इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : जमीन खरीद-बिक्री में खरीदार ही कर सकता है एफआईआर, कहा- सिविल मामलों में आपराधिक मुकदमा चलाना कानून का दुरुपयोग

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Dec 23, 2024 10:32

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में बरेली जिले के इज्जतनगर थाना क्षेत्र में जमीन की खरीद-बिक्री के मामले में दलीलें सुनने के बाद कहा कि सिविल मामलों में आपराधिक मुकदमा दर्ज करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि सिविल मामलों से जुड़े विवादों में आपराधिक मुकदमे का सहारा लेना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह निर्णय तब आया जब एक जमीन खरीद-बिक्री के मामले में ठगी का मुकदमा एक खरीदार की ओर से दर्ज कराया गया। उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि केवल वही व्यक्ति जो विवादित संपत्ति का वास्तविक खरीदार है, वह ही धोखाधड़ी का मामला दर्ज करा सकता है। 

बरेली का है मामला
यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की पीठ ने रमनदीप सिंह और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। मामला बरेली जिले का है जहां इज्जतनगर थाने में बरेली विकास प्राधिकरण (बीडीए) ने 2022 में एक फर्जी सेल डीड के आधार पर सरकारी जमीन बेचने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था। मुकदमे में आरोप था कि यह जमीन राज्य सरकार के स्वामित्व में थी और इसके बावजूद इसे बेचा गया।



याचिकाकर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ताओं के वकीलों पवन किशोर और राहुल अग्रवाल ने अदालत के समक्ष दलील दी कि यह एक सिविल मामला है जिसे गलत तरीके से आपराधिक रूप दिया गया। उन्होंने बताया कि जमीन की बिक्री के दिन तक याचिकाकर्ता का नाम खतौनी में दर्ज था और उस पर किसी प्रकार का विवाद नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला धोखाधड़ी का नहीं है क्योंकि सेल डीड के समय जमीन पर उनका वैधानिक स्वामित्व था।

बीडीए की दलील
बरेली विकास प्राधिकरण (बीडीए) के वकील ने तर्क दिया कि यह जमीन सीलिंग अधिनियम के तहत राज्य सरकार के अधिकार में थी। अधिसूचना जारी होने के बाद चिह्नित भूमि पर कोई भी लेन-देन वैध नहीं माना जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी जमीन को बेचना शुरू से ही अमान्य है और यह एक गंभीर अपराध है।

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कोर्ट का फैसला
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने माना कि सिविल मामलों में आपराधिक मुकदमा दर्ज कराना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मुकदमे व्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा को प्रभावित करते हैं और उन्हें जारी रखना मानसिक और सामाजिक आघात का कारण बनता है।

कार्रवाई रद्द
कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह मामला मूल रूप से सिविल प्रकृति का है और इसमें किसी भी खरीददार ने धोखाधड़ी का आरोप नहीं लगाया है इसलिए दर्ज मुकदमे की पूरी कार्यवाही को रद्द किया जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार के मामलों में आपराधिक मुकदमों से बचने के लिए न्यायालय को सतर्क रहना चाहिए।

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