नोएडा मुआवजा घोटाले में चौंकाने वाला खुलासा : दो बड़े अधिकारियों के फाइल पर दस्तखत, एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की रिपोर्ट

UPT | प्रतीकात्मक फोटो

Mar 01, 2024 00:39

नोएडा मुआवजा घोटाले में बड़ा खुलासा सामने आया है। नोएड़ा के गेझा और तिलपताबाद गांव में जमीन अधिग्रहण के नाम पर किए गए लगभग 100 करोड़ रुपये के घोटाले में बड़े-बड़े अफसर शामिल रहे...

Noida News : नोएडा मुआवजा घोटाले में बड़ा खुलासा सामने आया है। नोएड़ा के गेझा और तिलपताबाद गांव में जमीन अधिग्रहण के नाम पर किए गए लगभग 100 करोड़ रुपये के घोटाले में बड़े-बड़े अफसर शामिल रहे हैं। इस घोटाले की जांच कर रही एसआईटी द्वारा अपनी जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी है। रिपोर्ट में किसानों को मुआवजा देने की फाइल भी शामिल है। इस फाइल पर तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी रमा रमण और अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी राजेश प्रकाश के हस्ताक्षर हैं। इन दोनों बड़े अफसरों ने किसानों को मुआवजा देने के लिए फाइल की नोटशीट पर साफ-साफ मंजूरी दी है। इस समय पूर्व अधिकारी रमा रमण रिटायर हो चुके हैं, जबकि राजेश प्रकाश उत्तर प्रदेश के लिए नेशनल कैपिटल रीजन बोर्ड में एडिशनल कमिशनर के पद पर तैनात हैं।

18 मार्च को होगी फिर से सुनवाई
इस घोटाले की सुनवाई बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने सुनवाई की। अदालत के सामने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) की जांच रिपोर्ट पेश की गई है। अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि "एसआईटी को इन दो अफसरों के अलावा और कौन से अफसर जिम्मेदार मिले।" सरकारी वकील ने कोर्ट को सीधे जवाब देने की बजाय कहा कि एफआईटी ने करीब 1,200 मामलों की गहराई से छानबीन की है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने फिर पूछा कि क्या केवल यही दोंनो अफसर गलत ढंग से मुआवजा बांटने के लिए जिम्मेदार मिले हैं। इस बार सरकारी वकील ने कहा कि अभी तो इन दोनों की भूमिका सामने आई है। इस पर कोर्ट ने कहा, "बाकी अफसर तो 'होली काऊ' हैं।" एसआईटी की रिपोर्ट सभी पक्षकारों को दी गई है।

बाकी अफसरों की संपत्तियों का ब्यौरा मांगा
नोएडा की सीईओ रहते हुए रितु माहेश्वरी ने अथॉरिटी के निलंबित विधि सलाहकार दिनेश कुमार सिंह और सहायक विधि अधिकारी वीरेंद्र नागर के खिलाफ  एफआईआर दर्ज करवाई थी। अब एसआईटी ने इन्हीं दोनों को जिम्मेदार ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि दोनों अफसर तो बहुत छोटे हैं। उन बड़े अफसरों के नाम बताइए, जो इस घोटाले के लिए जिम्मेदार हैं। इन दोनों अफसरों की ओर से कोर्ट में अपनी-अपनी प्रॉपर्टी का ब्यौरा भी सौंपा गया है। वीरेंद्र नागर के वकील ने अदालत से कहा कि बाकी अफसरों की संपत्तियों का ब्यौरा भी मांगा जाए। इसपर अदालत ने सहमति जाहिर की, लेकिन अभी आदेश नहीं दिया है। 

सीईओ रितु माहेश्वरी के आदेश पर हुई थी एफआईआर दर्ज
नोएडा के गेझा और तिलपताबाद गांव में पुराने भूमि अधिग्रहण पर गैरकानूनी ढंग से करोड़ों रुपये का मुआवजा देने के मामले में शिकायत की गई थी। प्राधिकरण अफसरों, दलालों और किसानों ने हाईकोर्ट को फर्जी याचिका का हवाला दिया। अब अक्टूबर 2023 में सीईओ रितु माहेश्वरी के आदेश पर एफआईआर दर्ज कराई गई थी। नोएडा के दो अधिकारियों और एक काश्तकार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इन लोगों पर 7,26,80,427 रुपये का मुआवजा बिना किसी अधिकार के आदेश पर गलत तरीके से भुगतान करने का आरोप है। जिसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया। प्राधिकरण के सहायक विधि अधिकारी वीरेंद्र सिंह नागर को एफआईआर में नामजद किया गया। वीरेन्द्र सिंह नागर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मांगी। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज होने के बाद वीरेंद्र नागर ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर राहत की मांग की। अब इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

केवल चार दिनों में पकड़ी फाइल ने रफ्तार
जानकारी के अनुसार, गेझा और तिलपताबाद गांव की एक महिला किसान के नाम पर 27 बंच केसेज की फाइल तैयार की गई। कार्यालय सहायक मदनलाल मीणा ने 16 नवंबर 2015 को फाइल बनाई गई थी। बताया गया कि हाईकोर्ट में 14 अपील लंबित हैं। प्राधिकरण हित में किसानों से सहमति बनाना जरूरी है। इसके लिए किसानों को बढ़े मुआवजा का लाभ देना प्राधिकरण हित में रहेगा। इस फाइल पर महज चार दिनों में सभी जिम्मेदार अफसरों ने दस्तखत किए और मंजूरी दे दी। सबसे पहले सहायक विधिक अधिकारी वीरेंद्र सिंह नागर और विधि सलाहकार दिनेश कुमार सिंह ने उसी दिन 16 नवंबर 2015 को हस्ताक्षर कर दिए । इसके बाद 19 नवंबर 2015 को तत्कालीन अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी राजेश प्रकाश और 20 नवंबर 2015 को मुख्य कार्यपालक अधिकारी रमा रमण ने मंजूरी दे दी। इस तरह महज चार दिनों में यह फाइल काफी तेजी से दौड़ाई गई। राजेश प्रकाश 10 अक्टूबर 2014 से 17 जुलाई 2016 तक नोएडा के एसीईओ के पद पर रहे थे। वहीं रमा रमण 14 दिसंबर 2010 से 24 अगस्त 2016 तक नोएडा के सीईओ के पद रहे थे। इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि हाईकोर्ट में दाखिल जिस अपील का हवाला दिया गया था वह कई साल पहले खारिज हो गई थी।
 
अदालत ने की तल्ख टिप्पणी
नवंबर 2023 में इस मामले में सुनवाई हुई थी। एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने केवल इसी मामले की रिपोर्ट पेश की थी। घोटाले के लिए जिम्मेदार अफसरों के नाम नहीं बताए और न ही कार्रवाई के बारे में जानकारी दी। इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर की थी। तब कोर्ट ने भ्रष्ट अधिकारियों के नाम उजागर करने को कहा था। पिछली सुनवाई में एसआईटी ने रिपोर्ट जमा की। एसआईटी की रिपोर्ट हिंदी में थी। कोर्ट ने अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए शासन को आदेश दिया था। सोमवार को अदालत ने अंग्रेजी में रिपोर्ट पढ़ी है। उसी दौरान कमेंट किया, "क्या ये दो अफसर जिम्मेदार हैं, बाकी 'होली काऊ' हैं।" इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी पर तल्ख टिप्पणी की थी। प्राधिकरण के पूरे सेटअप को भ्रष्ट बताया था। 

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