Meerut News : गन्ने में पोका बोइंग रोग ने बढ़ाई किसानों की चिंता, जारी हुई एडवाइजरी

UPT | गन्ना।

Jul 30, 2024 22:40

समय से रोकथाम न की जाए तो धीरे-धीरे पत्तियां सूखकर नीचे गिरने लगती हैं और गन्ने की गोभ काली पड़ जाती है।

Short Highlights
  • कृषि रक्षा विभाग ने किसानों को किया सतर्क
  • बारिश कम होने और उमस से बढ़ी समस्या
  • गन्ने की फसल पर मंडरा रहा कीट रोगों का खतरा
Meerut News : इस बार बारिश कम होने और उमस के कारण गन्ने की फसल पर रोग और कीटों का खतरा बढ़ गया है। कीट रोग के खतरे को देखते हुए गन्ना किसानों की चिंता बढ़ गई है। गन्ना किसानों के लिए फसल में कीट और रोगों की रोकथाम के लिए एडवाइजरी जारी की गई है।

बारिश अभी तक कम हुई और उमस बहुत
जिला कृषि रक्षा अधिकारी विकास कुमार ने बताया है कि गन्ने की फसल में मिलीबग कीट और पोका बोइंग रोग ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। बारिश अभी तक कम हुई और उमस बहुत है। जिससे गन्ने की फसल पर पोका बोइंग का प्रकोप बढ़ा है। इन कीट और रोग की समस्या का असर गन्ने की फसल बढ़वार पर पड़ेगा। गन्ने की फसल के कीट रोग के प्रकोप के रोकथाम के लिए किसानों को एडवाइजरी जारी की है।  

किसानों को गन्ने की फसल बचाने को दी जानकारी
मीलीबग—
मीली बग कीट गन्ने की पत्तियों में घुस जाता है. जिससे वह रस चूसता रहता है। इससे पत्तियों पर काले रंग का फंफूद बन जाता है और कुछ समय बाद पत्तियां काली पड़ जाती हैं। इसके बाद पौधे की बढ़वार रुक जाती है। पत्तियों और गन्ने की पोरी का साइस छोटा रहता है

पांच से सात दिन में हटाते रहें
उपचार: मीलीबग में थायमिथोक्सोम की 200 ग्राम, इमीड़ा कलोरोपिड़ रसायन की 200 एमएल मात्रा 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें। फसल की बढ़वार के लिए माइक्रो न्यटिएन का भी प्रयोग कर सकते हैं। पीलापन जिन पत्तियों में दिखता है, उन्हें पांच से सात दिन में हटाते रहें।

लाल रंग के चकते बन जाते
पोंक्का बोईंग पोंक्का बोइंग कवक फंगस की बीमारी है। गन्ने की मुख्य पत्ती सिकुड़ने लगती हैं। पत्तियों पर पीले लाल रंग के चकते बन जाते हैं। अगर समय से रोकथाम न की जाए तो धीरे-धीरे पत्तियां सूखकर नीचे गिरने लगती हैं और गन्ने की गोभ काली पड़ जाती है। उपचारित किए बगैर बीज का प्रयोग करना भी रोग आने का प्रमुख कारण है।

ट्राइकोडरमा पाउडर को प्रति लीटर पानी में मिलाकर
उपचार
पोंक्का बोइंग रोग आने पर पांच से दस ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह उपाय अधिक कारगर है। कार्बनडाजिम 50 डब्ल्यू पी का 0.1 प्रतिशत 400 ग्राम फफूंदीनासक और कॉपर ऑफसी क्लोराइड 50 डब्ल्यू पी का 0.2 प्रतिशत 800 ग्राम फफूँदींनासक का प्रयोग 400 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काओ करें।

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