Sexual Harassment in the Workplace : कामकाजी महिलाएं जान लें अपने कानून और अधिकार, देखिए POSH Act पर क्या कह रहे हैं जानकार

UPT | Symbolic Photo

May 25, 2024 20:06

इस कानून को समझाते हुए एडवोकेट रवि झा ने कहा कि यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम-2013, एक महत्वपूर्ण कानून है जिसका उद्देश्य महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाना है...

UPT Desk News : जब जमाना बराबरी का शुरू हुआ तो महिलाएं भी घर से निकलीं और पुरुषों की तरह बाहर जाकर काम करने लगीं। साथ ही पैसे भी कमाने लगीं। जब महिलाएं घर से बाहर निकलने लगीं तो, कार्यस्थल पर बहुत सी चुनौतियां आईं। सबसे बड़ी चुनौती रही सुरक्षा की। वर्क प्लेस पर महिलाएं सेफ रहें और सुरक्षित महसूस करें ये काफी जरूरी है। इसको लेकर कानून भी बने। इसके बावजूद आज भी कई घटनाएं देखने में आती हैं। आज हम 'हक की बात' में विस्तार से चर्चा करेंगे। यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की। इसको समझने के लिए हमने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट रवि झा से बात की।

कब और क्यों बना कानून ?
इस कानून को समझाते हुए एडवोकेट रवि झा ने कहा कि यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, एक महत्वपूर्ण कानून है जिसका उद्देश्य महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाना है। जब भी हमारे सामने यह एक्ट आता है, तो इससे जुड़ा विशाखा का केस सामने आता है। फिर हम सोचते हैं कि विशाखा जरूर कोई लड़की रही होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। विशाखा एक एनजीओ का नाम था और भवरी देवी नाम की महिला उस वक्त इस एनजीओ के जरिए राजस्थान सरकार में अपनी सेवा दे रही थी। 

एक दिन हुआ यूं कि गांव में बाल विवाह हो रहा था। भवरी देवी उसे रोकने पुलिस को लेकर पहुंच गईं। इससे नाराज गांव वालों ने एक दिन काम से लौट रही भवरी देवी और उनके पति के साथ मारपीट की, साथ ही भवरी देवी का बलात्कार भी किया। आगे जाकर पुलिस में शिकायत हुई, मामला कई सालों तक चला। हालांकि आरोपी बरी हो गए, क्योंकि रेप का आरोप भवरी देवी के अगेंस्ट सिद्ध नहीं हो सका। यह बात जब एनजीओ को पता चली वो भवरी देवी से मिले और सुप्रीम कोर्ट में 1997 में विशाखा बनाम भारत सरकार के नाम से पीआईएल दायर किया। इसमें कहा गया कि हम मानते हैं कि भवरी देवी का बलात्कार उस जगह पर नहीं किया गया, जहां वह काम करती थी। लेकिन उनके काम की वजह से ही उनके साथ यह सब हुआ।

क्या कहता है कानून
यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम- 2013 कहता है कि जरूरी नहीं कि उत्पीड़न तभी माना जाएगा जब महिला के साथ सिर्फ उसी जगह पर यौन उत्पीड़न हो, जहां वह काम कर रही है। अगर उनके काम कि वजह से उनका लैंगिक उत्पीड़न किसी भी जगह किया जा रहा है तो वह इसी के दायरे में आएगा।

कहां करें शिकायत?
एडवोकेट रवि बताते हैं कि इस कानून के तहत दो कमेटी का गठन किया जा सकता है। एक होती है इंटरनल कंप्लेन कमेटी। दूसरा होता है लोकल कंप्लेन कमेटी, जो कि डीएम के अधीन होता है। इसके तहत वो महिलाएं शिकायत कर सकती हैं, जो किसी के घर में काम करती हैं या दिहाड़ी मजदूरी करती है।

विस्तार से समझें शिकायत का प्रोसेस
  • कानून के मुताबिक, जिस संस्थान में दस से ज्यादा कर्मचारी हों, वहां पर इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी या पॉश कमेटी बनाना जरूरी है।
  • कमेटी की अध्यक्ष कंपनी की सीनियर महिला कर्मचारी होगी।
  • कमेटी में 50% महिलाएं होना जरूरी।
  • कंपनी में बनी पॉश कमेटी की जानकारी जैसे, सदस्यों के नाम और नंबर दफ्तर में किसी ऐसी जगह डिस्प्ले पर लगी होगी जहां आसानी से महिला कर्मचारी इसे देख सकें। इसके अलावा ऑफिस में विजिट करने आई कोई महिला भी इसे देख सके।
  • कमेटी में एक महिला सदस्य महिलाओं से जुड़े किसी एनजीओ से होगी,जिसे एक्सटर्नल मेंबर कहते हैं।
  • 10 से कम कर्मचारियों वाली कंपनी में ऐसी कमेटी जरूरी नहीं, ऐसे में कलेक्ट्रेट में बनी लोकल कंप्लेंट्स कमेटी में शिकायत कर सकते हैं। डोमेस्टिक हेल्पर और महिला मजदूर भी इसी कमेटी में शिकायत कर सकते हैं।
  • लोकल पुलिस से शिकायत कर सकती हैं।
  • न्यायालय में भी शिकायत कर सकते हैं।
जानें किन हालातों में आप हो रहे हैं यौन उत्पीड़न के शिकार?
  • महिला से सेक्सुअल फेवर की चाहत रखते हुए उसके साथ किया गया कोई भी व्यवहार।
  • महिला की तारीफ करना गलत नहीं, लेकिन गलत इरादे से बार-बार तारीफ करना भी उत्पीड़न।
  • सेक्सुअल फेवर की चाहत में महिला के विरोध में व्यवहार करना।
  • अगर कोई पुरुष किसी महिला को पसंद करता हो या उससे दोस्ती करना चाहे तो साफ और सीधे शब्दों में अपनी बात कह सकता है,लेकिन उसका इरादा किसी भी तरह के सेक्सुअल फेवर का न हो।
  • अश्लील इशारे करना, अश्लील मैसेज भेजना या फिर अश्लील तस्वीरें या साहित्य दिखाना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।
  • महिला के न कहने के बाद भी उससे सेक्सुअल फेवर चाहना और जबरदस्ती करना यौन उत्पीड़न है।
  • गलत तरीके से छूना, गलत इशारे करना, गलत तरीके से देखना।
  • मेरी बात मानों नहीं तो काम नहीं करने दूंगा, प्रमोशन नहीं दूगा, ट्रांसफर कर दूंगा या प्रमोशन दूंगा।
क्या गलत तरीके से छूना यौन उत्पीड़न के दायरे में आएगा?
इस सवाल पर एडवोकेट ने कहा, जी हां। गलत तरीके से छूना यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है। क्योंकि जब हम भारतीय दंड संहिता (आईपीसी ) की बात करते हैं, तो यह आपके इंटेंट की बात करता है। अगर आपका इरादा गलत है, तो  छूना यौन उत्पीड़न के दायरे में आएगा।

सेटलमेंट पैसों के आधार पर नहीं
कानून के मुताबिक अगर अपराधी को गलती का ऐहसास है, और वह माफी मांग रहा तो आपसी समझौते से मामले को खत्म किया जा सकता है। मगर यह समझौता पैसों के आधार पर नहीं होना चाहिए। 

3 महीने की मिल सकती हैं छुट्टी
गौरतलब है कि इस कानून के दायरे में हुआ हर केस गैर-संज्ञेय अपराध यानी Non Cognizable Report होगा। बाद में अगर कोई अपराध, धारा जुड़ता है, तो इसे Cognizable Report माना जाएगा।
इसके साथ ही अगर महिला चाहे तो तीन महीने की छुट्टी ले सकती है। क्योंकि इस स्थिति में महिला ना सिर्फ लैंगिक उत्पीड़न बल्कि मानसिक और आर्थिक तौर पर भी परेशानी झेलती है।

Also Read