इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश : सुशील अंसल के खिलाफ नए सिरे से कानूनी कार्रवाई का निर्देश

UPT | इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ

Dec 23, 2024 13:51

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुशील अंसल के खिलाफ नए सिरे से कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत का आदेश दिया है। जिसमें आरोपों की पुनः सुनवाई की जाएगी और मामले में उचित जांच की जाएगी।

Short Highlights
  • सुनीता अग्रवाल ने संपत्ति न मिलने और उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, जिसके बाद मामला अदालत में पहुंचा।
  • अंसल प्रॉपर्टीज पर हजारों लोगों से बुकिंग लेकर संपत्ति का कब्जा न देने और सुविधाओं की कमी का आरोप है।
  • हाई कोर्ट ने लखनऊ जिला कोर्ट को चार सप्ताह में नए आदेश जारी करने के लिए कहा।
Lucknow News : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अंसल प्रॉपर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष सुशील अंसल के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। यह आदेश सुनीता अग्रवाल द्वारा दायर याचिका पर आधारित है, जिसमें उन्होंने सुशील अंसल और उनकी कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी और उत्पीड़न का आरोप लगाया था। 

सुनीता अग्रवाल ने इस मामले में आरोप लगाए थे
यह मामला एक संपत्ति लेन-देन से जुड़ा है, जिसमें सुनीता अग्रवाल ने अंसल प्रॉपर्टीज को 3,10,03,382 रुपये की राशि दी थी, लेकिन उन्होंने जो संपत्ति प्राप्त करने की उम्मीद की थी, वह उन्हें नहीं मिली। इसके बाद, 19 अगस्त 2017 को सुनीता अग्रवाल ने अंसल प्रॉपर्टीज के ऑफिस में संपत्ति के बारे में जानकारी लेने के लिए जाने पर उत्पीड़न का आरोप लगाया। उनका कहना था कि उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और जब उनके पति ने पैसे वापस मांगे तो उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई।

इन घटनाओं के बाद, सुनीता अग्रवाल ने 25 अगस्त 2017 को हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई। इस एफआईआर में आईपीसी की धारा 354A, 406, 506, और 504 के तहत आरोप लगाए गए थे। लखनऊ पुलिस ने जांच शुरू की और 28 दिसंबर 2017 को अंतिम रिपोर्ट पेश की। हालांकि, सुनीता अग्रवाल इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं थीं और उन्होंने मामले की और गहराई से जांच की मांग की।

हाई कोर्ट का आदेश
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2 दिसंबर 2024 को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया, जिसमें लखनऊ जिला कोर्ट को चार सप्ताह के भीतर नए सिरे से आदेश जारी करने का निर्देश दिया गया। जस्टिस राजीव सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि न्यायिक प्रक्रिया के तहत यह जरूरी है कि मामले में पूरी तरह से जांच की जाए और सभी रिपोर्टों को एक साथ पढ़ते हुए नया आदेश जारी किया जाए।

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि लोअर कोर्ट ने मामले में स्थापित कानूनी सिद्धांतों का पालन नहीं किया और इस पर उचित ध्यान नहीं दिया। कोर्ट ने विशेष रूप से सीआरपीसी की धारा 173 के तहत सभी जांच रिपोर्टों को संयुक्त रूप से पढ़ने के सिद्धांतों की उपेक्षा की। कोर्ट ने आदेश दिया कि अब इस मामले की नए सिरे से सुनवाई की जाएगी और सभी पहलुओं की पुनः जांच की जाएगी।

जांच में हुई गड़बड़ियां
इस मामले में कई जांच प्रक्रियाओं में गड़बड़ी सामने आई। सुनीता अग्रवाल ने आरोप लगाया कि पुलिस ने 28 दिसंबर 2017 को जो अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसमें कई पहलुओं को नजरअंदाज किया गया था। इसके बाद, पुलिस ने 8 अप्रैल 2019 को एक दूसरी रिपोर्ट पेश की, जिसे और अधिक गंभीरता से जांचने की जरूरत थी। लेकिन लोअर कोर्ट ने इस रिपोर्ट को बिना ध्यान दिए मान लिया और सुशील अंसल को राहत दे दी।

इसके अलावा, हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने यह भी सवाल उठाया कि जब मामला केवल जांच रिपोर्टों पर आधारित था, तो उसे व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के लिए क्यों बुलाया गया था। उनका कहना था कि इस मामले में किसी भी तरह की व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि यह एक कानूनी प्रक्रिया थी और इसे पूरी तरह से रिपोर्टों के आधार पर हल किया जा सकता था।

अंसल प्रॉपर्टीज के खिलाफ धोखाधड़ी और अन्य आरोप
यह मामला केवल सुनीता अग्रवाल तक सीमित नहीं है। अंसल प्रॉपर्टीज और उनकी टाउनशिप, सुशांत गोल्फ सिटी के खिलाफ कई अन्य शिकायतें भी सामने आई हैं। लखनऊ में दो साल पहले हुई एक समीक्षा बैठक में यह सामने आया था कि अंसल प्रॉपर्टीज ने 18,858 लोगों से मकान और प्लॉट के लिए बुकिंग ली थी, लेकिन कब्जा केवल 6,267 लोगों को ही दिया गया। हजारों लोग अपनी संपत्ति के लिए भटक रहे थे और इस धोखाधड़ी के आरोपों ने अंसल प्रॉपर्टीज की छवि को और भी नुकसान पहुंचाया।

साथ ही, यह भी पता चला कि अंसल प्रॉपर्टीज ने हाईटेक टाउनशिप के निर्माण के लिए आवश्यक सुविधाएं, जैसे पार्क, स्कूल, अस्पताल, पुलिस चौकी और एसटीपी, नहीं बनाई थीं। इसके बाद, उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) को इस मामले की जांच करने और कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।

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