नागा साधुओं की रहस्यमी दुनिया जानने को कौतूहल : महाकुंभ में श्रद्धालुओं के बीच बने मुख्य आकर्षण, जानें कैसे हुई उत्पत्ति

UPT | Mahakumbh 2025

Jan 10, 2025 18:00

महाकुंभ में आए नागा साधुओं से बातचीत में समाने आया कि उनकी दुनिया के अपने रहस्य हैं, जिनके बारे में अब तक बहुत कम जानकारी ही सामाजिक दुनिया में सामने आ सकी है। वह भी उतना, जितना वह उजागर करते हैं। वास्तव में नागा साधु कुंभ के आयोजन की प्राणवायु हैं। इनके बिना इस आयोजन को अधूरा माना जाता है।

Prayagraj News : महाकुंभ 2025 में भव्य आयोजन को प्रयागराज की धरती तैयार है। अब तक के सबसे भव्य आयोजन में शामिल होने के लिए अखाड़ों की धर्म ध्वजा लहरा रही है। साधु संत पूरे उत्साह में हैं। शाम होते-होते दूधिया रोशनी में नहाई कुंभनगरी ​की विराट आभा देखते ही मन को प्रभुल्लित करने लगती है। इस आयोजन में देश दुनिया के कोने-कोने से 40 से 50 करोड़ श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आने का अनुमान है। पहला शाही स्नान पौष पूर्णिमा पर 13 जनवरी को होगा। इसके अगले दिन 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर आस्था का महासैलाब पुण्य की डुबकी लगाने को उमड़ेगा।

नागा साधुओं की रहस्यमी दुनिया को जानने में रोचकता
देखा जाए तो कुंभ नगरी की रेतीली धरा पर कदम रखते ही धर्म और आध्यात्म का भाव मन में उमड़ने लगता है। सनातन धर्म की आस्था से जुड़ी हर परंपरा यहां श्रद्धालुओं को बरबस अपनी ओर खींच लेती है। इन्हें लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्सकुता का भाव देखने को मिल रहा है। इन्हीं का एक अभिन्न अंग नागा साधु लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। देश विदेश से आने वाले लोग इनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानने के उत्सुक हैं। वास्तव में कुंभ ही एकलौता ऐसा मौका होता है, जब देशभर से नागा साधुओं को आम जनमानस इतने करीब से देख पाता है। यहां आने पर उनको देखकर डर नहीं बल्कि उनके बारे में जानने, उनकी तपस्या, साधना को लेकर उत्सकुता दूर करने की भावना जागृत होती है।



विदेशी श्रद्धालुओं में नागा साधुओं को जानने का सबसे ज्यादा कौतूहल
महाकुंभ में आए नागा साधुओं से बातचीत में समाने आया कि उनकी दुनिया के अपने रहस्य हैं, जिनके बारे में अब तक बहुत कम जानकारी ही सामाजिक दुनिया में सामने आ सकी है। वह भी उतना, जितना वह उजागर करते हैं। वास्तव में नागा साधु कुंभ के आयोजन की प्राणवायु हैं। इनके बिना इस आयोजन को अधूरा माना जाता है। कुंभ आने वाले विदेशी श्रद्धालुओं की बात करें तो नागा साधुओं के किस्से कहानी और उनके जीवन का अंदाज उन्हे सबसे ज्यादा आकर्षित करता है। ये लोग सबसे ज्याद सेल्फी, वीडियोग्राफी नागा साधुओं के इर्द-गिर्द की करते हैं। इसीलिए कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण नागा साधु होते हैं, जिनका जीवन, परंपरा और रहस्यमयी अस्तित्व आम जनमानस के लिए कौतूहल का विषय बना रहता है। यह मेला नागा साधुओं के जीवन को करीब से देखने का अनूठा अवसर प्रदान करता है, जो अपनी भिन्न वेशभूषा, जीवनशैली और युद्ध कलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।

नागा शब्द का अर्थ और परंपरा का उद्गम
देखा जाए तो 'नागा' शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ 'पर्वत' होता है। पर्वतीय जीवन से जुड़े ये साधु भगवान शिव के अनुयायी हैं। कच्छारी भाषा में 'नागा' का अर्थ 'बहादुर लड़ाकू व्यक्ति' है। हालांकि, नागा का एक अर्थ नग्न रहना भी है। लेकिन, इसका सीधा संबंध केवल शरीर पर कपड़े न पहनने से नहीं है। नागा साधुओं की परंपरा दसनामी संप्रदाय और नाथ परंपरा से जुड़ी है, जो गुरु दत्तात्रेय और महर्षि वेद व्यास की विरासत मानी जाती है।

इतिहास : सिंधुघाटी सभ्यता से नागा साधुओं का जुड़ाव
नागा साधुओं की परंपरा प्राचीन सिंधुघाटी सभ्यता से जुड़ी मानी जाती है। इतिहासकारों के अनुसार, उस युग में जटाधारी तपस्वी शिव की उपासना करते थे। यह परंपरा धीरे-धीरे अखाड़ों के निर्माण और संगठित साधु-संत समुदायों के रूप में विकसित हुई। आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना की और नागा साधुओं को धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए तैयार किया।

नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया
नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठोर और लंबी होती है। इसमें लगभग 12 साल का समय लगता है। सबसे पहले, इच्छुक व्यक्ति को ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जाती है। इसके बाद दीक्षा, यज्ञोपवीत, और पिंडदान की प्रक्रिया होती है। नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को अपने परिवार और सांसारिक जीवन का पूर्ण त्याग करना पड़ता है। पिंडदान के बाद साधु अपने पिछले जन्म को समाप्त मानते हैं और केवल अपने अखाड़े और गुरु को ही परिवार मानते हैं। यह बेहद कठिन प्रक्रिया होती है। आम जनमानस में जीवित रहते किसी की मृत्यु के बारे में सोचना, बात करना भी अशुभ माना जाता है। लेकिन, नागा साधु बनने की पहली सीढ़ी ही अपने ​पिंडदान से शुरू होती है। इसके जरिए कड़ा संदेश दिया जाता है​ कि अब सांसारिक जीवन, माया-मोह से कोई वास्ता नहीं है। जीवन के सब रिश्ते नाते भूलकर अब कड़ी  तपस्या नागा परंपरा का अंतिम सांस तक पालन करना होगा।

रहस्यमयी जीवनशैली और कठोर तपस्या
नागा साधु कपड़े नहीं पहनते और अपने शरीर पर भस्म का लेप लगाते हैं। वह ठंड, गर्मी या किसी भी मौसम में नग्न रहते हैं। नागा साधुओं का जीवन कठोर तपस्या, संयम और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है। वह दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं और सात घरों से भिक्षा मांगने की अनुमति होती है। यदि उन्हें भिक्षा नहीं मिलती, तो वह भूखे रह जाते हैं। इसके अलावा इन्हें अपने अखाड़े से जुड़ी हर परंपरा और सख्त नियमों का भी पालन करना होता है। नागा साधु हर कसौटी पर पूरी तरह से खरे उतरते हैं। इनकी कड़ी साधना ही इन्हें तपस्या के सर्वोच्च मापदंड तक पहुंचाती है।

युद्ध कला में पारंगत नागा साधु
नागा साधु न केवल आध्यात्मिक तपस्या में निपुण होते हैं, बल्कि युद्ध कला में भी पारंगत होते हैं। इतिहास में कई युद्ध नागा साधुओं ने लड़े हैं। मुगलों से इनके युद्ध का भी इतिहास में जिक्र है। अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ उनका योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने उन्हें शस्त्र और शास्त्र दोनों में प्रशिक्षित किया था ताकि धर्म और संस्कृति की रक्षा की जा सके।

आध्यात्मिक शक्तियों का प्रयोग, नागा साधुओं की भू-समाधि परंपरा
नागा साधुओं के पास कथित रूप से अद्भुत आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं। यह शक्तियां कठोर तप और साधना के माध्यम से प्राप्त की जाती हैं। हालांकि, नागा साधु अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करते और उनका उपयोग लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए करते हैं। नागा साधुओं की मृत्यु के बाद उनके शव को जलाने के बजाय भू-समाधि दी जाती है। उन्हें सिद्ध योग मुद्रा में बैठाकर समाधि दी जाती है। यह परंपरा उनकी आध्यात्मिक यात्रा के महत्व को दर्शाती है।

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