इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की पूर्व MLC की अर्जी खारिज : कहा- 'गैर राज्य की पावर ऑफ अटॉर्नी पर दूसरे प्रदेश में मुकदमे की पैरवी संभव नहीं'

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Dec 02, 2024 22:32

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ किया है कि किसी गैर राज्य के लिए दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर दूसरे राज्य में मुकदमे की पैरवी नहीं की जा सकती।

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ किया है कि किसी गैर राज्य के लिए दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर दूसरे राज्य में मुकदमे की पैरवी नहीं की जा सकती। इसी आधार पर पूर्व एमएलसी और बसपा नेता इकबाल उर्फ बाला की याचिका खारिज कर दी गई। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल ने दिया।

कोर्ट का फैसला और तर्क
इकबाल ने अपने परिचित तनसीफ को पावर ऑफ अटॉर्नी देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनका कहना था कि वह व्यवसायिक कारणों से देश से बाहर हैं और उनके मुकदमों की पैरवी के लिए यह पावर ऑफ अटॉर्नी दी गई है। कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि पावर ऑफ अटॉर्नी केवल दिल्ली की अदालतों और सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों के लिए है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और अपर शासकीय अधिवक्ता विकास सहाय ने इस याचिका का विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि यह पावर ऑफ अटॉर्नी इलाहाबाद हाईकोर्ट में उपयोग करने के लिए नहीं है। कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार किया और याचिका को पोषणीय नहीं मानते हुए खारिज कर दिया।



इकबाल के खिलाफ दर्ज मामले
इकबाल के खिलाफ सहारनपुर के मिर्जापुर थाने में 25 अगस्त 2022 को सामूहिक बलात्कार और जान से मारने की धमकी का मामला दर्ज हुआ था। इसके अलावा, गैर जमानती वारंट और कुर्की की कार्रवाई के बावजूद विवेचना में सहयोग न करने पर उनके खिलाफ विधिक आदेश का पालन न करने का मुकदमा भी दर्ज हुआ। पुलिस ने इस मामले में जांच पूरी कर चार्जशीट दाखिल कर दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के मुकदमे को रद्द कर दिया था। इसके बाद इकबाल ने हाईकोर्ट में अपने खिलाफ विधिक आदेश का पालन न करने के मामले की चार्जशीट रद्द करने की याचिका दाखिल की, जिसे पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से दायर किया गया था।

कोर्ट की सख्ती
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि गैर राज्य की पावर ऑफ अटॉर्नी का उपयोग दूसरे राज्य में मुकदमे की पैरवी के लिए नहीं किया जा सकता। इससे पहले भी हाईकोर्ट की एक अन्य बेंच ने इसी आधार पर इकबाल की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट के इस आदेश ने कानूनी प्रक्रियाओं में पावर ऑफ अटॉर्नी के सीमित उपयोग को रेखांकित किया है।

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