बड़ी खबर : जेल में जाति आधारित भेदभाव नहीं हो सकता, ऐसे नियम खत्म हो - सुप्रीम कोर्ट

UPT | Supreme Court Of India

Oct 03, 2024 13:50

अदालत ने कहा कि जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव करना स्वीकार्य नहीं है। यह निर्णय औपनिवेशिक काल की उन परंपराओं को खत्म करने की दिशा में एक कदम है...

Short Highlights
  • जेलों में जाति आधारित भेदभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
  • जाति के आधार पर भेदभाव करना गलत
  • कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए
New Delhi News : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कई राज्यों की जेलों में जाति आधारित भेदभाव को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव करना स्वीकार्य नहीं है। यह निर्णय औपनिवेशिक काल की उन परंपराओं को खत्म करने की दिशा में एक कदम है, जहां कैदियों का सम्मान और मानवता के साथ व्यवहार नहीं किया जाता था। यह फैसला सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनाया।

कैदियों को गरिमा से जीने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेल अधिकारियों को कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए। जाति को अलगाव का आधार बनाना न केवल अनुचित है, बल्कि यह दुश्मनी भी पैदा कर सकता है। सभी कैदियों का अधिकार है कि वे गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करें और इसे सुनिश्चित करना समाज की जिम्मेदारी है।



प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भेदभाव का स्वरूप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों हो सकता है। ऐसे भेदभाव को बढ़ावा देने वाले रूढ़िवादियों को रोकना राज्य की जिम्मेदारी है। न्यायालय ने बताया कि अप्रत्यक्ष और प्रणालीगत भेदभाव के मामलों में उचित कार्रवाई आवश्यक है, ताकि समाज में मानवीय सम्मान और आत्म-सम्मान को सुरक्षित किया जा सके।

अनुच्छेद 17 का किया जिक्र
कोर्ट ने अनुच्छेद 17 का जिक्र करते हुए कहा कि यह सभी नागरिकों की संवैधानिक स्थिति को मजबूत करता है। कैदियों के प्रति अनादर की प्रवृत्ति औपनिवेशिक काल की एक बुरी याद है, जब उन्हें अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा। संविधान में यह सुनिश्चित किया गया है कि कैदियों को सम्मानपूर्वक व्यवहार मिले और जेल प्रबंधन को उनकी मानसिक एवं शारीरिक स्थिति का ध्यान रखना चाहिए।

औपनिवेशिक काल के आपराधिक कानून आज भी लागू
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि औपनिवेशिक काल के आपराधिक कानून आज भी प्रभावी हैं, जिससे जातिगत भेदभाव को बढ़ावा मिलता है। संवैधानिक समाज के नियमों को सभी नागरिकों के बीच समानता और सम्मान को बनाए रखना चाहिए। यह संघर्ष रातोंरात समाप्त नहीं होगा, बल्कि इसे धैर्यपूर्वक आगे बढ़ाना होगा।

रजिस्टर से हटाया जाएगा जाति कॉलम
दरअसल, याचिकाकर्ता ने 11 राज्यों के जेल प्रावधानों को चुनौती दी है, जिसमें मैनुअल श्रम, बैरकों का विभाजन और कैदियों की पहचान से जुड़े जातिगत भेदभाव के मुद्दे शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे प्रावधानों को असंवैधानिक मानते हुए सभी राज्यों को आदेश दिया है कि वे फैसले के अनुसार आवश्यक बदलाव करें। इसके तहत जाति कॉलम को रजिस्टर से हटाने और जेलों के भीतर भेदभाव के मुद्दे पर तीन महीने में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया गया है।

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