नवरात्रि विशेष : शैलपुत्री रूप में माता विंध्यवासिनी का किया पूजन, पढ़िए इस बार कितने दिन तक मां के स्वरूप पूजे जाएंगे

UPT | नवरात्रि विशेष।

Oct 03, 2024 16:58

नवरात्रि पर विंध्याचल धाम में पूजा और दर्शन के लिए लाखों भक्त उमड़ते हैं। इस वर्ष नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि यह नौ दिनों के बजाय दस दिनों का पर्व है, जिसमें भक्त मां के विभिन्न स्वरूपों का पूजन करेंगे।

mirzapur News : नवरात्रि का पर्व श्रद्धा और भक्ति का ऐसा अवसर है जब मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मिर्जापुर स्थित विंध्याचल धाम में इस विशेष अवसर पर मां विंध्यवासिनी की पूजा और दर्शन के लिए लाखों भक्त उमड़ते हैं। इस वर्ष नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि यह नौ दिनों के बजाय दस दिनों का पर्व है, जिसमें भक्त मां के विभिन्न स्वरूपों का पूजन करेंगे। इस बार का नवरात्र कई वर्षों के बाद पड़ा है, जो भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जा रहा है। मां दुर्गा का यह विशेष नवरात्र भक्तों की हर मनोकामना पूरी करने का अवसर प्रदान करेगा। 

विंध्याचल धाम केवल एक तीर्थ स्थल नहीं है, बल्कि इसे प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में भी माना जाता है। यहां मां विंध्यवासिनी
की पूजा की जाती है, जिन्हें आदिशक्ति जगतम्बा के नाम से भी जाना जाता है। इस नवरात्र में भक्त आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा करेंगे, जिसमें पहला दिन शैलपुत्री की पूजा के लिए समर्पित होता है। मां शैलपुत्री, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं, को इस दिन विशेष विधि-विधान से पूजित किया जाता है। यह स्वरूप सभी को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

संगम तट पर स्थित यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक पूजनीय है 
विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी का यह स्वरूप शैलपुत्री के रूप में भक्तों को दर्शन देकर उनकी हर विपत्ति का नाश करता है।
विंध्य पर्वत और पापनाशिनी गंगा के संगम तट पर स्थित यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक पूजनीय है। पहले दिन भक्तों ने मां शैलपुत्री की पूजा पूरे श्रद्धा भाव के साथ की, जिससे पूरा विंध्य क्षेत्र घंटियों और घडियालों की ध्वनि से गूंज उठा। भक्त मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े होकर जयकारा लगाते रहे। 

शैलपुत्री पूजा का महत्व :
शैल का अर्थ होता है पहाड़, और शैलपुत्री मां पार्वती को कहा जाता है, जो हिमालय की पुत्री हैं। मां शैलपुत्री के एक हाथ में
त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है, जो शक्ति और पवित्रता का प्रतीक है। विन्ध्यक्षेत्र में मां विंध्यवासिनी को
भक्तों के कष्ट हरने वाली देवी के रूप में जाना जाता है, और हर वर्ष नवरात्रि में यहां लाखों की संख्या में भक्त माता के
दर्शन के लिए आते हैं। 

विशेष पूजन विधान
नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के लिए पंचांग के अनुसार सुबह 6:22 से 7:30 तक उत्तम समय था, जबकि अभिजीत मुहूर्त दिन में 11 बजे से 12:30 बजे तक रहा। इस दिन साधक मां शैलपुत्री के मुळचक्र को जागृत करने का प्रयास करते हैं, जिससे साधक को आत्मिक और शारीरिक शुद्धि प्राप्त होती है। 

भक्तों की आस्था और विश्वास
देश के विभिन्न कोनों के साथ-साथ विदेशों से भी भक्त इस सिद्धपीठ में आकर माता के दर्शन करते हैं। भक्तों का विश्वास है
कि मां विंध्यवासिनी उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। जो भी भक्त श्रद्धा के साथ मां के समक्ष अपनी अभिलाषा
रखता है, मां उसकी हर इच्छा को पूरी करती हैं। नवरात्र के नौ दिन भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा कर अपने जीवन के
सभी कष्टों से मुक्ति पाते हैं। इस पूजा से भक्तों के मन, वचन और कर्म की शुद्धि होती है, और उनके जीवन में नई ऊर्जा का
संचार होता है।

विंध्य क्षेत्र में नवरात्र के दौरान लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और मां विंध्यवासिनी के दर्शन करते हैं। माना जाता है कि
मां का दर्शन मात्र से ही शरीर में नया उत्साह और सद्विचार का संचार होता है। 

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