गोरखपुर में पकड़ा गया एक और करीम तेलगी : नकली स्टाम्प छापकर कर रहा था लाखों की कमाई, कई जिलों में फैला था नेटवर्क

UPT | मुख्य आरोपी कमरुद्दीन।

Apr 07, 2024 01:09

पुलिस के मुताबिक कमरुद्दीन ही गिरोह का मास्टरमाइंड है और वह पिछले 40 साल से इस धंधे में लिप्त है। इसमें उसका नाती साहेबजादे भी शामिल है। गिरोह में ऐसे वेंडर शामिल पाए गए, जो ट्रेजरी की ओर से स्टाम्प बेचने के लिए अधिकृत हैं।

Short Highlights
  • नाना-नाती मिलकर छाप रहे थे फर्जी स्टाम्प
  • पुलिस ने 84 वर्षीय मोहम्मद कमरुद्दीन समेत सात शातिरों को किया गिरफ्तार 
Gorakhpur News : गोरखपुर पुलिस ने नकली स्टाम्प बनाने के एक गिरोह का पर्दाफाश किया है। इसमें शामिल 84 वर्षीय मोहम्मद कमरुद्दीन समेत सात शातिरों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इनके पास से एक करोड़ 52 हजार 30 रुपये के नकली स्टाम्प के अलावा छपाई मशीन, यूपी व बिहार के गैर न्यायिक स्टाम्प, एक लैपटॉप, सौ पैकेट इंक, पेपर कटर मशीन और सादे कागज बरामद हुए हैं। बुजुर्ग बिहार के सिवान में फर्जी स्टांप छापकर गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज के अलावा ही यूपी के दूसरे हिस्सों में बेचता था। 

40 साल से इस धंधे में लिप्त था कमरुद्दीन
पुलिस के मुताबिक कमरुद्दीन ही गिरोह का मास्टरमाइंड है और वह पिछले 40 साल से इस धंधे में लिप्त है। इसमें उसका नाती साहेबजादे भी शामिल है। गिरोह में ऐसे वेंडर शामिल पाए गए, जो ट्रेजरी की ओर से स्टाम्प बेचने के लिए अधिकृत हैं। आरोपियों को शुक्रवार को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। आरोपियों में कुशीनगर के रामलखन जायसवाल, ऐश मोहम्मद, रविंद्र दीक्षित, देवरिया के संतोष गुप्ता और नंदू उर्फ भी नंदलाल शामिल हैं।

तीन महीने से चल रही थी जांच
एसएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर ने बताया कि गोरखपुर कोर्ट में इस्तेमाल किए गए फर्जी स्टाम्प का मामला सामने आने के बाद कैंट थाने में केस दर्ज किया गया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए एसआईटी का गठन किया गया, जिसकी अगुवाई वर्तमान में एएसपी अंशिका वर्मा कर रही हैं। तीन महीने की जांच में पुलिस के हाथ कई साक्ष्य लगे। इसके बाद एसओजी के मनीष यादव, रुद्र प्रताप सिंह, शेष कुमार शर्मा और उनकी टीम आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए भेजी गई। कुशीनगर के वेंडर के गिरफ्तार होने के बाद बिहार के सिवान के कमरुद्दीन का नाम सामने आया। उसकी गिरफ्तारी के बाद पूरा मामला खुलकर सामने आ गया।

फर्जी स्टाम्प कई जिलों में बेचा जा रहा 
एसएसपी ने बताया कि गिरफ्तार किए गए आरोपियों में गोरखपुर के अलावा देवरिया, कुशीनगर के भी वेंडर शामिल है और इन लोगों ने प्रदेश के कई जिलों में फर्जी स्टांप बेचा है, अभी इसकी जांच जारी है। जिले का नाम सामने आने के बाद उन जनपदों से जानकारी लेंगे। गिरोह में शामिल कई और लोगों के नाम भी सामने आए है, जिसकी तलाश की जा रही है।

इनकी हुई गिरफ्तारी
पकड़े गए आरोपियों की पहचान बिहार के सिवान जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के नई बस्ती निवासी मोहम्मद कमरुद्दीन, उनका नाती साहेबजादे, गोरखपुर के कोतवाली इलाके के समय माता मंदिर के पास रहने वाला रामलखन जायसवाल, कुशीनगर के कसया इलाके के जानकीनगर निवासी ऐश मोहम्मद, कुशीनगर के पडरौना के सिरसिया निवासी रविंद्र दीक्षित, देवरिया के भाटपार थाना क्षेत्र के वार्ड नंबर 22 निवासी संतोष गुप्ता और पडरौना के बकुलहा निवासी नंदू उर्फ नंदलाल के रूप में हुई है।

पहले भी जेल जा चुका है कमरुद्दीन
पूछताछ में आरोपी कमरुद्दीन ने पुलिस को बताया कि उसे यह कला उसके ससुर शमशुद्दीन ने कई दशक पहले सिखाई थी। उसका पूरा खानदान फर्जी स्टाम्प की छपाई में लगभग 50 सालों से लगा है। इस मामले में वो 1986 में जेल भी जा चुका है। जेल से छूटने के कुछ सालों बाद वह फिर से इस धंधे में शामिल हो गए।

ऐसे खुला था मामला
करीब 3 महीने पहले 8 जनवरी 2024 को एक अधिवक्ता ने कैंट में केस दर्ज कराया था। इस केस में कई महीनों तक आरोपियों से चली पूछताछ के दौरान पुलिस को कई अहम दस्तावेज मिले। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि यह नेटवर्क कई राज्यों में फैला है। पुलिस ने बताया कि बिहार के रहने वाले एक 85 वर्षीय बुजुर्ग अपने नाती के साथ मिलकर कई सालों से फर्जी स्टाम्प पेपर तैयार कर रहा था। लोकल वेंडरों के जरिए इन फर्जी स्टांप पेपर को बेच दिया जाता था। इसके बाद एसएसपी गोरखपुर ने एसआईटी बनाकर इस मामले की जांच कराई। इसमें पुलिस को कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली थीं। दरअसल, एक प्रकरण में कोर्ट में मामला दाखिल किया गया था, जिसमें कोर्ट फीस के तौर पर 53,128 रुपये का स्टाम्प लगाया गया था। नियमानुसार, मुकदमे में मेरिट के आधार पर समाधान होने पर कोर्ट फीस वापस नहीं होती है। लेकिन, सुलह समझौता के आधार पर मुकदमे का निस्तारण लोक अदालत में हो गया था।

....तो फर्जी मिला स्टाम्प
इसके बाद स्टाम्प वापसी के लिए आवेदन कोषागार कार्यालय गोरखपुर में किया गया। इसमें कुछ कूटरचित स्टाम्प लगे थे। वो सभी स्टाम्प सदर तहसील गोरखपुर के कोषागार से जारी न होने के कारण उसकी जांच भारतीय प्रतिभूति मुद्रणालय, नासिक प्रयोगशाला से कराई गई। इसमें सामने आया कि 5-5 हजार के 10 स्टाम्प (कुल 50 हजार) कूटरचित यानी फर्जी है। मामला सामने आने के बाद उपनिबंधक प्रथम सदर तहसील गोरखपुर ने केस दर्ज कराया। तब जाकर इस फर्जीवाड़ा का पता चला।
 

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