Pilibhit Encounter : 33 साल बाद फिर से आतंकियों का ठिकाना बना जिला, नेपाल भागने की फिराक में थे आरोपी

UPT | Pilibhit Encounter

Dec 24, 2024 13:10

पीलीभीत पहले भी खालिस्तानी आतंकियों का गढ़ रहा है। यह मुठभेड़ 33 साल बाद हुई है। 1991 में भी इस जिले में तीन अलग-अलग मुठभेड़ों में 10 खालिस्तानी आतंकियों को मार गिराया गया था।

Pilibhit News : उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में सोमवार सुबह हुई मुठभेड़ में पंजाब और पीलीभीत पुलिस की साझा कार्रवाई में तीन खालिस्तान समर्थक आतंकियों को मार गिराया गया। इस एनकाउंटर के बाद पुलिस ने इसकी जांच शुरू कर दी है कि आतंकियों ने छिपने के लिए पीलीभीत को क्यों चुना और वे कहां रुके थे। पीलीभीत पहले भी खालिस्तानी आतंकियों का गढ़ रहा है। यह मुठभेड़ 33 साल बाद हुई है। 1991 में भी इस जिले में तीन अलग-अलग मुठभेड़ों में 10 खालिस्तानी आतंकियों को मार गिराया गया था।

खालिस्तानी आतंकियों की उपस्थिति और पीलीभीत का इतिहास
पीलीभीत का तराई क्षेत्र आतंकवादियों के लिए हमेशा से सुरक्षित ठिकाना रहा है। 1991 में, जब खालिस्तानी आतंकवाद अपने चरम पर था। पीलीभीत और आसपास के इलाकों में लगातार मुठभेड़े होती रही थीं। 12-13 जुलाई 1991 को होक के जंगल में छिपे आतंकवादियों के खिलाफ पुलिस ने बड़ा अभियान चलाया था। इस मुठभेड़ में चार आतंकवादी मारे गए थे। यह इलाका आतंकवादियों के लिए एक छिपने की जगह बन चुका था। अब 33 साल बाद यह पुनः खालिस्तान समर्थक आतंकियों के लिए ठिकाना बन गया है। सूत्रों के अनुसार, सोमवार को मारे गए आतंकियों ने पीलीभीत के पूरनपुर क्षेत्र के सिख बहुल इलाके में शरण ली थी और वे दो दिन पहले ही यहां पहुंचे थे।

नेपाल भागने की फिराक में थे आरोपी
पीलीभीत की नेपाल सीमा के पास स्थित होने के कारण यह इलाका अपराधियों और आतंकियों की शरणगाह बनता जा रहा है। नेपाल की सीमा खुली होने के कारण यहां आवागमन आसान है। जिले में मुख्यतः पूरनपुर और कलीनगर क्षेत्र से नेपाल की सीमा जुड़ी हुई है। साथ ही उत्तराखंड राज्य की सीमा भी पीलीभीत से सटी हुई है। यहां कई स्थानों पर कच्चे रास्ते और जंगल के इलाके हैं। जो आतंकवादियों के लिए आदर्श छिपने की जगह बनते हैं। यही कारण है कि कुछ महीने पहले गैंगस्टर हत्या करने वाले अपराधी भी पीलीभीत में शरण लेने पहुंचे थे। 

1991 की मुठभेड़ और पीलीभीत की खालिस्तानी इतिहास में भूमिका
1991 में पीलीभीत में खालिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ कई मुठभेड़े हुई थीं। जिनमें 10 आतंकियों को मारा गया था। इन मुठभेड़ों में खालिस्तानी लिबरेशन आर्मी के स्वयंभू कमांडर बलजीत सिंह "पप्पू" और अन्य प्रमुख आतंकवादी मारे गए थे। 1991 की घटनाएं पीलीभीत के खालिस्तानी इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और अब 33 साल बाद यह जिला फिर से आतंकवादियों के निशाने पर आ गया है।

तीन आतंकी मारे गए
सोमवार सुबह पंजाब और पीलीभीत पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में तीन खालिस्तानी आतंकियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया। इन आतंकियों पर पंजाब के कलानौर थाने की बख्शीवाल चौकी पर ग्रेनेड से हमला करने का आरोप था। पुलिस ने जानकारी दी कि तीनों आतंकी गुरदासपुर जिले के रहने वाले थे। मुठभेड़ सुबह करीब 5:30 बजे खमरिया पट्टी के पास हुई, जब पुलिस ने संदिग्धों को रोकने के लिए घेराबंदी की थी। आतंकियों ने खुद को घिरता देख पुलिस पर फायरिंग की। जिसमें तीनों आतंकवादी घायल हो गए और बाद में उनकी मौत हो गई। इनकी शिनाख्त बलजीत सिंह ''पप्पू'', पंजाब के गुरदासपुर निवासी जसवंत सिंह जद्दा, हरमिंदर सिंह मिंटू और सुरजन सिंह उर्फ बिट्टू के तौर पर हुई थी।

पुलिस ने आतंकियों के कनेक्शन का पता लगाने के लिए की जांच
पुलिस का मानना है कि आतंकियों ने पीलीभीत को अपनी शरणगाह के रूप में चुना क्योंकि यह स्थान नेपाल की सीमा से जुड़ा हुआ था और यहां आतंकवादियों के लिए छिपने की जगह थी। पुलिस ने यह भी जांच शुरू की है कि आतंकियों ने पीलीभीत में छिपने के लिए क्यों इस क्षेत्र का चुनाव किया और उनसे मिली बिना नंबर की बाइक किसकी थी। इस मुठभेड़ के दौरान पुलिस को आतंकियों से दो एके-47 राइफल, दो विदेशी पिस्टल और चोरी की एक बाइक मिली। मुठभेड़ में दो पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। घायल सिपाही शाहनवाज और बिजनौर के सुमित राठी का इलाज चल रहा है।

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