जिस सामुदायिक भवन की कीमत जीडीए पहले ही वसूल चुका है। जीडीए को उस संपत्ति को लीज पर देने का कानूनी अधिकार नहीं है।
Ghaziabad News: गाजियाबाद विकास प्राधिकरण एक बार फिर सवालों के घेरे में आ चुका है। जीडीए द्वारा सामुदायिक भवनों को लीज पर देने का मामला गरमा गया है। जीडीए पर आरोप है कि वह पहले ही आवंटियों से विकास शुल्क के नाम पर सामुदायिक भवनों की कीमत वसूल चुका है। जिस सामुदायिक भवन की कीमत जीडीए पहले ही वसूल चुका है जीडीए को उस संपत्ति को लीज पर देने का कानूनी अधिकार नहीं है। जीडीए ने सामुदायिक भवनों का निर्माण कम आय वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर किया था। लेकिन अब 5 हजार रुपये किराए पर मिलने वाला सामुदायिक भवन एक से दो लाख रुपये के किराए पर निजी बैंकट हॉल मालिकों द्वारा दिया जा रहा है।
यह है पूरा मामला
पूर्व पार्षद हिमांशु लव शर्मा ने जीडीए के सामुदायिक भवनों को लीज पर देने की वैधता पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि जीडीए पहले ही सामुदायिक भवनों की कीमत विकास शुल्क के नाम पर आवंटियों से वसूल चुका है। अब जीडीए कम आय वर्ग आयु के लोगों के लिए बनाए गए इन सामुदायिक भवनों को लीज पर देकर उनकी कमर तोड़ने का काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि सामुदायिक भवनों का निर्माण कम आय वर्ग के लोगों को ध्यान में रखते हुए किया गया था। जीडीए सामुदायिक भवन की कीमत विकास शुल्क के नाम पर आवंटियों से पहले ही वसूल चुका है। क्योंकि सड़क, नाली, सीवर और सामुदायिक भवन आवंटियों की सुविधा के लिए बनाए जाते हैं। इसके निर्माण के पीछे उद्देश्य था कि जो व्यक्ति बड़े बैंकट हॉल या बड़े फार्म हाउस में अपने बच्चों की शादी, जन्मदिन अथवा अन्य सामाजिक आयोजन नहीं कर सकते हैं ऐसे लोग जीडीए को मात्र पांच हजार रुपये किराया देकर सामुदायिक भवन की सुविधा ले सकते हैं।
लाखों रुपयों में हो रही बुकिंग
जीडीए ने शहर के कई सामुदायिक भवन निजी बैंकट हॉल मलिकों को लीज पर दे दिए हैं। सामुदायिक भवन अब बैंकट हॉल बन गए हैं। जो सामुदायिक भवन पांच हजार रुपये में मिल जाते थे। अब इनकी बुकिंग एक से दो लाख रुपये में होती है। पूर्व पार्षद हिमांशु लव ने बताया कि जीडीए की राह पर अब नगर निगम भी चल पड़ा है। नगर निगम के सामुदायिक भवन जहां 2 से 4 हजार रुपये में आसानी से किराए पर मिल रहे थे अब वे भी आम आदमी की पहुंच से दूर हो जायेंगे। उन्होंने बताया कि जनप्रतिनिधि और जीडीए बोर्ड मेंबर भी इसके विरोध में आवाज नहीं उठा रहे हैं। जनता भी खामोश है, जबकि सामुदायिक भवन का शुक्ल जीडीए पहले ही अवंटियों से वसूल चुका है। जिस सामुदायिक भवन का शुल्क जीडीए पहले ही वसूल चुका है उन सामुदायिक भवनों को जीडीए किसा आधार पर लीज पर दे रहा है?