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आज भी कायम है 'अमेठी के राजघराने' का जलवा गांधी परिवार से भी पुरानी है 'अमेठी के राजघराने' की विरासत 

UP Times | अमेठी का राजनीतिक इतिहास  

Dec 11, 2023 16:59

अमेठी का नाम सामने आते ही सभी के ज़हन में गांधी परिवार का ख्याल आने लगता है वहीं एक घराना ऐसा है जो गांधी परिवार का हिस्सा न होते हुए भी अमेठी की विरासत का हिस्सा है। आज़ादी की लड़ाई के बाद जब लोकतंत्र की शुरुआत हुई तो इस लोकतंत्र में राजघराने ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Short Highlights
  • गांधी परिवार से भी पुरानी है 'अमेठी के राजघराने' की विरासत
  • राजघराने की विरासत आज भी ज़िंदा 
Amethi News: अमेठी का नाम सामने आते ही सभी के ज़हन में गांधी परिवार का ख्याल आने लगता है। यहीं एक घराना ऐसा है जो गांधी परिवार का हिस्सा न होते हुए भी अमेठी की विरासत का अहम हिस्सा है। आज़ादी की लड़ाई के बाद जब लोकतंत्र की शुरुआत हुई तो इसमें भी इस राजघराने ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहली बार राजघराने से राजा रणंजय सिंह निर्दलीय विधायक चुने गए थे।

राजा संजय सिंह संभाल रहे विरासत 

राजनीति का गढ़ कहा जाने वाला अमेठी पुरानी सभ्यताओं और संस्कृतियों का संगम रहा है। इसी पुरानी विरासत में शामिल है अमेठी का राजघराना। राज परिवार का राजनीति से लेकर सामाजिक सरोकार से सीधा ताल्लुक रहा है और अब तक कई पीढ़ियों ने राजघराने की विरासत को संभाला। अब वर्तमान समय में अमेठी नरेश कहे जाने वाले राजा संजय सिंह इस विरासत को संभाल रहे हैं।

इन पीढ़ियों ने संभाली जिम्मेदारी 

इतिहासकार अर्जुन पांडे बताते हैं कि अमेठी के राजघराने के इतिहास के मुताबिक राजा लाल माधव सिंह की कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने भगवान बख्श सिंह को गोद लिया था। जिसके बाद भगवान बख्श सिंह को चार संताने हुईं। जिनमें रणंजय सिंह,रणवीर सिंह,जंग बहादुर सिंह और कुंवर साहब शामिल हैं। लेकिन इस राजघराने में भगवान बख्श सिंह के 3 राजकुमारों की अलग-अलग समय में मृत्यु हो गई। जिसके बाद बचे राजा रणंजय सिंह को भी कोई संतान नहीं हुई। बाद में उन्होंने संजय सिंह को गोद लिया और तब से आज तक अमेठी नरेश संजय सिंह ने अमेठी की इस विरासत को संभाला है।

इतिहास के पन्नों को देखा जाए तो राजा लाल माधव सिंह राजा गुरुदत्त सिंह के पुत्र थे। जिन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन में लड़ाई लड़कर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। आज़ादी की लड़ाई के बाद जब लोकतंत्र की शुरुआत हुई तो इस लोकतंत्र में राजघराने ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहली बार राजघराने से राजा रणंजय सिंह निर्दलीय विधायक चुने गए थे। राजा रणंजय सिंह की राजनीति के दखलंदाज़ी के बाद अमेठी राजघराने में बदलते वक्त के साथ लोकतंत्र के हर पड़ाव में राजनीतिक उतार चढ़ाव होते रहे।

राजा संजय सिंह का राजनीतिक सफर

राजा संजय सिंह के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो पहली बार उन्होंने राजनीतिक पारी की शुरुआत करते हुए साल 1980 में कांग्रेस पार्टी का दामन थाम कर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। कांग्रेस के बाद राजा संजय सिंह अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ कर जीतते और हारते रहे। अमेठी की उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह उनके बेटे कुंवर अनंत विक्रम सिंह, बहू शाम्भवी सिंह भी भाजपा में हैं। बता दें कि 2017 के विधानसभा के चुनाव में गरिमा सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर सपा सरकार में पूर्व मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति को हराकर चुनाव जीता था।

राजघराने का रुतबा आज भी कायम 

 इतिहासकार अर्जुन पांडे बताते हैं कि 10 वीं शताब्दी से राजघराने की स्थापना जब हुई तब से आज तक यह राजघराना अपनी विरासत को संजोए हुए है। राजनीति और सामाजिक रूप से सक्रियता के कारण राज परिवार के लोगों का रसूख आज भी कायम है। 

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