एक और मंदिर-मस्जिद का मामला पहुंचा कोर्ट : जानें अलीगढ़ जामा मस्जिद का सच, क्या शिव मंदिर की जगह पर...

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Jan 12, 2025 15:38

अलीगढ़ की जामा मस्जिद को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता पंडित केशव देव गौतम ने दावा किया है कि 300 साल पुरानी यह मस्जिद पहले शिव मंदिर थी।

Aligarh News : संभल, बागपत, बदायूं, फिरोजाबाद और बरेली के बाद अब अलीगढ़ की ऐतिहासिक जामा मस्जिद का विवाद सुर्खियों में है। अलीगढ़ की जामा मस्जिद को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता पंडित केशव देव गौतम ने दावा किया है कि 300 साल पुरानी यह मस्जिद पहले शिव मंदिर थी। इस दावे के आधार पर उन्होंने सिविल जज कोर्ट में याचिका दायर की है, जिस पर 15 फरवरी को सुनवाई होनी है। क्या पंडित केशव देव गौतम द्वारा किया गया दावा सच है? क्या वाकई जामा मस्जिद के नीचे शिव मंदिर है?  आइए जानते हैं अलीगढ़ की जामा मस्जिद का सच और इतिहास क्या है?

पंडित केशव देव गौतम का दावा
आरटीआई एक्टिविस्ट पंडित केशव देव गौतम ने दावा किया है कि मस्जिद जिस स्थान पर बनी है, वह पहले हिंदू राजाओं के किले का हिस्सा था। उन्होंने पुरातत्व विभाग और नगर निगम से आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी, जिसमें बताया गया कि यह मस्जिद सार्वजनिक भूमि पर बनी है। हालांकि इसके निर्माण से संबंधित कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

विवाद को लेकर मोहम्मद वसीम राजा की राय
प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने मंदिर होने के दावे को खारिज करते हुए कहा कि "अकबर उल जमाल" में कहीं भी इस स्थान पर हिंदू, जैन या बौद्ध धार्मिक स्थल होने का उल्लेख नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मस्जिद का निर्माण इस्लामिक स्थापत्य शैली में हुआ है और इसके किसी अन्य धर्म से जुड़े होने के प्रमाण नहीं हैं।

जामा मस्जिद का इतिहास
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ऐतिहासिक विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने जामा मस्जिद के इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इस मस्जिद की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने डाली थी। उस समय इसे "कॉल" के नाम से जाना जाता था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने जीत की खुशी में ऊंची जगह पर इस मस्जिद का निर्माण शुरू कराया। बाद में अल्तमश, नसरुद्दीन महमूद, और इब्राहिम लोदी के शासनकाल में इसका नवीनीकरण हुआ। मस्जिद का अंतिम रूप मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के शासनकाल में दिया गया। कॉल के गवर्नर साबित खान ने 1724 में मस्जिद का निर्माण शुरू कराया, जो 1728 में पूरा हुआ। प्रोफेसर राजा ने "अकबर उल जमाल" किताब का हवाला देते हुए बताया कि यह मस्जिद पूरी तरह इस्लामिक आर्किटेक्चर का उदाहरण है। 

1857 की क्रांति से भी जुड़ा है मस्जिद का इतिहास
जामा मस्जिद 1857 की क्रांति के इतिहास से भी जुड़ी है। यह मस्जिद देश की पहली ऐसी मस्जिद मानी जाती है, जहां 1857 की क्रांति के शहीदों की 73 कब्रें मौजूद हैं। इसे गंज-ए-शहीदन (शहीदों की बस्ती) के नाम से भी जाना जाता है। यह मस्जिद तीन शताब्दियों से भी अधिक पुरानी है और यहां की आठवीं पीढ़ी आज भी नियमित रूप से नमाज अदा कर रही है। यह मस्जिद ऊंचे टीले पर बनी हुई है, जिससे अलीगढ़ के हर कोने से इसे देखा जा सकता है। पार्षद मुशर्रफ मेहजर हुसैन बताते हैं कि मस्जिद में 17 गुंबद और 3 दरवाजे हैं। हर दरवाजे पर 2-2 गुंबद हैं, जो इस्लामिक कला और संस्कृति की झलक प्रस्तुत करते हैं। मस्जिद में एक साथ 5,000 लोग नमाज पढ़ सकते हैं। औरतों के लिए विशेष नमाज स्थल भी उपलब्ध है। मस्जिद की एक और खास बात इसके गुंबदों और मीनारों पर मढ़ा हुआ सोना है। अनुमानित रूप से 6 कुंतल शुद्ध सोना इसके निर्माण में इस्तेमाल किया गया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि एशिया में इतनी अधिक मात्रा में सोने का उपयोग किसी अन्य मस्जिद में नहीं हुआ है। तीन प्रमुख गुंबदों के साथ-साथ कई छोटी मीनारें भी हैं, जो इस्लामी वास्तुकला की सुंदरता को बढ़ाती हैं।

मस्जिद को लेकर कौन बनेगा करोड़पति में पुछे गए सवाल
जामा मस्जिद की विशेषता "कौन बनेगा करोड़पति" के एक सवाल में भी नजर आई। शो में पूछा गया था कि भारत के किस धार्मिक स्थल में सबसे ज्यादा सोने का उपयोग हुआ है। सही जवाब अलीगढ़ की जामा मस्जिद था। यह मस्जिद न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में सबसे ज्यादा सोना लगी मस्जिद के रूप में जानी जाती है।

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