यूपी में कितनी है नजूल की जमीन? : विधेयक आते ही बन गया सियासी मुद्दा, समझिये पूरा मामला

UPT | विधेयक आते ही बन गया सियासी मुद्दा

Aug 03, 2024 16:41

यूपी विधानसभा में मानसून सत्र के चलते बुधवार को नजूल जमीन विधेयक पेश किया गया। यह विधेयक पूरे मानसून सत्र का सबसे चर्चित मुद्दा रहा है। आज हम जानेंगे कि क्यों इस विधेयक पर इतना बवाल हो रहा है...

Lucknow News : यूपी विधानसभा में मानसून सत्र के चलते बुधवार को नजूल जमीन विधेयक पेश किया गया। यह विधेयक पूरे मानसून सत्र का सबसे चर्चित मुद्दा रहा है। आज हम जानेंगे कि क्यों इस विधेयक पर इतना बवाल हो रहा है। जब भी कोई विधेयक पेश किया जाता है तो अगर विपक्ष उसका विरोध करता है, बहुमत के साथ वह पास किया जाता है। लेकिन यूपी विधानसभा में पहली बार ऐसा दिखने को मिल रहा है कि बहुमत होने के बाद भी विधेयक लटका हुआ है। इसके पीछे कई वजह छुपी हुई हैं, जिसके कारण सरकार के अपने ही लोग विरोध कर रहे हैं। सबसे पहले नजूल जमीन विधेयक के बारे में बात करते हैं।

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यूपी में इतनी नजूल जमीन

एक अनुमान के अनुसार यूपी में 25 हज़ार हेक्टेयर से अधिक नजूल भूमि है। जिसे सरकारी अनुदान अधिनियम-1895 और उसके बाद के सरकारी अनुदान अधिनियम-1960 के तहत जारी अनुदान के रूप में विभिन्न निजी व्यक्तियों और निजी संस्थाओं को पट्टे पर दिया गया है. विभाग के अनुसार, अब तक लगभग 4 हजार एकड़ भूमि को फ्री होल्ड किया जा चुका है। वर्तमान में नजूल भूमि के मालिकाना हक से संबंधित 312 मामले उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं, और करीब 2500 मामले प्रक्रिया में हैं।

क्या है फ्री होल्ड
नजूल की किसी भूमि की सर्किल रेट के अनुसार मूल्य 50 करोड़ रुपये है, जबकि इसका बाजार मूल्य 100 करोड़ रुपये तक पहुंचता है। इस भूमि को फ्री होल्ड कराने के लिए सर्किल रेट का महज 10 प्रतिशत, यानी पांच करोड़ रुपये, का भुगतान किया जा रहा है। इसका मतलब है कि व्यक्ति केवल पांच करोड़ रुपये में 100 करोड़ रुपये की भूमि का मालिक बन जाता है। वहीं यूपी में नजूल भूमि की अनुमानित लागत लखनऊ, कानपुर या आगरा जैसे शहरी क्षेत्रों में 5 हजार से 50 हजार प्रति वर्ग मीटर तक हो सकती है। इसके अलावा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 1 हजार से 10,000 प्रति वर्ग मीटर और ग्रामीण क्षेत्रों में 500 से 5000 प्रति वर्ग मीटर तक कीमत हो सकती है।

प्रयागराज पर मंडरा रहे खतरे के बादल
नजूल विधेयक आने से प्रयागराज जिले पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। प्रयागराज में 90% से अधिक लोगों ने किसी लीज होल्डर से जमीन या मकान खरीदा है, जिन्हें अब सरकार से किसी राहत की उम्मीद नहीं है। लोग सवाल कर रहे हैं कि अगर सरकार की नीयत साफ है, तो इस तरह का बिल लाने की जरूरत क्यों थी? प्रयागराज के लोगों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि उन्हें उनके घरों से बेदखल न किया जाए। उनकी मांग है कि नजूल भूमि पर बने मकानों को टैक्स और जुर्माना लेकर वैध कर दिया जाए और उन्हें मालिकाना हक दिया जाए। लोगों का कहना है कि मोदी और योगी सरकारों ने गरीबों को घर देने का वादा किया था, लेकिन नजूल एक्ट उनके वादों का मजाक उड़ा रहा है।

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विधान परिषद में क्यों फंसा मामला
सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट की बैठक से नजूल भूमि विधेयक बिल को मंजूरी दी गई। इसके बाद विधेयक को विधानसभा में संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने पेश कर दिया। लेकिन विधान परिषद में आते ही विधेयक फंस गया। विधान परिषद में सदन के नेता केशव प्रसाद मौर्य हैं और विधान परिषद में ही भूपेंद्र चौधरी भी हैं। इनके साथ ही भाजपा सरकार के कुछ सहयोगी दलों ने भी विधेयक का विरोध किया। आइये जानते है यह विधेयक कैसे इतना बड़ा मुद्दा बन गया। नीचे दिए गए चार मुख्य बिंदुओं में हम अपनी बात समझाने की कोशिश करेंगे।

सियासी मुद्दा क्यों बन गया
1
प्रयागराज और आसपास के नेताओं का विरोध
2 अयोध्या की हार के बाद संगठन सतर्क
3 सहयोगी दल भी जनाधार खिसकने को लेकर चिंतित 
4 जमीन कारोबारियों और भूमाफियों का सियासी दखल

प्रयागराज और आसपास के नेताओं का विरोध
बता दें कि जैसे ही विधेयक पेश किया गया प्रयागराज और आसपास के नेताओं ने सबसे ज्यादा विरोध किया। प्रयागराज से भाजपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन बाजपेयी ने इसका खुलकर विरोध किया। मीडिया रिपोर्ट की माने तो प्रयागराज में करीब 1300 हेक्टेयर नजूल की जमीन है। शहर में कुल एक हजार से अधिक भूखंड के अंतर्गत 71 लाख वर्गमीटर नजूल भूमि है, जिसमें से 35 लाख वर्गमीटर पर काबिज लोगों ने जमीन फ्री होल्ड करा ली है। जपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन बाजपेयी इसी इलाके से आते हैं। यह इलाका केशव प्रसाद मौर्य का भी माना जाता है। इसलिए भाजपा के नेता नजूल विधेयक का विरोध कर रहे हैं।

अयोध्या की हार के बाद संगठन सतर्क
दूसरा बड़ा कारण अयोध्या की हार है। अयोध्या की हार के बाद से संगठन डरा हुआ है। दरअसल, अयोध्या में भाजपा की हार का बड़ा कारण राम मंदिर बनाते समय सड़कों का चौड़ीकरण है। भाजपा ने राममंदिर के रास्ते में आए लाखों घरों पर बुलडोजर चलाया था। इसी कारण से अयोध्या के लोगों में गुस्सा भरा हुआ था। वहीं केशव प्रसाद मौर्य और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी जैसे संगठन के लोग डरे हुए हैं। कहीं यह विधेयक एक और बड़ी हार का कारण न बन बैठे।

सहयोगी दल भी जनाधार खिसकने को लेकर चिंतित
 वहीं दूसरी तरफ भाजपा के सहयोगी दल भी इस विधेयक के खिलाफ हैं। केंद्रीय मंत्री और अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल और कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने जमकर विरोध किया है। अनुप्रिया पटेल ने विधेयक को फिजूल बताया है। वहीं राजा भैया ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट भी नजूल की जमीन पर बना है, क्या उसे भी हटवा देंगे। वहीं यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कहा कि कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो सरकार को ऐसे घुमा रहे हैं कि वोटर नाराज हो जाएं। आगे 2027 के चुनाव हैं 2029 में चुनाव हैं हम किसी को उजाड़ेंगे तो क्या वो हमें छोड़ेंगे। इससे साफ पता चल रहा है कि सहयोगी दल भी जनाधार खिसकने को लेकर चिंतित हैं।

जमीन कारोबारियों और भूमाफियों का सियासी दखल
25 हज़ार हेक्टेयर से अधिक जमीन का मजा भूमाफिया ले रहे हैं। यूपी में सबसे ज्यादा नजूल भूमि प्रयागराज में है। विधेयक आते ही सबसे ज्यादा परेशानी भी प्रयागराज के नेताओं को हुई है। नजूल की बहुत सी जमीन लोगों को पट्टे पर दी गई है। पट्टाधारियों ने बहुत सी जगहों पर जमीनें बेचकर रजिस्ट्री भी करा ली हैं। कुछ लोग घर बनाकर रह रहें तो कुछ लोग अपना व्यवसाय भी कर रहे हैं। नूजल जमीन पर पर कई हजार एकड़ पर भूमाफिया कब्जा भी किए हुए हैं।

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