किस्तों में डूबा आम आदमी का जीवन : जिंदगी के साथ और बाद भी, जानिए कर्ज में डूबे युवक की कहानी 

सोशल मीडिया | तनाव में युवक

Feb 14, 2024 19:05

परविंद उरांव (40) के परिवार पर काफी कर्ज हो गया था। गांव और आसपास मजदूरी करके वह इतना नहीं कमा पा रहा था कि कर्ज का बोझ उतार सके। इसलिए नवंबर में वह गांव के 16-17 लोगों के साथ मजदूरी करने कर्नाटक के बेलगांव गया था...

Jhansi News: "जिंदगी किस्तों में कट रही है, पता नहीं हम तुम्हारे हिस्से कितना आएंगे"। यह महज एक लाईन नहीं बल्कि 
एक आदमी की असल जिंदगी की असली सच्चाई है। किस्त और कर्ज के तले दबा आम आदमी हर रोज मर-मर कर जी रहा होता है और एक दिन मर ही जाता है।  उत्तर प्रदेश के झांसी से एक ऐसी ही खबर आई है जहां कर्ज चुकाने के सफर में युवक की मौत हो जाती है।

बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के भैरोगंज निवासी परविंद उरांव की यह कहानी है। उसपर कुनबे के कर्ज का बोझ था। वह कर्ज उतारने के लिए गांव से 1912 किमी दूर जाकर मजदूरी करने लगा। तीन महीने तक हाड़तोड़ मेहनत करके जब हाथ में 30 हजार रुपये जमा हुए तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। घर वालों को फोन करके बता दिया कि चिंता मत करो, आकर सारा कर्ज चुकता कर दूंगा, लेकिन उसे क्या पता था कि वह घर पहुंच ही नहीं पाएगा।

एंबुलेंस ने मांगे 40 हजार रुपये
वह मजदूरी करके कमाए 30 हजार रुपये लेकर कुनबे का कर्ज उतारने जा रहा था, लेकिन ट्रेन में उसकी मौत हो गई। झांसी में शव को उतारा गया। यहां से एंबुलेंस ने शव को उसके घर तक पहुंचाने के लिए 40 हजार रुपये मांगे। ऐसे में उसके परिजनों पर 10 हजार का कर्ज और चढ़ गया।

घर वाले कर रहे थे इंतजार
परविंद उरांव (40) के परिवार पर काफी कर्ज हो गया था। गांव और आसपास मजदूरी करके वह इतना नहीं कमा पा रहा था कि कर्ज का बोझ उतार सके। इसलिए नवंबर में वह गांव के 16-17 लोगों के साथ मजदूरी करने कर्नाटक के बेलगांव गया था। यहां उसने तीन महीने तक मजदूरी करके 30 हजार रुपये जमा किए। बीते शनिवार को वह अपने साथियों के साथ चंडीगढ़ कर्नाटक संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से वापस गांव लौट रहा था। ट्रेन में परविंद बार-बार अपने साथियों से यही बोल रहा था कि घर पहुंचकर कर्ज चुकता करूंगा। घरवालों को भी फोन पर बता दिया था कि अब कर्ज नहीं रहेगा। घर वाले भी उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

झांसी पहुंचने से पहले थम चुकी थी सांसे 
परविंद के फूफा महेंद्र ने बताया कि रात तकरीबन ढाई बजे परविंद ने भोपाल स्टेशन पर पानी पिया। इसके बाद उसने ठंड लगने की बात कही तो उन्होंने अपनी जैकेट ओढ़ा दी। झांसी से ट्रेन बदलनी थी। सुबह पांच बजे ट्रेन झांसी पहुंची तो परविंद को उठाया, लेकिन उसकी सांसें थम चुकी थी। परविंद की मौत की सूचना पर पहुंची जीआरपी ने शव को ट्रेन से उतरवाया। मृतक के साथी रवि ने बताया कि परविंद के शव को एंबुलेंस से झांसी से बिहार के पश्चिमी चंपारण ले जाने के लिए चालक ने 40 हजार रुपये मांगे। अब उसके परिजनों पर 10 हजार रुपये का कर्ज और चढ़ गया। युवक की मौत के बाद परिजनों का बुरा हाल है।

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