53 साल बाद हिंदुओं के पक्ष में आया फैसला : ऐतिहासिक टीला दरगाह नहीं महाभारत का है लाक्षागृह 

UPT | बरनावा में महाभारत का लाक्षागृह

Feb 05, 2024 19:17

अदालत ने साफ कहा कि बरनावा में दरगाह नहीं बल्कि लाक्षागृह की जमीन है। अदालत के इस फैसले से हिंदुओं को 100 बीघा जमीन पर मालिकाना हक मिल गया है...

Short Highlights
  • मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, 100 बीघा जमीन पर हिंदुओं को मिला मालिकाना हक 
     
Baghpat News : बागपत जनपद में बरनावा गांव स्थित ऐतिहासिक टीला महाभारत का लाक्षागृह है या शेख बदरुउद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान को लेकर 53 वर्षों से न्यायालय में चल रहे केस पर सोमवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। बरनावा में दरगाह नहीं, लाक्षागृह की जमीन है और इसलिए ही मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई। अदालत ने साफ कहा कि बरनावा में दरगाह नहीं बल्कि लाक्षागृह की जमीन है। अदालत के इस फैसले से हिंदुओं को 100 बीघा जमीन पर मालिकाना हक मिल गया है। 

बरनावा के मुकीम खान ने दायर किया था केस  
सुनील पंवार ने बताया कि बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में मेरठ के सरधना की कोर्ट में वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से एक केस दायर कराया था। केस में लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। इसमें मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है। दोनों पक्ष से अन्य लोग केस की पैरवी कर रहे हैं। जिला अलग हो जाने के बाद अब यह मामला सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की कोर्ट में चल रहा था। वहीं, दोनों पक्षों के लोग अपने-अपने वकीलों के माध्यम से कोर्ट में साक्ष्य भी प्रस्तुत कर रहे थे। मामले में कोर्ट से मौके का मुआयना कराने की भी अपील की गई थी। 

दरगाह और कब्रिस्तान की जमीन राजस्व रिकार्ड में नहीं दर्ज 
केस में कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने के लिए पिछले कई महीने से जल्द तारीख लगाई जा रही थी। इस मामले में सोमवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और मुस्लिम पक्ष की याचिका को निरस्त कर दिया गया। कोर्ट में पेश किए गए साक्ष्य के आधार पर ये माना गया कि वहां दरगाह और कब्रिस्तान की जमीन किसी भी जगह राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है।

शेख बदरूद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान का था दावा 
इसमें मुकीम खान की तरफ से केस दायर करते हुए दावा किया गया था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर शेख बदरूद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान है। वह सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में दर्ज होने के साथ ही रजिस्टर्ड है। उसमें कहा गया था कि कृष्णदत्त महाराज बाहर के रहने वाले हैं और वह कब्रिस्तान को खत्म करके हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं। 

हिंदुओं का था यह तर्क 
बरनावा के लाक्षागृह स्थित संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य आचार्य अरविंद कुमार शास्त्री का कहना है कि यह एतिहासिक टीला महाभारत कालीन लाक्षागृह है। यहां सुरंग व अन्य अवशेष इसका प्रमाण हैं। इसके सभी साक्ष्य कोर्ट में पैरवी कर रही गांधी धाम समिति के पदाधिकारियों ने दिए हुए थे। गांधी धाम समिति के वकील रणवीर सिंह तोमर ने बताया कि उनकी तरफ से सभी साक्ष्य कोर्ट में दिए हुए थे। अदालत के फैसले से वह काफी खुश हैं। 

खुदाई में मिले थे महाभारत काल के साक्ष्य 
मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यहां उनके बदरुद्दीन नामक संत की मजार थी। इसे बाद में हटा दिया गया। यहां उनका कब्रिस्तान है। इसी विवादित 108 बीघे जमीन पर पांडव कालीन एक सुरंग है। दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर भागे थे। इतिहासकारों का दावा है कि इस जगह पर जो अधिकतर खुदाई हुई है। उसमें साक्ष्य मिले हैं। वे सभी हजारों साल पुराने हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां पर मिले हुए ज्यादातर सबूत हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब हैं। 

हजारों सालों से ये जगह पांडवकालीन
मुस्लिम पक्ष के दावे पर हैरानी जताई जाती रही है। इसी जमीन पर गुरुकुल एवं कृष्णदत्त आश्रम चलाने वाले आचार्य का कहना है कि कब्र और मुस्लिम विचार तो भारत में कुछ समय पहले आया, जबकि पहले हजारों सालों से ये जगह पांडवकालीन है।

हिंदू पक्ष ने मनाई खुशी
अदालत का फैसला आने के बाद हिंदू पक्ष के लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी मनाई। हिंदू पक्ष के लोगों ने कहा कि यह सच्चाई की जीत है। अदालत के इस फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि इस जगह कोई दरगाह नहीं थी। 

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