महिला दिवस विशेष : पारिवारिक विरासत को बचाने के लिए राजनीति में रखा था कदम, फिर भी प्रधानमंत्री पद को ठुकराया

UPT | सोनिया गांधी

Mar 08, 2024 11:27

क़िस्मत मे है जो लिखा, वो आखिर होकर रहता हैं... इसका सीधा उदाहरण सोनिया गांधी है। दरअसल सोनिया गांधी कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं, इसके बावजूद भी वह राजनीति में...

महिला दिवस विशेष : क़िस्मत मे है जो लिखा, वो आखिर होकर रहता हैं... इसका सीधा उदाहरण सोनिया गांधी है। दरअसल सोनिया गांधी कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं, इसके बावजूद भी वह राजनीति में आईं और एक ऐसा चेहरा बन कर उभरी की आज भारत की राजनीति के बड़े चेहरों में उनकी नाम शामिल है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले को काग्रेंस का गण कहा जाता है। क्योंकि रायबरेली लोकसभा सीट के इतिहास को देखेंगे तो पता चलता है कि 1951 से यहां हर बार नेहरू-गांधी परिवार का कोई न कोई सदस्य चुनाव लड़ा। वहीं इस बीच सिर्फ 2 बार ऐसे मौके आए, जब गांधी परिवार के किसी सदस्य ने इस सीट से चुनाव नहीं लड़ा और वो था 1962 और 1999 का चुनाव।

इटली में हुआ जन्म और कैम्ब्रिज से की पढ़ाई
सोनिया गांधी का असली नाम एंटोनिया एडविजे अल्बिना मेनो है। उनका जन्म 9 दिसंबर 1946 में स्टेफानो और पओला माइनो के घर इटली के लुसियाना में हुआ था। सोनिया गांधी ने अपना बचपन इटली के ऑर्बसानो नाम के एक कस्बे मे बिताया। यहां उनके पिता की कंस्ट्रक्शन की कंपनी थी। सोनिया गांधी ने एक कैथोलिक स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा हासिल की थी। इसके बाद वह 1964 में कैम्ब्रिज चली गई थी। वे फ्लाइट अटैंडेंट बनने के उद्दश्य से कैम्ब्रिज में गई थी। क्रैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई थी। उस समय वह अंग्रेजी भाषा का कोर्स कर रही थीं। वहीं दोनों में प्यार हुआ और दोनों ने भारत आकर शादी कर ली। 

पहले पति ने किया राजनीति में प्रवेश
आपको बता दें कि सोनिया गांधी से शादी करने के बाद राजीव गांधी ने पायलट के रूप में अपने करियर की शुरूआत की जबकि उनकी मां देश की प्रधानमंत्री थीं और उनके छोटे भाई संजय गांधी मां के साथ राजनीति में सक्रिय थे। वहीं 1981 में संजय गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी ने राजनीति में अपना कदम रखा। 

पारिवारिक विरासत को बचाने के लिए राजनीति में आई सोनिया
1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद का भार संभाला और उसके सात साल राजीव गांधी की मौत हो गई। जिसने सोनिया गांधी को भावनात्मक तौर पर राजनीति से और दूर कर दिया था लेकिन वे ज्यादा साल तक राजनीति से दूर ना रह सकीं और अपने परिवार की विरासत को बचाने के लिए 1997 में कांग्रेस में आईं और उसके एक साल बाद कांग्रेस की मुखिया बन गईं। वहीं आपको बता दें कि हर बार सोनिया को शिद्दत से ये एहसास हो रहा था कि ये राजनीति ही थी जो राजीव और उनकी जिंदगी की दुश्मन साबित हुई थी, पर विकल्प कोई नहीं था। उसके बाद सोनिया काफी मजबूत बनकर निकली, और राजनीति की दुनिया में काफी नाम कमाया।

प्रधानमंत्री पद को ठुकराया
2004 में सोनिया गांधी ने देश के प्रधानमंत्री पद को ठुकरा दिया था, लेकिन वे गठबंधन की नेता बनी रहीं और नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की भी प्रमुख रही। अपने करियर में सोनिया गांधी कई परिषदों की प्रमुख रही हैं। जिनमें सूचना का अधिकार, फूड सिक्यूरिट बिल, मनरेगा जैसी संस्थाओं की प्रमुख थी। 2004 में जब उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रस्ताव दिया गया तो उन्हें विदेशी मूल के नागरिक होने के कारण विरोध झेलना पड़ा।

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