बागपत लोकसभा : 14 चुनावों में 10 बार चौधरी परिवार विजयी, सपा और बसपा को एक बार भी नहीं मिली जीत, इस बार भी मुकाबला मज़ेदार

UPT | Baghpat Lok Sabha

Apr 13, 2024 09:58

पूरे देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में लोकसभा 2024 के चुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव में मतदाता अपने सांसद को चुनने के लिए वोट करेगी। देश के साथ-साथ प्रदेश में भी 19 अप्रैल से शुरू होकर चुनाव 1 जून को खत्म होगा। चुनावों के परिणाम 4 जून को आएंगे। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश टाइम्स प्रदेश हर लोकसभा सीट के मिजाज और इतिहास को आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। इस अंक में पढ़ें बागपत लोकसभा क्षेत्र के बारे में...

Short Highlights
  • 1967 में बागपत लोकसभा सीट का गठन हुआ था।
  • 1967 के चुनाव से पहले बागपत लोकसभा सीट सरधना लोकसभा के नाम से जाना जाता था।

 

Baghpat Lok Sabha constituency : बागपत लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और चौधरी परिवार को लेकर उत्तर प्रदेश की चर्चित सीट में से एक है। बागपत लोकसभा सीट पर सिर्फ चौधरी चरण सिंह ही नहीं बल्कि उनके परिवार का गढ़ माना जाता है। इस सीट से चौधरी चरण सिंह के अलावा उनके बेटे अजित सिंह भी सांसद रह चुके हैं। साथ ही अजित सिंह के बेटे और चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि उनको इस सीट से जीत हासिल नहीं हुई थी। बागपत को चौधरी चरण सिंह के कर्मभूमि के रूप में जाना जाता है। इस लोकसभा सीट का गठन 1967 में हुआ था। तब से लेकर अब तक बागपत सीट पर 14 लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं। जिसमें 10 बार चरण सिंह के परिवार के पास यह सीट रही है। 3 बार चौधरी चरण सिंह तो 6 बार उनके बेटे अजित सिंह इस सीट से चुनकर संसद पहुंचे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बाकी सीटों की तरह यह सीट भी जाट बाहुल है। इस सीट पर 22.4% जाट हैं। इसके अलावा मुस्लिम 18.8%, अनुसूचित जाति 20.4%, गुर्जर 11.4%, यादव 3.2%, वैश्य 3.2% हैं। तो वहीं ब्राह्मण 6.4 % और ठाकुर 3.0%  हैं। बाकी अन्य जातियां हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा की सीटें आती हैं। जिनमें 3 पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है।

अजित सिंह 7 बार इस सीट का कर चुके हैं प्रतिनिधित्व
1967 के चुनाव से पहले बागपत लोकसभा सीट सरधना लोकसभा के नाम से जाना जाता था। 1967 में बागपत लोकसभा सीट का गठन हुआ। 1967 में जब पहली बार इस सीट पर चुनाव हुए तो रघुवीर सिंह शास्त्री पहली बार सांसद बनकर संसद पहुंचे। उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार केसी.शर्मा को चुनाव में हराया था। वही अगला चुनाव साल 1971 में हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस के रामचंद्र विकल ने तत्कालीन सांसद रघुवीर सिंह को चुनाव में मात दी थी। 1971 के चुनाव के बाद लगातार तीन चुनाव में किसानों के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1967 और 1980 में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के रामचंद्र विकल को चुनाव में हराया तो वहीं 1984 में चरण सिंह ने कांग्रेस के ही महेश चंद को मार दी थी। साल 1989 में पहली दफा था जब अजीत सिंह सांसद बने। जनता दल के टिकट पर अजीत सिंह ने बागपत लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया। उसके बाद 1991 और 1996 के चुनाव में भी अजीत सिंह इस सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। बागपत लोकसभा सीट पर 1998 में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार जीत हासिल की थी। भारतीय जनता पार्टी के सोमपाल शास्त्री ने अजीत सिंह को चुनाव में हराया था। लेकिन अगले ही चुनाव में अजीत सिंह ने फिर से इस सीट को हासिल कर लिया। 1999, 2004 और 2009 तीनों लोकसभा में अजीत सिंह ने लगातार बागपत लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया। इससे पहले भी अजीत सिंह 1989 से 1996 तक लगातार तीन बार सांसद बन चुके थे। लेकिन साल 2014 में मामला फिर से पलट गया। 2014 के मोदी लहर में भाजपा के डॉक्टर सत्यपाल सिंह ने बागपत लोकसभा सीट से एक बड़ी जीत हासिल की। सत्यपाल सिंह ने समाजवादी पार्टी के गुलाम मोहम्मद को तकरीबन 2 लाख वोटों से चुनाव में हराया। यह सिलसिला अगले चुनाव में भी जारी रहा। सत्यपाल सिंह ने 2019 के चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार जयंत चौधरी को चुनाव में हराया। जयंत चौधरी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते और अजीत सिंह के बेटे हैं। इस सीट से अजीत सिंह छह बार सांसद बन चुके हैं। वहीं चौधरी चरण सिंह ने भी लगातार तीन बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था।

बागपत लोकसभा सीट के में पांच विधानसभा की सीटें आती हैं। इनमें सीवलखास, छपरौली, बड़ौत, बागपत और मोदीनगर शामिल है। इन पांच सीट में से तीन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। वहीं दो सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल के विधायक हैं। बड़ौत, बागपत, मोदीनगर में जहां भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की थी तो वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में सीवलखास और छपरौली में राष्ट्रीय लोकदल के विधायक चुने गए थे। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था इस विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने आपस में गठबंधन कर लिया था। लेकिन 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय लोक दल ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया है। अब भाजपा और रालोद एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ मैदान में है।

सपा और बसपा को एक बार भी नहीं मिली जीत 
बागपत लोकसभा सीट की बात करें तो इस सीट पर अब तक एक बार भी सपा और बसपा को जीत नसीब नहीं हुई है। साल 2019 के चुनाव में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। वहीं 2014 के चुनाव में भाजपा के सत्यपाल सिंह ने सपा के गुलाम मोहम्मद को चुनाव हराया था।   इसके अलावा 2009 और 2004 में अजित सिंह ने रालोद के बैनर तले चुनाव लड़ा था और दोनों चुनाव में बसपा के उम्मीदवार को हराया था। इसके अलावा 1999 के चुनाव में भी अजित सिंह ने जीत हासिल की थी। इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार को हराया था। इससे पहले भी किसी चुनाव में इन दोनों पार्टियों को जीत नसीब नहीं हुई। इस बार चुनाव में दोनों पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। यह देखना होगा कि क्या इस बार इन दोनों पार्टियों के नेता जीत का स्वाद चख पाएंगे या उनके लिए सूखा  बदस्तूर जारी रहेगा।

इस चुनाव में भाजपा रालोद गठबंधन ने रालोद के पुराने नेता राजकुमार सांगवान को मैदान में उतारा है। वहीं समाजवादी पार्टी ने मनोज चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है। बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो मायावती ने बागपत लोकसभा सीट से प्रवीण बंसल पर भरोसा जताया है। सपा उम्मीदवार मनोज चौधरी की बात करें तो मनोज दो बार बागपत के जिला अध्यक्ष रहे हैं। साथ ही 2012 का विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। 2017 का विधानसभा चुनाव भी उन्होंने छपरौली विधानसभा क्षेत्र से लड़ा था लेकिन उन्हें जीत हासिल नहीं हुई थी। रालोद के उम्मीदवार राजकुमार सांगवान पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं। राजकुमार सांगवान जमीन से जुड़े हुए बताए जाते हैं। सांगवान को टिकट देने का फैसला जयंत चौधरी का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। अब यह देखना होगा कि इन तीनों उम्मीदवारों में से जनता किसे चुनकर संसद भेजती हैं।

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