शारदीय नवरात्रि शुरू : लेहड़ा देवी मंदिर में भक्तों का तांता, अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहीं की थी मां की आराधना

UPT | लेहड़ा देवी मंदिर में भक्तों का तांता लगा

Oct 03, 2024 13:07

वैसे तो साल भर ही लेहड़ा देवी मंदिर में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शारदीय नवरात्रि के पहले दिन गुरुवार (3 अक्टूबर) को लेहड़ा देवी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है। भक्त कतार में खड़े होकर ...

Short Highlights
  •  नवरात्रि में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
  •  पांडवों ने की थी मंदिर की स्थापना
  •  शक्तिपीठ के रूप में है प्रसिद्ध
  •  चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने किया उल्लेख
  •  कुछ ही दूरी पर है बाबा वंशीधर की तपस्थली 
Maharajganj News : महराजगंज जिले में स्थित लेहड़ा देवी मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। जिले के पश्चिमी छोर पर फरेंदा तहसील मुख्यालय से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित लेहड़ा देवी मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। मां के दरबार में दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु लेहड़ा देवी के दर्शन के लिए आते हैं। नवरात्रि के दौरान गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया समेत कई अन्य जिलों से भी लाखों श्रद्धालु मां लेहड़ा देवी के दर्शन के लिए आते हैं।

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी
वैसे तो साल भर ही लेहड़ा देवी मंदिर में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शारदीय नवरात्रि के पहले दिन गुरुवार (3 अक्टूबर) को लेहड़ा देवी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है। भक्त कतार में खड़े होकर देवी के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। 


पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर की स्थापना की थी
शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध दिव्य फलदायिनी लेहड़ा देवी के संबंध में कई प्रचलित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के समय की थी। मान्यता के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी स्थान पर यक्ष के प्रश्नों का सही उत्तर देकर अपने चारों भाइयों को पुनर्जीवित किया था। बाद में पांचों भाइयों ने यहां पीठ की स्थापना कर पूजा अर्चना प्रारम्भ की। 

चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी इस देवी स्थल का उल्लेख किया 
एक अन्य कथा के अनुसार देवी अपने मूल स्थान से प्रतिदिन नदी पार कर पौहारी बाबा के दर्शन के लिए जाती थीं। एक दिन नाविक की नीयत पाप से ग्रस्त हो गई। नाव जैसे ही धारा में पहुंची, मां ने नाविक को अपने विकराल रूप का दर्शन कराया। मां के कोप से नाविक सहित नाव जल में विलीन हो गई। ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में इस देवी स्थल का उल्लेख किया है।

इन्हीं क्षेत्रों में व्यतीत हुआ बुद्ध का बाल्यकाल
उपलब्ध बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार गौतम बुद्ध की माता माया देवी कोलिय गणराज्य की कन्या थीं। ऐसे में बुद्ध का बाल्यकाल इन्हीं क्षेत्रों में व्यतीत हुआ। क्षेत्र के बड़े बुजुर्गों की मानें तो एक दिन लेहड़ा स्थित सैन्य छावनी के अधिकारी (लगड़ा साहब)शिकार खेलते हुए मंदिर परिसर में पहुंच गए। यहां पर भक्तों की भीड़ देख कर उन्होंने देवी की पिंडी पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। कुछ ही देर में वहां खून की धारा बहने लगी। खून देख कर भयभीत अंग्रेज अफसर वापस कोठी की तरफ आ रहे थे कि घोड़े सहित उनकी मृत्यु हो गई। उस अंग्रेज अफसर की कब्र मंदिर के एक किमी पश्चिम में स्थित है। इस घटना के बाद लोगों की आस्था लेहड़ा देवी के प्रति और बढ़ गई। 

लेहड़ा देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर है प्राचीन तपस्थली  
आपको बता दें कि बाबा वंशीधर एक सिद्ध योगी थे,  लेहड़ा देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन तपस्थली है। इस जगह पर कई साधु-संतों की समाधियां हैं। इन्हीं साधु योगियों में एक प्रसिद्ध बाबा वंशीधर थे। बाबा वंशीधर एक सिद्ध योगी के रूप में प्रसिद्ध रहे। वह अपने योग बल से कई चमत्कार और लोक-कल्याण के कार्य किए थे। बाबा की शक्ति और भक्ति से कई वन्य जीव जन्तु उनकी आज्ञा को मानने के लिए तैयार हो जाते थे। माना जाता है कि एक बार बाबा वंशीधर ने अपनी शक्तियों से एक शेर और मगरमच्छ को शाकाहारी जीव बना दिया था। 

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