Chaudhary Charan Singh : घास फूस की मढ़ैया में जन्मे चौधरी चरण सिंह का व्यक्तित्व मेरठ में फला फूला

UPT | पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह पुण्य तिथि पर विशेष।

May 30, 2024 02:13

अपने लिए कुछ करने के बजाए वो रात दिन किसानों के लिए जुटे रहे। चुनाव आते तो छपरौली के गांव और गलियों में चौधरी साहब निकल जाते। किसानों के घर में ही रात गुजारते और उन्हीं से चुनाव के लिए एक वोट और नोट...

Short Highlights
  • मेरठ के हापुड़ नूरपुर गांव में जन्मे थे चौधरी चरण​ सिंह 
  • मेरठ जीआईसी से पढ़ाई के बाद मेरठ कालेज में दाखिला
  • 1937 में मेरठ से पहला चुनाव लड़कर शुरू की थी राजनीतिक पारी 
Chaudhary Charan Singh death anniversary :  आज भारत रत्न चौधरी चरण सिंह की पुण्य तिथि है। चौधरी चरण सिंह का मेरठ से काफी नजदीकी रिश्ता रहा है। चौधरी चरण सिंह की जन्मभूमि भी मेरठ ही रही है। चौधरी चरण सिंह ने 1902 में हापुड के गांव नूरपुर में घास, फूंस की मढैया में जन्म लिया था। उनके पिता मीर सिंह और मां का नाम नेत्रकौर था। पिता मीर सिंह कुचेसर के जमीदार के पास बटाई पर खेती करते थे। चौधरी साहब के राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी मेरठ से हुई। चौधरी चरण सिंह ने 1937 में पहली बार प्रांतीय विधानसभा में मेरठ दक्षिण-पश्चिम सीट से चुनाव जीता था। उस समय मेरठ में गाजियाबाद और बागपत तहसीलें शामिल थीं।

अंतिम पल तक वंचितों के लिए लड़ने वाले चौधरी चरण सिंह
किसानों के मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को हाल में ही केंद्र सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया। किसान परिवार में पैदा होकर अंतिम पल तक वंचितों के लिए लड़ने वाले चौधरी चरण सिंह का व्यक्तित्व मेरठ में फला फूला। चौधरी चरण सिंह ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक मेरठ में हासिल की। इसके बाद मेरठ दक्षिण पश्चिम क्षेत्र से 1937 में प्रांतीय विधानसभा के चुनाव में 78 प्रतिशत वोट पाकर राजनीतिक पारी शुरू की। इसी सीट से 1946 में चौधरी चरण सिंह दोबारा जीते थे। 

प्राथमिक से लेकर कानून की पढ़ाई भी मेरठ से 
मेरठ जानी स्थित भूपगढ़ी गांव में चौधरी चरण सिंह के कुछ रिश्तेदार रहते थे। वह परिवार के साथ भूपगढ़ी चले आए। यहीं पर चरण सिंह का बचपन बीता। यहीं से प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने मेरठ जीआईसी से आगे की पढ़ाई पूरी की। पिता मीर सिंह 1922 में मोदीनगर के पास भदोला गांव चले गए।

पहली बार मेरठ दक्षिण पश्चिम सीट से विधायक बने
चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन मेरठ से शुरू हुआ।  वो 1937 में पहली बार प्रांतीय विधानसभा में मेरठ दक्षिण-पश्चिम सीट से जनप्रतिनिधि चुने गए। जिसमें गाजियाबाद और बागपत तहसीलें थीं। पूर्व प्रधानमंत्री के चिंतन की सार्थकता पर शोध पत्र लिखने वाले चौधरी चरण सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य डा. प्रतीत कुमार ने बताया कि यहीं से 1946 में वह चुनाव जीते थे।

मेरठ में कचहरी रोड स्थित दो कमरे के मकान में निवास 
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने 1926 में मेरठ कॉलेज से एलएलबी किया था। पश्चिमी कचहरी रोड स्थित उल्फत राय क्वार्टर संख्या 237 में चौधरी चरण सिंह रहते थे। उनकी बड़ी बहन रिसालो भी मेरठ एनएएस कॉलेज के सामने रहा करती थी। रिसालो संपन्न परिवार से थीं। किराए के मकान में उसकी ऊपर मंजिल पर चौधरी चरण सिंह रहते थे और नीचे उन्होंने कार्यालय बनाया हुआ था। बाहर के एक कमरे में उनके मुंशी शिवचरण दास रहते थे। यहां पर रह कर चौधरी चरण सिंह ने तीन चार साल मेरठ कचहरी में प्रैक्टिस की। इसके बाद चौधरी चरण सिंह गाजियाबाद में चले गए।

बागपत से जुड़ाव, छपरौली ने दी ताकत
किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह का निधन हुए भले ही 37 साल हो गए हैं। लेकिन बागपत के लोगों के दिलों में चौधरी चरण सिंह आज भी बसते हैं। लोगों को उनसे जुड़ी हर बात याद है। वह किसानों के हित की लड़ाई हमेशा लड़ते रहे। बागपत भले ही चौधरी चरण सिंह की जन्मभूमि नहीं हो लेकिन बागपत से उनके पूरे जीवन का जुड़ाव रहा। यहां के छपरौली से पहली बार 1937 में विधायक बने और वह बागपत से एक भी चुनाव नहीं हारे।

उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा
छपरौली से 1946, 1952,1962 और 1967 से लगातार चौधरी चरण सिंह विधायक चुने जाते रहे। जून 1951 में चौधरी चरण सिंह कैबिनेट मंत्री भी बने। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने लिए कुछ करने के बजाए वो रात दिन किसानों के लिए जुटे रहे। चुनाव आते तो छपरौली के गांव और गलियों में चौधरी साहब निकल जाते। किसानों के घर में ही रात गुजारते और उन्हीं से चुनाव के लिए एक वोट और नोट मांगते थे। 

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