Ganesh Janmotsav 2024 : पांच शुभ योग में गणेश जन्मोत्सव 7 सितंबर से, 11 दिन तक चलेगा गणेश उत्सव

UPT | गणेश चतुर्थी 2024।

Sep 05, 2024 09:44

प्राकट्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्य दोपहर अभिजित योग में हुआ था। इसलिए शुभता के प्रतीक श्री गणेश स्थापना, विशेष पूजन पंचामृत स्नान, चन्दन, हल्दी, केसर लेपन व आरती का विशेष समय यही होता है।

Short Highlights
  • 6 सितंबर को दोपहर बाद चित्रा नक्षत्र में कलंकी चतुर्थी 
  • 7 सितंबर को भद्रा का निवास स्थान इस बार पाताल लोक में 
  • गणेश मूर्ति की स्थापना चतुर्थी पर और विसर्जन अनन्त चतुर्दशी पर 
गणेश चतुर्थी तिथि : गणेश चतुर्थी इस बार छह सितम्बर को अपरान्ह 03:03 बजे प्रारंभ होकर चित्रा नक्षत्र व स्वाति नक्षत्र, ब्रह्म योग व एंद्र योग, बुधादित्य योग में 7 सितम्बर संध्या 05:39 तक रहेगी। इस बार गणेश चतुर्थी पर पांच शुभ योग लग रहे हैं। इस समय भद्रा का निवास सात सितम्बर को पाताल लोक में रहेगा। जो कि पृथ्वीवासियों के लिए कल्याणकारी होगा। 

“कलंक चतुर्थी” पर चन्द्र दर्शन निषेध
पंडित भारत ज्ञान भूषण के अनुसार “कलंक चतुर्थी” पर चन्द्र दर्शन निषेध होने के कारण छह सितम्बर को “कलंक चतुर्थी” तथा महा गणपति चतुर्थी श्री गणेश जन्मोत्सव व गणेश मूर्तिका की स्थापना सात सितम्बर, दिन शनिवार को सूर्योदनी चतुर्थी तिथि में शुभ समय में की जाएगी।

प्रत्येक कार्य का शुभारम्भ गणेश जी के बिना सम्भव नहीं
उन्होंने बताया कि प्रत्येक शुभ कार्य का शुभारम्भ ‘श्री गणेश’ से है। गणेश स्वयं आदि हैं। प्रारम्भ से हैं। इसलिए तो प्रत्येक कार्य का शुभारम्भ गणेश जी के बिना सम्भव नहीं होता है। चाहे महाविष्णु द्वारा सृष्टि का सृजन ब्रह्मा माध्यम से हो या समुद्र मंथन का शुभारम्भ। ये सब आदि गणेश के अग्र पूजन के बिना सम्भव ही नहीं। 

गणेश मूर्तिका की स्थापना चतुर्थी पर 
गणेश जन्मोत्सव मुख्यतयाः 11 दिवसीय आयोजन है। गणेश मूर्तिका की स्थापना चतुर्थी पर तथा विसर्जन अनन्त चतुर्दशी पर किया जाता है। जो प्रतीक है कि शुभ शक्तियां तक भी उस अनन्त में विलीन होनी होती हैं तो मनुष्य की तो बिसात ही क्या है। मनुष्य के अहंकार को विर्जन करने का तथा जितने दिन जिएं उतने दिन स्वास्तिक रूपी ऊर्जा का, गणेश की विघ्न विनाशक शक्ति को साथ में लिए हुए, व्यक्ति अपने को आजीवन अपने नियत कर्मों के माध्यम से शुभताएं भरता जा सके। 

गणेश चित्र या छोटी सी मूर्ति का विसर्जन जरूरी नहीं 
उन्होंने बताया कि ध्यान रहे मूर्ति विसर्जन नहीं की जाती है। केवल मनुष्य द्वारा बनायी हुई मूर्तिका को विसर्जित किया जाता है। ‘मूर्ति’ स्वयंभू होती है जो पत्थर के अन्दर स्वयं विराजमान होती है। केवल मूर्तिकार फालतू पत्थर को तराश कर अन्दर की मूर्ति को निकाल लेता है। मूर्ति हमेशा-हमेशा के लिए पूज्नीय रहती है विसर्जनीय नहीं होती। लेकिन नाशवान मनुष्य द्वारा बनायी मिट्टी की मूर्ति ही विसर्जनीय होती है।

अस्थायी मूर्तिका भगवान की निर्मित करता है विसर्जन के लिए
जिस तरह से मनुष्य का शरीर पृथ्वी तत्व से बना होता है और अंततः विसर्जित कर दिया जाता है। गणेश विसर्जन आदि मनुष्य का भगवान के प्रति, प्रतिकार प्रकट करने का भी ढंग है, जिस प्रकार भगवान हमें शाश्वत व अमर नहीं बनाता, उसी प्रकार मनुष्य भी अस्थायी मूर्तिका भगवान की निर्मित करता है विसर्जन के लिए। ये नश्वर जगत का बोध कराए रखने का भी प्रतीक है कि इस जगत में अहंकार करने का कोई कारण ही नहीं है क्योंकि कुछ भी यहां स्थिर व स्थायी है ही नहीं। 

तीन इंच से 9 इंच तक की छोटी मूर्ति
प्रयास करें तीन इन्च से नौ इंच तक की छोटी मूर्ति या किसी भी नाप के चित्र सदा घर पर रख पूजित करें। 

ये है गणेश चतुर्थी पर शुभतम समय 
भगवान गणेश का प्राकट्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्य दोपहर अभिजित योग में हुआ था। इसलिए शुभता के प्रतीक श्री गणेश स्थापना, विशेष पूजन पंचामृत स्नान, चन्दन, हल्दी, केसर लेपन व आरती का विशेष समय यही होता है। दिनांक 7 सितम्बर गणेश चतुर्थी पर स्थापना व पूजन  के मुहूर्त निम्न प्रकार हैं। 

गणपति स्थापना व पूजन मुहूर्त
शुभ योग - प्रातः 07:36 से 09:10 तक
अभिजित मुहूर्त – 11:53 से 12:43 तक 
  लाभामृत योग - दिन 01:52 से 05:01 तक
चतुर्थी तिथि संध्या लगभग 5:39 बजे पूर्ण हो जाएगी।

इस दिशा में स्थापना करें मूर्ति की
गणेश नई मूर्तिका पूजा कक्ष या उत्तर दिशा की शुद्ध स्थल पर हल्दी से स्वास्तिक बना कर पीले आसन पर इस तरह स्थापित करें कि गणेश विग्रह की पीठ उत्तर दिशा में हो तथा मुख दक्षिण की दिशा में हो। गणेश भक्त उत्तर की ओर मुख करके गणपति पूजन करें।

बाल गणेश का प्रिय भोग
केसर, हल्दी युक्त दुग्ध, बेल का मुरब्बा, बूंदी के लड्डू मोदक, कदली फल केला, आम, पपीता, दूब घास।

गणेश जी को चढ़ाए जाने वाले शुभ पदार्थ 
सिंदूर, केसर, हल्दी, पीले वस़्त्र, पीला आसन।
गणेश जी को ना चढ़ाए जाने वाले पदार्थ -
तुलसी दल, तुलसीमंजरी, तुलसी माला।          

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