बिहार की सियासी आंच पर यूपी की भी हांडी: भाजपा नीतीश के सहारे पूर्वांचल पर करेगी कब्जा! कितना असर डाल पाएंगे मतदाताओं पर

Uttar pradesh times | नीतीश कुमार

Jan 26, 2024 16:30

इस हांडी में  पिछड़े-अति पिछड़े वोट बैंक की वह खिचड़ी है जो नीतीश के नाम पर तेजी से पकती है।  कारण साफ है, पूर्वांचल में कुर्मी वोट बैंक प्रभावी है और उसके बीच नीतीश कुमार का अपना प्रभाव है। इसी क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी सीट है, जिसे प्रभावित करने के लिए विपक्ष उसके बगल की सीट फूलपुर से नीतीश को उतारने की योजना पर काम कर रहा था। विपक्षी गठबंधन का मानना था कि नीतीश के यहां से लड़ने से कुर्मी वोट में बिखराव होगा जो अभी तक भाजपा के पक्ष में जाता रहा है। भाजपा इसे लेकर सतर्क है। यही कारण है कि बदली परिस्थितियों में भाजपा नीतीश को साधना चाहती है।

Short Highlights
  • नीतीश को आगे कर पूर्वांचल में भाजपा का खेल बिगाड़ना चाहता था विपक्षी गठबंधन
  • फूलपुर से नीतीश को लोक सभा चुनाव लड़ा मोदी को घेरने की थी योजना 
  • पूर्वांचल में प्रभावी है कुर्मी वोट, कई सीटों पर होता है इस बिरादरी का असर
  • नीतीश को साथ ले बिहार के साथ पूर्वांचल को भी अभेद बनाना चाहती है भाजपा
Lucknow News (ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी) : बिहार में नीतीश को लेकर तेज हुई सियासी आंच पर उत्तर प्रदेश की भी हांडी चढ़ी हुई है। इस हांडी में  पिछड़े-अति पिछड़े वोट बैंक की वह खिचड़ी है जो नीतीश के नाम पर तेजी से पकती है। कारण साफ है, पूर्वांचल में कुर्मी वोट बैंक प्रभावी है और उसके बीच नीतीश कुमार का अपना प्रभाव है। इसी क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी सीट है, जिसे प्रभावित करने के लिए विपक्ष उसके पास की सीट फूलपुर से नीतीश को उतारने की योजना पर काम कर रहा था। विपक्षी गठबंधन का मानना था कि नीतीश के यहां से लड़ने से कुर्मी वोट में बिखराव होगा जो अभी तक भाजपा के पक्ष में जाता रहा है। भाजपा इसे लेकर सतर्क है। यही कारण है कि बदली परिस्थितियों में भाजपा नीतीश को साधना चाहती है। इसमें कोई बाधा न आए इसीलिए अमित शाह ने बिहार के नेताओं को नीतीश के खिलाफ बयान देने से मना कर माहौल को भुनाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।

यूपी में कुर्मी वोट बैंक पर नजर 
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर जातीय समीकरण साधने में कोई भी पार्टी पीछे नहीं है। खासतौर पर ओबीसी वोटर्स पर सभी की नजर है। ओबीसी यादव वोट पर समाजवादी पार्टी अपना मजबूत दावा मानकर चलती है। ऐसे में ओबीसी की अन्य जातियों को लेकर बीजेपी के अलावा कांग्रेस, सपा और बसपा में होड़ लगी है। इस लड़ाई में कुर्मी वोटर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, क्योंकि ओबीसी जातियों में यादव के बाद सबसे ज्यादा जनसंख्या कुर्मी जाति की है। ऐसे में इस समुदाय को साधने के लिए न सिर्फ इंडिया गठबंधन की ओर से कोशिश की जा रही है, बल्कि बीजेपी और बीएसपी भी अपनी ओर से पूरा जोर लगा रही है।
माना जाता है कि जिसने कुर्मियों को साध लिया, उसके लिए सत्ता पाना थोड़ा आसान हो जाता है। कारण साफ है उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज का वोट 6 फीसदी है। इनमें पटेल, वर्मा, चौधरी, गंगवार, सचान जैसे उपनाम वाले लोग आते हैं। ओबीसी वोटर्स में इनकी संख्या 35 फीसदी मानी जाती है। प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर कुर्मी वोटर्स का अच्छा-खासा प्रभाव माना जाता है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव की बात करें तो 41 कुर्मी जाति के विधायक बने थे। इनमें से 27 एनडीए के थे और 13 सपा गठबंधन का हिस्सा थे।

जानिए कौन किसके साथ, क्या चल रही बात
भाजपा के साथ अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) है तो सपा के साथ पल्लवी पटेल की अपना दल कमेरावादी। प्रदेश में कुर्मी वोटर्स पर सबसे बड़ा दावा इन्हीं दो पार्टियों का होता है। भारतीय जनता पार्टी इस वोटबैंक के लिए सिर्फ अपने सहयोगी अपना दल (एस) के भरोसे नहीं है। पार्टी के पास संतोष गंगवार, पंकज चौधरी और मुकुट बिहारी वर्मा जैसे कुर्मी समाज के बड़े नेता तो हैं, लेकिन पूर्वांचल में इनका कोई बड़ा प्रभाव नहीं है। सपा की बात करें तो ओबीसी वोटर को अपने पाले में होने का दावा अखिलेश यादव हमेशा से करते आ रहे हैं लेकिन बीते चुनावों में ऐसा ट्रेंड देखने को मिला है कि गैर यादव ओबीसी वोटर ने बीजेपी का समर्थन किया। ऐसे में उन्हें कुर्मियों को अपनी ओर करने के लिए आने वाले चुनाव में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
यही कारण है कि सपा के इंडिया के गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाएं ज्यादा हैं। माना जा रहा है था कि कुर्मी वोटर को लुभाने के लिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार को फूलपुर सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता था। इस सीट पर कुर्मी वोटर की अच्छी-खासी संख्या है। नीतीश यहां से चुनाव लड़ते तो पूर्वांचल में कुर्मी वोट सहजने में भाजपा को काफी मस्क़त करनी पड़ती। भाजपा भी इसे जानती है, क्योंकि जब भी नीतीश एनडीए में बिहार की सीमावर्ती सीट पर दावा ठोकते रहे हैं और भाजपा को सलेमपुर सीट छोड़नी पड़ती रही है। फिलहाल कुर्मी समुदाय की राजनीति का प्रमुख केंद्र सोनेलाल पटेल के परिवार के हाथ में है। अपना दल नाम की दो पार्टियों की अच्छी-खासी पकड़ कुर्मी वोटों पर है। इनमें से अपना दल एस की अनुप्रिया पटेल तो बीजेपी के साथ हैं जबकि इसी परिवार की कृष्णा पटेल की अपना दल कमेरावादी अखिलेश यादव की सपा के साथ है। इनके अलावा फिलहाल किसी भी दल में कुर्मियों का कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं है।
ऐसे में अगर नीतीश भाजपा के साथ आ जाते हैं तो बिहार के साथ पूर्वांचल में भी भाजपा का कुर्मी किला अभेद्य हो सकता है। यही कारण है कि 25 जनवरी को जब बिहार की राजनीति गर्म हुई और भाजपा के नेता नीतीश पर तल्ख टिप्पणी करने लगे तो अमित शाह ने सम्राट चौधरी सहित प्रमुख नेताओं को दिल्ली बुलाकर चुप करा दिया। गठबंधन के मांझी सहित अन्य नेताओं को नीतीश के प्रति संतुष्ट करने के लिए नित्यानंद को लगा दिया। शाह फिलहाल नीतीश को लेकर चुप्पी साधे हैं। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि नीतीश को मुख्यमंत्री पद दिया जाए या न दिया जाए इससे अधिक महत्वपूर्ण है कि उन्हें साथ लेकर बिहार से पूर्वांचल तक लोकसभा चुनाव को साधा जाए।


कुर्मी प्रभावी जिले
संतकबीरनगर, कुशीनगर, महाराजगंज, सोनभद्र, मिर्जापुर, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज, लखीमपुर, एटा, अंबेडकर नगर, कानपुर, बाराबंकी, सीताराम, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, अयोध्या, सिद्धार्थनगर और बस्ती

छह प्रतिशत हिस्सेदारी
पटेल, गंगवार , सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी, वर्मा

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