इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला : पत्नी निजी संपत्ति नहीं, पति की मानसिकता में बदलाव की जरूरत

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Jan 03, 2025 09:41

पति का उनकी स्वतंत्रता और निजता पर अधिकार नहीं हो सकता। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने मिर्जापुर के बृजेश यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी।

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि शादी का मतलब पत्नी पर स्वामित्व नहीं है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पत्नी का शरीर, उसका अंतरंग जीवन और उसके अधिकार पूरी तरह से उसके अपने हैं। पति का उनकी स्वतंत्रता और निजता पर अधिकार नहीं हो सकता। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने मिर्जापुर के बृजेश यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी। इस मामले में पति ने अपनी पत्नी द्वारा दर्ज आपराधिक मुकदमे को रद्द करने की मांग की थी।

जानिए क्या था मामला
यह मामला मिर्जापुर के चुनार कोतवाली थाना क्षेत्र का है। बृजेश यादव ने रामपुर कोलना निवासी महिला से शादी की थी। पत्नी ने 9 जुलाई 2023 को बृजेश के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। आरोप था कि बृजेश ने मुकदमेबाजी की रंजिश में उसके अंतरंग वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिए। पुलिस जांच के बाद ट्रायल कोर्ट में आईटी एक्ट की धाराओं के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया। ट्रायल कोर्ट ने बृजेश को समन जारी कर तलब किया। इसके खिलाफ बृजेश ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पति के वकील ने दलील दी कि पत्नी का अंतरंग जीवन उसका अधिकार है। क्योंकि वह कानूनी रूप से उसकी पत्नी है। इसलिए आईटी एक्ट के तहत दर्ज मुकदमा निरस्त किया जाना चाहिए।

कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने पति की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा, “शादी से पति को पत्नी पर स्वामित्व या नियंत्रण का अधिकार नहीं मिल जाता। पत्नी की निजता और स्वतंत्रता के अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित हैं।" न्यायमूर्ति ने स्पष्ट किया कि बृजेश द्वारा अपनी पत्नी के अंतरंग वीडियो वायरल करना वैवाहिक रिश्ते की शुचिता को भंग करता है।

'पुरानी मानसिकता का त्याग जरूरी'
कोर्ट ने कहा, “यह सर्वोच्च समय है कि पुरुष यह मानसिकता त्याग दें कि पत्नी उनकी निजी संपत्ति है। विवाह एक पवित्र रिश्ता है, जिसकी नींव विश्वास पर टिकी होती है। पत्नी को पति से यह अपेक्षा होती है कि वह उसके समर्पण और भरोसे का सम्मान करेगा।”

'विवाह और समानता का आदर्श'
फैसले में न्यायालय ने कहा, “एक दौर था, जब विवाह के बाद महिला की कानूनी पहचान पति के अधीन कर दी जाती थी। आज की दुनिया में यह धारणा सैद्धांतिक रूप से खत्म हो चुकी है। पत्नी की शारीरिक स्वायत्तता और गोपनीयता का सम्मान करना न केवल कानूनी दायित्व है, बल्कि यह समानता को बढ़ावा देने के लिए एक नैतिक अनिवार्यता भी है।”

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