महंत मुकेश गिरी मामला : अपर्याप्त साक्ष्यों के साथ अधूरे हलफनामे पर हाईकोर्ट नाराज, 12 सितंबर तक प्रस्तुत करने का दिया आदेश

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Aug 26, 2024 23:20

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाजियाबाद के गंगानगर घाट पर नहाती महिलाओं का वीडियो बनाने के मामले में पुलिस की ओर से अधूरे तथ्य और साक्ष्य के आधार पर दाखिल हलफनामे पर कड़ी नाराजगी जताई है।

Prayagraj News : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाजियाबाद के गंगानगर घाट पर नहाती महिलाओं का वीडियो बनाने के आरोपी महंत मुकेश गिरी के मामले में पुलिस द्वारा अधूरे तथ्य और साक्ष्य के आधार पर दाखिल हलफनामे पर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि प्रमुख सचिव स्तर के एक अधिकारी से इस पूरे मामले की गहन जांच कराई जाए। साथ ही, जांच रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में 12 सितंबर तक कोर्ट में प्रस्तुत करने का आदेश भी दिया गया है। यह निर्देश न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान द्वारा महंत मुकेश गिरी की अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान दिया गया। 

कोर्ट ने पहले ही पुलिस को आदेश दिया था कि वह सभी साक्ष्यों के साथ जवाबी हलफनामा दाखिल करे 
कोर्ट ने पहले ही मुरादनगर पुलिस को आदेश दिया था कि वह महंत के खिलाफ जुटाए गए सभी साक्ष्यों के साथ जवाबी हलफनामा दाखिल करे। लेकिन पुलिस ने ठोस सबूतों को छिपाते हुए केवल न्यूज रिपोर्ट और महिला आयोग के पत्र को ही बतौर सुबूत प्रस्तुत किया। इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए दारोगा रामपाल सिंह की भूमिका पर सवाल उठाए और पुलिस उपायुक्त गाजियाबाद से हलफनामा मांगा। कोर्ट ने सवाल किया कि महिला आयोग के पत्र और न्यूज रिपोर्ट को आरोपी के खिलाफ साक्ष्य कैसे माना जा सकता है। इसके अलावा, यह भी बताया गया कि भ्रामक हलफनामा दाखिल करने वाले दारोगा के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की जा चुकी है।

अदालत ने पूरे घटनाक्रम की जांच प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से कराने का निर्देश दिया 
पुलिस उपायुक्त द्वारा भी अदालत के सवालों का सही और संतोषजनक जवाब न दिए जाने पर, अदालत ने मुख्य सचिव को इस पूरे घटनाक्रम की जांच प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से कराने का निर्देश दिया।अदालत ने पुलिस विभाग, अभियोजन कार्यालय, और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन निदेशक का कार्यालय सिर्फ डाकघर की तरह कार्य नहीं कर सकता। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारी पीड़ित को न्याय दिलाने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या पुलिस विभाग ने सारे सबूत निदेशक अभियोजन और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को भेजे थे। यदि नहीं, तो इन कार्यालयों में से किसी ने साक्ष्य मांगे थे? साथ ही, जवाबी हलफनामा किसके द्वारा टाइप कराया गया था—क्या यह सरकारी खजाने से टाइप हुआ था या किसी बाहरी टाइपिस्ट से? हलफनामा तैयार करने का ड्राफ्ट किसने तैयार किया, और क्या निदेशक अभियोजन कार्यालय और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय ने जवाब तैयार करने से पहले तथ्यों का परीक्षण किया? इन सभी सवालों के जवाबों के साथ पूरी जांच रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की जानी है, ताकि मामले में जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया जा सके और उचित कार्रवाई की जा सके। 

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