Balrampur
ऑथर Jyoti Karki

राजाओं का शिक्षा में बड़ा योगदान : बलरामपुर जिले को क्यों कहा जाता है छोटी काशी, जानिए इसकी कहानी

UP Times | Balrampur District

Nov 18, 2023 17:34

यहां छात्र-छात्राओं के लिए पढ़ाई को लेकर अलग-अलग शैक्षिक संस्थानों की स्‍थापना की गई थी। यहां के राजाओं ने इन शैक्षिक संस्‍थानों का विकास किया और शिक्षा जगत में एक नया मुकाम हासिल किया।

Short Highlights
  • बलरामपुर जिले को क्यों कहा जाता है छोटी काशी, जानिए इसकी कहानी
  • राज परिवार ने दान की थी 80 लाख की सम्पत्ति
Balrampur : इस जिले को शिक्षा क्षेत्र के लिए भी जाना जाता है। बलरामपुर को शिक्षा जगत में छोटी काशी भी कहा जाता था। यहां छात्र-छात्राओं के लिए पढ़ाई को लेकर अलग-अलग शैक्षिक संस्थानों की स्‍थापना की गई थी। यहां के राजाओं ने इन शैक्षिक संस्‍थानों का विकास किया और शिक्षा जगत में एक नया मुकाम हासिल किया। 

छात्र-छात्राओं के लिए शैक्षिक संस्‍थान
शिक्षा के क्षेत्र में बलरामपुर को काशी के बाद जाना जाता था। लोग इसे छोटी काशी भी कहते थे। बलरामपुर में छात्र छात्राओं के लिए अलग-अलग शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की गई। यह शैक्षिक संस्थाएं अबाध गति से चलती रहे इसके लिए महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ट्रस्ट की स्थापना 1951 में की गई। इस मुख्य ट्रस्ट के अधीन 12 छोटे छोटे ट्रस्ट हैं, जिनमें शैक्षिक विकास के लिए एमपीपी ट्रस्ट फार महारानी लाल कुवंरि महाविद्यालय, एमपीपी ट्रस्ट फार हाईस्कूल (इण्टर) (वर्तमान एमपीपी इण्टर कॉलेज का नाम पूर्व में लायल कालेजिएट जूनियर हाईस्कूल था), एमपीपी ट्रस्ट फार गर्ल्स जूनियर स्कूल, एमपीपी ट्रस्ट फार देवेन्द्र बालिका विद्यालय, एमपीपी ट्रस्ट फार डीएवी कॉलेज एवं बलरामपुर और तुलसीपुर की संस्कृत पाठशालाएं आज भी कार्यरत है। 

बीएचयू की चारदीवारी का कराया निर्माण
महाराजा ने कैनिंग कॉलेज लखनऊ को तीन लाख रूपये, लखनऊ विश्वविद्यालय को चार लाख, लखनऊ मेडिकल कॉलेज को तीन लाख, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को चार लाख, लखनऊ मेडिकल कॉलेज को तीन लाख तथा मैकडॉनाल्ड छात्रावास प्रयाग को तीस हजार दान दिए थे। करोड़ों की सम्पत्ति सिटी पैलेस की बलरामपुर डिग्री कॉलेज को दान स्वरूप देकर राज परिवार की शैक्षिक विकास हेतु यह एक अनुपम भेंट है। इसके अलावा महाराजा ने दस लाख रूपये व्यय कर काशी, जो अब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नौ मील लम्बी चारदीवारी का निर्माण कराया। जिसकी लागत उस समय लगभग 10 लाख रुपए थी।

शिक्षा की नई क्रांति लाई गई
वही बलरामपुर जिले में स्थित महारानी लाल कुंवर महाविद्यालय को आज भी तराई का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है। जिसमें पढ़े हुए बच्चे देश-विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं। जिले में राज परिवार के द्वारा स्थापित कई स्कूल कॉलेज आज भी संचालित हैं। बलरामपुर के छात्र छात्राओं को पढ़ने के लिए जिले से बाहर जाना पड़ता था। उन छात्र-छात्राओं को बलरामपुर राज परिवार के द्वारा जिले में कई कॉलेज व स्कूलों की स्थापना कर जिले में शिक्षा की नई क्रांति लाई गई, जो आज भी परंपरागत तरीके से चल रही है।

कई फिल्मों की हो चुकी है शूटिंग
महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह ने बाहर से आने वाले पर्यटकों और जिले के लोगों की सुविधा के लिए बलरामपुर हाउस, नैनीताल, महामाया होटल की स्थापना की। जिले में स्थित माया होटल व अन्य बनवाए गए। आलीशान मकान में कई मूवी भी शूट हो चुकी हैं। आज के आधुनिक युग में यह पुराने मकान आधुनिक तरीके से बनाए गए आलीशान मकानों को टक्कर दे रहे हैं।

बलरामपुर को छोटी अयोध्या भी कहा जाता था
बलरामपुर को शिक्षा के क्षेत्र में यदि छोटी काशी की संज्ञा दी जाती थी तो छोटे-बड़े तमाम मन्दिरों के कारण इसे छोटी अयोध्या भी कहा जाता था। बलरामपुर शिवालयों, मंदिरों एवं जलाशयों का नगर है। नील बाग कोठी के पास राधाकृष्ण मन्दिर और सिटी पैलेस के भीतर का पूजा गृह और मंदिर, तुलसीपुर में देवी का स्थान, बलरामपुर में बड़ा ठाकुरद्वारा आदि अनेक मन्दिर बलरामपुर राजवंश की धार्मिक मनोवृत्ति के द्योतक है।

बलरामपुर को अतीर्थ का स्वरूप देते हैं
आइए जानते हैं बलरामपुर में स्थित प्राचीन मंदिर बिजलीपुर का इतिहास बिजलीपुर माता मंदिर के महंत दयानंद भारतीय बताते हैं कि बलरामपुर जिले के सिसई घाट पर स्थित बिजलीपुर मंदिर में बहुत समय पहले एक संत हुआ करते थे। महंत जय जय राम भारती जो अपने तपोबल से देवीपाटन मंदिर दर्शन के लिए जाया करते थे। तभी राप्ती नदी पार करते समय माता ने महात्मा को दर्शन दिया और उन्होंने कहा कि आप यहीं पर अपना एक स्थान बना लीजिए और दर्शन कीजिए। फिर संत जय जय राम भारती ने माताजी से इच्छा जताई कि आप अपना एक स्वरूप हमको दे दीजिए, जिसका मैं दर्शन करता रहूंगा।

किंवदंती ये भी है  
माताजी ने महंत की बात मानते हुए कहा कि अभी कुछ देर बाद जहां पर बिजली गिरेगी वही मेरा स्थान होगा। तभी भारी गड़गड़ाहट के बीच सिसई घाट के बगल में बिजली गिरी जिसकी जानकारी तत्कालीन बलरामपुर के महाराजा दिग्विजय सिंह को मिली। उन्होंने अपने दरबारियों को भेजकर महंत जी से मंदिर निर्माण की इच्छा जताई महाराजा दिग्विजय सिंह के द्वारा बिजली पुर माता मंदिर निर्माण कराया गया। इसी बीच उनका देहांत हो गया। उसके बाद में उनके उत्तराधिकारी के द्वारा मंदिर निर्माण को पूरा कराया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मंदिर में कोई मूर्ति पूजा नहीं होती है। यहां पर यंत्र की पूजा की जाती है। इसी में माताजी का स्वरूप मानकर लोग यहां पर पूजा अर्चना करते हैं।

राज परिवार ने दान की थी 80 लाख की सम्पत्ति
बलरामपुर इतिहास के अनुसार श्रावस्ती के चीन मंदिर और एक धर्मशाला भी इसी रियासत ने बनवाई थी। गांधी दर्शन के अध्ययन, प्रचार हेतु आर्थिक सहयोग तथा श्रावस्ती आश्रम निधि को राजपरिवार द्वारा पांच सौ बीघे जमीन दिया गया। मोती लाल स्मारक समिति भवन के लिए महाराजा बलरामपुर ने अपनी पूरी सम्पत्ति मुफ्त में ही दे दी। महारानी जयपाल कुंवरि प्रिवी कंउसिल के निर्णय के अनुसार मिलने वाला वार्षिक 25 हजार रूपये भी विद्या प्रचार, धार्मिक एवं सामाजिक कल्याण के कार्याे में लगातीं थीं। महाराजा भगवती प्रसाद सिंह ने अपने कार्यकाल में 60 लाख रूपये सार्वजनिक संस्थाओं को दान में दिए थे। 9 जून 1957 को महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने "धर्म कार्य निधि" नाम से एक अन्य चेरिटेबिल ट्रस्ट की स्थापना करके अपने राज्य की लगभग 80 लाख की सम्पत्ति इस ट्रस्ट में निहित कर दी थी।
 

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