बदायूं में जामा मस्जिद मामले में सुनवाई : हिंदू पक्ष ने कहा- अस्तित्व नहीं तो सर्वे को लेकर मुस्लिम पक्ष में डर क्यों...

UPT | बदायूं जामा मस्जिद

Dec 03, 2024 13:46

उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में स्थित जामा मस्जिद के मामले में अदालत में सुनवाई शुरू हो गई है। हिंदू पक्ष ने दो साल पहले याचिका दायर की थी, जिसमें उनका आरोप है कि...

Budaun News : उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में स्थित जामा मस्जिद के मामले में अदालत में सुनवाई शुरू हो गई है। हिंदू पक्ष ने दो साल पहले याचिका दायर की थी, जिसमें उनका आरोप है कि यह मस्जिद पहले नीलकंठ महादेव मंदिर हुआ करता था। उनका कहना है कि मुगल काल में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि उनके पास इस भूमि के कागजात मौजूद हैं, जो उनकी संपत्ति के स्वामित्व को प्रमाणित करते हैं। मामले में अगली तारीख 10 दिसंबर तय की है।

जामा मस्जिद के खिलाफ कोर्ट में बहस शुरू
इंतजामिया कमेटी के वकील अनवर आलम ने कहा कि यह मुकदमा सुनवाई के लायक नहीं है और केवल माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। उनका कहना था कि इस मामले में कोई वास्तविकता नहीं है। वहीं, हिंदू महासभा के वकील विवेक रेंडर ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह मामला सुनवाई योग्य है या नहीं, इस पर कोर्ट में बहस चल रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि मुस्लिम पक्ष का दावा सही है और वहां का अस्तित्व स्पष्ट है, तो फिर सर्वे से क्यों डर रहे हैं?



यह है पूरा मामला
बता दें कि 2 सितंबर, 2022 को बदायूं सिविल कोर्ट में भगवान श्री नीलकंठ महादेव महाकाल (ईशान शिव मंदिर), मोहल्ला कोट/मौलवी टोला की तरफ से एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, बदायूं कलेक्टर और प्रदेश के मुख्य सचिव को पार्टी बनाया गया था। याचिका में यह दावा किया गया कि वर्तमान में स्थित बदायूं की जामा मस्जिद की जगह पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर हुआ करता था।

ओवैसी और शहाबुद्दीन रज़वी ने सरकार पर साधा निशाना
बदायूं में जामा मस्जिद और नीलकंठ महादेव मंदिर को लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने सरकार पर निशाना साधा था। ओवैसी ने बदायूं की जामा मस्जिद को लेकर हो रही कानूनी प्रक्रिया और उस पर हिंदुत्ववादी संगठनों के दावों पर सवाल उठाए। तो वहीं मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी ने सांप्रदायिक सोच रखने वाले तत्वों पर निशाना साधा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की।

'लगाम लगाना भारत की शांति और सौहार्द्र के लिए जरूरी'
ओवैसी ने सरकार पर निशाना साधते हुए अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा कि "आने वाली नस्लों को एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की पढ़ाई के बजाय एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) की खुदाई में व्यस्त कर दिया जा रहा है।" उनका इशारा उन मामलों की ओर था, जिनमें ऐतिहासिक मस्जिदों पर हिंदू मंदिर होने का दावा किया जा रहा है और उसके आधार पर कानूनी विवाद खड़ा किया जा रहा है। ओवैसी ने आगे कहा कि "बदायूं की जामा मस्जिद को भी निशाना बनाया जा रहा है। हिंदुत्ववादी तंजीमें किसी भी हद तक जा सकती हैं और इन पर लगाम लगाना भारत की शांति और सौहार्द्र के लिए बेहद जरूरी है।"

बदायूं मामले को संभल विवाद से जोड़ा
शनिवार को बदायूं कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई, जिसमें इंतजामिया कमेटी ने अपनी तरफ से बहस शुरू की। इस केस में एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) और उत्तर प्रदेश सरकार पक्षकार हैं। ओवैसी ने जोर देकर कहा कि सरकार को 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का पालन करना चाहिए, जो धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के आधार पर बनाए रखने का प्रावधान करता है। ओवैसी ने बदायूं के मामले को संभल की जामा मस्जिद में हुए हालिया विवाद से भी जोड़ा। संभल में मस्जिद के सर्वे को लेकर हिंसा हुई थी, जिसमें चार लोगों की जान चली गई थी। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों का लगातार उभरना सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की सोची-समझी साजिश का हिस्सा है।

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