लोकसभा में 'वन नेशन,वन इलेक्शन' पर हंगामा : कांग्रेस और अन्य दलों ने बताया संघीय ढांचे के खिलाफ, जानें किस पार्टी ने दिया समर्थन

UPT | Parliament Winter Session

Dec 17, 2024 17:16

सरकार ने संसद में मंगलवार को 'संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024' और 'केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक 2024' पेश किया। इन विधेयकों को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में प्रस्तुत किया...

New Delhi News : सरकार ने संसद में मंगलवार को 'संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024' और 'केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक 2024' पेश किया। इन विधेयकों को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में प्रस्तुत किया। इन विधेयकों का उद्देश्य 'एक देश, एक चुनाव' की प्रणाली को लागू करना था, लेकिन लोकसभा में इस पर तीव्र हंगामा हुआ। बिल के पक्ष और विपक्ष में तीव्र बहस हुई, जिसके बाद इसे डिवीजन द्वारा पास किया गया और फिर इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की प्रक्रिया शुरू हुई। 

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने किया विरोध
इस विधेयक का विरोध कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने किया। कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी ने इसे संविधान के सातवीं अनुसूची और मूल संरचना के खिलाफ बताया। उनका कहना था कि यह विधेयक संघवाद के सिद्धांत को कमजोर करता है और संविधान के मूल ढांचे पर हमला करता है। मनीष तिवारी ने कहा कि संसद के पास जो अधिकार हैं, वे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों से उपर नहीं हो सकते और इस विधेयक का उद्देश्य उन अधिकारों को छीनना है।



संविधान के खिलाफ है ये बिल- गौरव गोगोई
लोकसभा में विपक्ष के उपनेता गौरव गोगोई ने भी इस बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह बिल चुनाव आयोग को अत्यधिक अधिकार देता है और संविधान के खिलाफ है। गौरव गोगोई ने विशेष रूप से राष्ट्रपति की शक्तियों में बढ़ोतरी पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इस बिल के माध्यम से राष्ट्रपति को विधानसभा को भंग करने की अत्यधिक शक्तियां मिल जाएंगी, जो संघीय संरचना को कमजोर करेगा। इसके अलावा, उन्होंने नीति आयोग की रिपोर्ट को आलोचना करते हुए कहा कि यह संवैधानिक संस्था नहीं है और उसकी रिपोर्ट के आधार पर इस विधेयक को पारित किया जा रहा है।

सपा सांसद ने किया विरोध
समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने भी इस विधेयक का विरोध किया। उन्होंने इसे तानाशाही की ओर बढ़ने का प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि जिस सरकार ने हाल ही में संविधान की रक्षा की बात की थी, वही अब उसी संविधान को बदलने की कोशिश कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब भाजपा सरकार राज्य स्तर पर चुनाव भी नहीं करा पा रही है, तो वह 'एक देश, एक चुनाव' की बात कैसे कर सकती है। 

पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी का उल्लंघन- ओवैसी
वहीं शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अनिल देसाई और एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस बिल का विरोध किया। ओवैसी ने इसे संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ बताया और कहा कि यह बिल राष्ट्रपति-प्रमुख शासन प्रणाली को लागू करने का प्रयास है। उन्होंने इसे फेडरलिज़्म के सिद्धांत का उल्लंघन बताया। इस बीच, राजस्थान के लेफ्ट पार्टी के सांसद अमराराम ने इसे तानाशाही की ओर बढ़ने की कोशिश कहा और राज्य सरकारों के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया।

डीएमके सांसद ने उठाए सवाल
डीएमके सांसद टीआर बालू ने इस बिल को संविधान के खिलाफ बताते हुए सवाल उठाया कि जब सरकार के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है, तो यह विधेयक कैसे पेश किया जा सकता है। उन्होंने इस बिल को वापस लेने की मांग की और इसे जेपीसी को भेजने का प्रस्ताव रखा। वहीं, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद कल्याण बनर्जी ने इसे अल्ट्रा-वायरस (संविधान से बाहर) कहा और इसका विरोध किया। उनका कहना था कि इस विधेयक से राज्यों की स्वायत्तता कमजोर होगी और यह संविधान के खिलाफ है।

संविधान के बुनियादी ढांचे को नष्ट करने का प्रयास - एनसीपी 
कांग्रेस की सांसद सुप्रिया सुले ने भी इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह चुनाव आयोग को असंवैधानिक अधिकार देने का प्रयास है। उन्होंने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया और कहा कि यह विधेयक संविधान के बुनियादी ढांचे को नष्ट करने का प्रयास है। इस दौरान, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और इंडियन मुस्लिम लीग के सांसदों ने भी इस बिल का विरोध किया और इसे संविधान का उल्लंघन करार दिया।

शिवसेना और टीडीपी ने दिया समर्थन
इस बिल का समर्थन शिवसेना (शिंदे) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने किया। शिवसेना (शिंदे) के श्रीकांत शिंदे ने कहा कि विपक्ष को सुधार शब्द से नफरत है और उन्होंने 'एक देश, एक चुनाव' के प्रस्ताव को समर्थन देने का फैसला किया। वहीं, टीडीपी के केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने भी इस बिल का समर्थन किया और कहा कि इससे चुनावों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। उनका कहना था कि राजनीतिक दलों के चुनाव पर खर्च एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है और अगर चुनाव एक साथ होंगे, तो इससे काफी बचत होगी।

क्या बोले अमित शाह
गृह मंत्री अमित शाह ने इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि जब यह विधेयक कैबिनेट में पेश हुआ था, तब प्रधानमंत्री ने इसे जेपीसी को भेजने का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने कहा कि इस बिल पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए और जेपीसी के द्वारा इसकी विस्तृत जांच की जानी चाहिए। इसके बाद मंत्री ने भी कहा कि वे इसे जेपीसी को भेजने के लिए तैयार हैं और इससे संसद में आगे विस्तृत चर्चा होगी।

जेपीसी के पास भेजने का निर्णय
वहीं इस विधेयक के पास होने के बाद सरकार ने इसे जेपीसी के पास भेजने का निर्णय लिया। जेपीसी में इसकी समीक्षा की जाएगी और इसके बाद यह विधेयक संसद में फिर से प्रस्तुत किया जाएगा। इस दौरान, सरकार ने विपक्षी दलों के सवालों का जवाब देने का भी वादा किया और कहा कि विधेयक की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठाया जाएगा।

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