Lucknow News : शादीशुदा मुस्लिम को लिव-इन रिलेशनशिप की इजाजत नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

UPT | इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

May 09, 2024 10:48

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अहम फैसले में कहा है कि इस्लाम धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी के जीवित रहते हुए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि इस्लामी मान्यता किसी मुसलमान को उसका निकाह बरकरार रहते हुए किसी अन्य महिला के साथ रहने की इजाजत नहीं देती है।

Lucknow News : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि इस्लाम धर्म को मानने वाला लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता, खासकर अगर उसका जीवनसाथी जीवित हो। बेंच ने बुधवार को कहा, 'इस्लामिक मत निकाह के बने रहते लिव-इन संबंधों की अनुमति नहीं देता है। स्थिति भिन्न हो सकती है यदि दो व्यक्ति अविवाहित हैं और दोनों पक्ष वयस्क हैं और अपने तरीके से अपना जीवन जीना चुनते हैं।' 

न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति ए.के. श्रीवास्तव की बेंच ने यह आदेश याचीगण हिंदू युवती स्नेहा देवी और शादीशुदा मुस्लिम पुरुष मोहम्मद शादाब खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। दोनों ने इस मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने और लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हुए सुरक्षा की मांग की थी। दोनों ही बहराइच जिले के मूल निवासी हैं। दोनों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया। 

याचिकाकर्ताओं ने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे लिव-इन रिलेशनशिप में थे लेकिन महिला के माता-पिता ने शादाब खान के खिलाफ अपहरण और उनकी बेटी को उससे शादी करने के लिए प्रेरित करने की प्राथमिकी दर्ज कराई। याचिकाकर्ताओं ने पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए कहा कि वे वयस्क हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, वे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए स्वतंत्र हैं।

पहले से ही निकाह में था शादाब खान
मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने पाया कि शादाब खान पहले से ही निकाह में था (2020 में फरीदा खातून से) और उसकी एक बेटी भी थी। इस तथ्य पर विचार करते हुए अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर उन्हें पुलिस सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया, जो लिव-इन रिलेशनशिप की अनुमति देता है। इसके बजाय पीठ ने कहा कि इस्लाम ऐसे रिश्ते की इजाजत नहीं देता, खासकर मौजूदा मामले की परिस्थितियों में।

सामाजिक नैतिकता को संतुलित करने की आवश्यकता
कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि विवाह संस्था के मामले में संवैधानिक नैतिकता और सामाजिक नैतिकता को संतुलित करने की आवश्यकता है, ऐसा नहीं होने पर समाज में शांति और शांति के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामाजिक सामंजस्य फीका और गायब हो जाएगा। 

रीति-रिवाजों और प्रथाओं को भी कानून मानता है संविधान : हाई कोर्ट
पीठ ने कहा,'संवैधानिक नैतिकता ऐसे जोड़े के बचाव में आ सकती है और सदियों से रीति-रिवाजों और प्रथाओं के माध्यम से तय की गई सामाजिक नैतिकता संवैधानिक नैतिकता का मार्ग प्रशस्त कर सकती है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। हालांकि हमारे सामने मामला अलग है।' इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता स्नेहा देवी को सुरक्षा के तहत उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया जाए।

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