UPPCL के गले की हड्डी बनी स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना : कौन करेगा 9000 करोड़ की भरपाई? अब तक तस्वीर साफ नहीं

UPT | स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना

Nov 04, 2024 16:46

स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना को आत्मनिर्भर मानकर लागू किया गया है। लेकिन, इसके बढ़ते खर्च ने कई आर्थिक सवाल खड़े कर दिए हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि परियोजना के संचालन के दौरान क्या यह अतिरिक्त लागत वाकई में उपभोक्ताओं पर डाली जाएगी या नहीं। माना जा रहा है कि इस अतिरिक्त रकम का भी बोझ पावर कारपोरेशन पर पड़ेगा।

Lucknow News : उत्तर प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने की महत्वाकांक्षी योजना पर वित्तीय चिंताएं बढ़ रही हैं। इस परियोजना का उद्देश्य प्रदेश के 3.45 करोड़ विद्युत उपभोक्ताओं के पुराने मीटरों को बदलकर स्मार्ट प्रीपेड मीटर स्थापित करना है। हालांकि, बिजली कंपनियों से इस योजना के वित्तीय लाभ-हानि का विश्लेषण मांगा गया है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह योजना प्रदेश और उपभोक्ताओं के लिए कितनी फायदेमंद है।

स्मार्ट प्रीपेड मीटर का बड़ा प्रोजेक्ट और खर्च
दरअसल प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना का बजट 27,342 करोड़ रुपये तक बढ़ गया है, जबकि केंद्र सरकार ने इस परियोजना के लिए 18,850 करोड़ की मंजूरी दी थी। टेंडर की अधिक दरों की वजह से यह प्रोजेक्ट लगभग 9000 करोड़ रुपये महंगा हो गया है। प्रोजेक्ट की लागत में इतनी वृद्धि के कारण यह परियोजना आत्मनिर्भर है या नहीं, इस पर सवाल उठ रहे हैं। केंद्र सरकार ने इस योजना को उपभोक्ताओं पर आर्थिक भार डाले बिना आत्मनिर्भर बनाने की सिफारिश की है, लेकिन इतनी बड़ी लागत में निजी कंपनियों की भूमिका और अधिक खर्च का कारण स्पष्ट नहीं है।



विद्युत नियामक आयोग द्वारा वित्तीय विश्लेषण की मांग
उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने टैरिफ आदेश 2023-24 में यह निर्देश जारी किया था कि बिजली कंपनियां यह रिपोर्ट दें कि लाइफ लाइन विद्युत उपभोक्ताओं पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने से उन्हें क्या लाभ होगा। वर्ष 2024-25 के टैरिफ आदेश में भी यह निर्देश दोहराया गया। लेकिन, अब तक बिजली कंपनियां इस संबंध में कोई वित्तीय विश्लेषण प्रस्तुत नहीं कर पाई हैं। आयोग का मानना है कि यह आवश्यक है कि इस योजना का वित्तीय विश्लेषण किया जाए ताकि उपभोक्ताओं और कंपनियों के लिए इसकी प्रासंगिकता का मूल्यांकन किया जा सके।

आर्थिक रूप से कमजोर लाइफलाइन उपभोक्ता को लाभ मिलने पर संशय
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने यह सवाल उठाया है कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना का वास्तविक लाभ क्या है, खासकर लाइफलाइन उपभोक्ताओं के लिए जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। संगठन के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के मुताबिक वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 के टैरिफ आदेश के मुताविक प्रदेश में 1.69 करोड़ से ज्यादा लाइफलाइन उपभोक्ता हैं। एक किलोवाट वाले ये उपभोक्ता अगर पूरे 100 यूनिट का इस्तेमाल करते हैं तो बिजली विभाग को 350 रुपये बिल के तौर पर भुगतान करेंगे। ओपेक्स मॉडल में इसमें से 101 से 110 रुपये प्रति उपभोक्ता हर महीने बिजली कंपनियों के पास चला जाएंगे। अगर ये उपभोक्ता 100 यूनिट से कम बिजली इस्तेमाल करते हैं तो उनका बिल कम हो जाएगा और ये 200 के अंदर ही भुगतान करेंगे। लेकिन पावर कारपोरेशन को 101, 110 रुपये की दर से ही मीटर कंपनियों को भुगतान करना होगा। इसलिए इस पर सवाल उठ रहे हैं।

प्रदेश में करोड़ों रुपये का नुकसान होने की संभावना
उपभोक्ता परिषद का तर्क है कि इस योजना में पुराने मीटरों को केवल पांच साल की गारंटी अवधि के पहले ही बदला जा रहा है, जिससे प्रदेश में करोड़ों रुपये का नुकसान हो सकता है। जिन मीटरों को कचरे में डाल दिया जाएगा, उनका खर्च और पुराने मीटरों का कोई हिसाब नहीं है। इसलिए, परिषद ने बिजली कंपनियों और राज्य सरकार को एक बार फिर इस योजना पर ध्यान देने और इसका पूर्ण वित्तीय विश्लेषण करने का सुझाव दिया है।

अतिरिक्त लागत वसूलने को लेकर स्थिति साफ नहीं
स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना को आत्मनिर्भर मानकर लागू किया गया है। लेकिन, इसके बढ़ते खर्च ने कई आर्थिक सवाल खड़े कर दिए हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि परियोजना के संचालन के दौरान क्या यह अतिरिक्त लागत वाकई में उपभोक्ताओं पर डाली जाएगी या नहीं। माना जा रहा है कि इस अतिरिक्त रकम का भी बोझ पावर कारपोरेशन पर पड़ेगा। विद्युत नियामक आयोग का मानना है कि परियोजना का विस्तार बिना उचित वित्तीय जांच के राज्य के पावर सेक्टर को जोखिम में डाल सकता है। आयोग ने अब बिजली कंपनियों को जल्द ही इस पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

Also Read