Lucknow News : शहर हो या गांव नहीं पहुंच रहे नेता के पांव, सोशल मीडिया ही बना प्रचार का माध्यम

सोशल मीडिया | सांकेतिक तस्वीर

Apr 21, 2024 17:32

इस बार हो रहे लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया को ही मुख्य चुनाव प्रचार का जरिया बनाया है। शहर, गांव, गली, मोहल्ले में अब नहीं होता पहले जैसा चुनाव प्रचार...

Lucknow : बीते कुछ वर्षों में चुनाव प्रचार करने के तरीके में काफी बदलाव देखा गया है अब नेता और कार्यकर्ता सड़क पर उतना सक्रिय नहीं नजर आते जितना कि सोशल मीडिया पर रहते हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया और मीडिया को अपना सबसे बड़ा चुनावी हथियार बनाया और दूरस्थ स्थान के लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रही। उसके बाद से अब सभी राजनीतिक पार्टियों सोशल मीडिया को अपने प्रथम हथियार के रूप में इस्तेमाल कर चुनाव प्रचार करती हैं।

युवाओं तक पहुंचने का बेहतर विकल्प- देश में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की है जो सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं इसके साथ ही सोशल मीडिया का प्रचलन बढ़ने पर युवा और अन्य वर्ग के लोग भी अब सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक पार्टियों के पास युवाओं तक पहुंचाने का सबसे बेहतर साधन सोशल मीडिया को ही माना गया है। देश की छोटी व बड़ी सभी राजनीतिक पार्टियों सोशल मीडिया पर अपना प्रचार प्रसार खूब तेजी से करती हैं।

सड़क पर चहल-पहल हुई कम- जब से राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया को प्रचार के लिए बेहतर साधन के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू किया है चुनाव के समय अब पहले जैसी सड़कों पर गहमागहमी नहीं रहती। डिटेल संसदीय चावन में देखा जाता था कि सड़क गली मोहल्ले नुक्कड़ सभी राजनीतिक पार्टियों के पोस्टर बैनर और झंडों से पटे रहते थे लेकिन इस बार चुनाव में जमीनी स्तर से ज्यादा सोशल मीडिया का पार्टियां कर रही चुनाव प्रचार में इस्तेमाल।

शहर हो या गांव नहीं पहुंच रहे नेता के पांव- बीते चुनाव में देखा जाता था कि चुनाव आने से पहले ही नेता और कार्यकर्ता शहर हो या गांव हर जगह पहुंच कर अपनी पार्टी का प्रचार करते थे लेकिन इस बार शहर हो या गांव नेताओं का आना जाना काफी कम हो गया है। उत्तर प्रदेश टाइम्स की टीम ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से बात किया जिनका कहना है कि इस बार पार्टी के प्रचार के लिए उसे तरह का माहौल देखने को नहीं मिल रहा जैसे बीते वर्षों में गहमागहमी देखने को मिलती थी।

Also Read