UPPCL Privatisation : QCBS प्रक्रिया से कंसल्टेंट के चयन में शुरुआत में ही खेल! पुराने मसौदे में बदलाव पर चुप्पी से उठे सवाल

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Jan 09, 2025 19:01

एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में क्यूसीबीएस प्रक्रिया के आधार पर टेंडर जारी करने के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल की अनुमति दी गई है। इसमें कंसल्टेंट को भाग लेने के लिए उसका न्यूनतम 500 करोड़ और अधिकतम 2000 करोड़ का टर्नओवर होना जरूरी है। यानी कि यह तो तय हो गया कि पूरे देश में जो चार बड़ी कंसलटेंट कंपनियां हैं, वही भाग ले पाएंगी।

Lucknow News : उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PuVVNL) के पीपीपी मॉडल को लेकर ट्रांजैक्शन एडवाइजर (कंसल्टेंट) के चयन का मामला गरमाया हुआ है। उपभोक्ता परिषद ने इसके तहत गुणवत्ता लागत आधारित चयन (QCBS) प्रक्रिया के लिए मंजूर रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) पर सवाल उठाए हैं।

अफसरों के हाथों में होगी कमान, कर सकते हैं मेहरबानी
संगठन ने कहा कि एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में क्यूसीबीएस प्रक्रिया के आधार पर टेंडर जारी करने के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल की अनुमति दी गई है। इसमें कंसल्टेंट को भाग लेने के लिए उसका न्यूनतम 500 करोड़ और अधिकतम 2000 करोड़ का टर्नओवर होना जरूरी है। यानी कि यह तो तय हो गया कि पूरे देश में जो चार बड़ी कंसलटेंट कंपनियां हैं, वही भाग ले पाएंगी। सबसे चौंकाने वाला मामला यह है कि मनचाहे कंसलटेंट का चुनाव किया जाना बहुत आसान हो गया है। दरअसल 80 व 20 के आधार पर कंसल्टेंट का चयन किया जाएगा, जिसमें फाइनेंशियल बिड केवल 20 नंबर की होगी और 80 नंबर का एक्सपीरियंस प्रस्तुतीकरण पर नंबर के आधार पर होगा। यह उच्चाधिकारियों के हाथ में होगा यानी, जिसको वह ज्यादा नंबर दे देंगे, उसकी दर चाहे जितनी अधिक हो, चाहे वह न्यूनतम हो अधिकतम हो, एल-1 टेंडर से मतलब नहीं रहेगा। अफसरों की मेहरबानी से आसानी से टेंडर मिल जाएगा। ऐसे में टेंडर की प्रक्रिया शुरू होते ही पारदर्शिता का अभाव सामने आ गया है।



पुराने मसौदे में क्यों करना पड़ा बदलाव, अब तक नहीं सामने आया सच
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि सबसे पहले प्रदेश सरकार को यह बताना चाहिए कि जब एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में 5 दिसंबर 2024 को पूरी प्रक्रिया को मंजूरी दी गई, उसमें अनेक ऐसे मामलों का खुलासा हुआ, जिससे निजीकरण के फलस्वरुप नई बनने वाली कंपनियों को लेने वाले उद्योगपतियों का फायदा सामने आया। ऐसे में क्या सरकार इसकी कोई जांच कराएगी ? अगर नहीं कराएगी तो अब पुनः उद्योगपतियों को ही फायदा देने के लिए आगे कार्रवाई को क्यों बढ़ाया जा रहा है। सभी को पता है कि निजीकरण ना तो किसानों और न उपभोक्ताओं के हित में है। इसी तरह पीपीपी मॉडल से बेरोजगार युवाओं को भी नुकसान है। ऐसे में यह किसके हित में है, ये भी साफ होना चाहिए।

2019 में ऊर्जा मंत्री जता चुके हैं नाराजगी, फिर उसी राह पर यूपीपीसीएल प्रबंधन
अवधेश वर्मा ने कहा कि वर्ष 2019 में जब प्रदेश में बिलिंग और आईटी के कार्यों के लिए क्यूसीबीएस व्यवस्था को लागू किया गया, तो उपभोक्ता परिषद के अनुरोध पर तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष को निर्देश जारी करके इस व्यवस्था को समाप्त कर पूरे मामले की जांच और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का निर्देश दिया। आज उसी व्यवस्था को एनर्जी टास्क फोर्स में मंजूरी दी गई, ये बेहद दुर्भाग्य की बात है। 

 

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