कुसियां के निवासी हैं।
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वर्तमान विवाद
वर्तमान विवाद तब शुरू हुआ जब बेदीराम का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इस वीडियो में वह कथित तौर पर पेपर लीक से संबंधित बातें करते दिख रहे हैं। हालांकि, बेदीराम ने इस वीडियो को फर्जी और एडिट किया हुआ बताया है। उन्होंने कहा है कि वह एक दलित विधायक हैं और इसलिए विरोधी पार्टियां उन्हें फंसाने की कोशिश कर रही हैं। इस बीच, एक और वीडियो सामने आया है जिसमें सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर कथित तौर पर कह रहे हैं कि अगर किसी को नौकरी चाहिए तो एडमिट कार्ड या कॉल लेटर आने के बाद बेदीराम को कॉल कर लेना चाहिए। हालांकि, इस वीडियो की भी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
गाजीपुर के पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह ने कहा है कि वायरल वीडियो की जांच के लिए उन्होंने एएसपी सिटी ज्ञानेंद्र को निर्देश दिए हैं। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला उनके क्षेत्राधिकार का नहीं है। बेदीराम के मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी चुनाव प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है? क्या ऐसे लोग जिन पर गंभीर आरोप लगे हों, उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए? यह प्रश्न न केवल नैतिकता का है बल्कि कानून और व्यवस्था का भी है।
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पार्टी ने पेपर में लीक मामले सफाई
सुभासपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मीडिया संयोजक पीयूष मिश्रा ने पेपर लीक मामले पर पार्टी का स्टैंड स्पष्ट किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि पार्टी इस मुद्दे पर पूरी तरह से पारदर्शी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर किसी भी छात्र-छात्रा के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के खिलाफ हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पार्टी के एक विधायक पर पेपर लीक में शामिल होने के आरोप लगे हैं। पार्टी ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए छात्रों के हितों की रक्षा पर जोर दिया है।
मामला हुआ दिलचस्पपेपर लीक मुद्दे पर हमारी पार्टी का साफ़ - साफ़ विचार है, कि हम पारदर्शी विचार रखते है , हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री @oprajbhar जी किसी भी छात्र -छात्रा के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने देंगे! क़ानून नियम संगत तरीक़े से अपना काम कर रही है, जब तक आरोप सिद्ध नहीं हो जाते तब तक…
— Piyush Mishra (@PMLUCKNOW) June 28, 2024
बेदीराम का मामला उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और न्यायपालिका इस मामले को कैसे हैंडल करती है। क्या बेदीराम एक बार फिर अपनी राजनीतिक चतुराई का परिचय देकर इस संकट से निकल पाएंगे या इस बार उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे, यह आने वाला समय ही बताएगा। सोचने की बाद है कि हमारे देश में राजनीति और अपराध के बीच की रेखा कितनी पतली हो गई है। यह समय की मांग है कि इस तरह के मामलों पर गंभीरता से विचार किया जाए और ऐसे कदम उठाए जाएं जिससे राजनीति का अपराधीकरण रोका जा सके।
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