इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : अगर बिना हिंदू रीति रिवाज के विवाह हुआ तो मैरिज सर्टिफिकेट का कोई महत्व नहीं

UPT | Allahabad High Court

Jul 11, 2024 12:49

अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार नहीं किया गया है, तो उसके लिए मैरिज रजिस्ट्रार द्वारा जारी मैरिज सर्टिफिकेट या आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी किए गए प्रमाणपत्र...

Short Highlights
  • कोर्ट ने कहा कि बिना रीति रिवाज के विवाह नहीं होने पर प्रमाणपत्र का कोई महत्व नहीं है
  • कोर्ट ने युवती के पक्ष में फैसला सुनाते हुए विवाह को अमान्य घोषित किया
Prayagraj News : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने एक मामले को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। दरअसल, एक कथित धार्मिक नेता द्वारा 18 वर्षीय युवती के साथ धोखाधड़ी कर किए गए विवाह को अमान्य घोषित किया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार नहीं किया गया है, तो उसके लिए मैरिज रजिस्ट्रार द्वारा जारी मैरिज सर्टिफिकेट या आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी किए गए प्रमाणपत्र का कोई वैधानिक महत्व नहीं है।

विवाह शून्य घोषित करने की मांग
इस निर्णय को न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला ने युवती की दाखिल प्रथम अपील पर पारित किया है। अपील में परिवार न्यायालय, लखनऊ के 29 अगस्त 2023 के निर्णय को चुनौती दी गई थी। युवती ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत वाद दाखिल करते हुए, 5 जुलाई 2009 को हुए कथित विवाह को शून्य घोषित करने की मांग की थी। वहीं प्रतिवादी ने भी धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापना के लिए वाद दाखिल किया था।

युवती ने लगाए आरोप
परिवार न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए, अपीलार्थी युवती ने कहा कि प्रतिवादी, जो एक धर्मगुरु है, ने धोखाधड़ी से उसके साथ विवाह का दावा किया। युवती की मां और मौसी प्रतिवादी की अनुयायी थीं। 5 जुलाई 2009 को, प्रतिवादी ने युवती और उसकी मां को अपने पास बुलाया और धार्मिक संस्थान का सदस्य बनाने के बहाने कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए। फिर 3 अगस्त 2009 को, उसने एक बिक्री विलेख के गवाह बनने के नाम पर रजिस्ट्रार कार्यालय में दोनों से हस्ताक्षर करवाए। कुछ दिन बाद, प्रतिवादी ने युवती के पिता को बताया कि 5 जुलाई को आर्य समाज मंदिर में उसका युवती से विवाह हो गया था और 3 अगस्त को इसका पंजीकरण भी हो चुका था। युवती का कहना था कि यह सब कपटपूर्ण तरीके से किया गया था।

कोर्ट ने विवाह को अमान्य घोषित किया
वहीं बाद में प्रतिवादी ने इन आरोपों का खंडन किया। परिवार न्यायालय ने दोनों वादों पर साथ सुनवाई की। न्यायालय ने निर्णय इस आधार पर दिया कि विवाह को सिद्ध करने का भार प्रतिवादी पर था, परंतु हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के तहत हिंदू रीति से विवाह होने का सिद्धांत नहीं माना जा सकता।

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