वोट से पहले लगाई जाती है नीली स्याही : आसानी से क्यों नहीं मिटता इसका रंग ? कई देशों में होता है इसका इस्तेमाल

UPT | Election Ink

Mar 26, 2024 18:51

इलेक्शन इंक की बात करें तो ये आसानी से मिटती नहीं है। साथ ही इसे पानी से धोने पर भी कुछ दिनों तक बनी रहती है। इलेक्शन इंक को बनाने का काम 1950 के दशक में शुरू हुआ था।

Short Highlights
  • इस स्याही को 10 मिलीलीटर की लाखों बोतलों में रखा जाता है।
  •  चुनावी स्याही का निशान धीरे-धीरे मिटता है।
National News : देश में हर साल चुनाव होते रहते हैं। कभी लोकसभा तो कभी राज्यों में विधानसभा के चुनाव होते हैं। साथ ही अलग अलग राज्यों में पंचायत और नगर निगम के चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों में वोट डालने से पहले बूथ पर तैनात कर्मी वोटरों के तर्जनी उंगली पर नीली स्याही लगाते हैं। ताकि वोटर दोबारा वोट नहीं दे सके। इस चिन्ह से यह पता लगता है कि इस वोटर ने पहले ही वोट दे दिया है। इस नीली स्याही को इलेक्शन इंक भी कहा जाता है।

इलेक्शन इंक की बात करें तो ये आसानी से मिटती नहीं है। साथ ही इसे पानी से धोने पर भी कुछ दिनों तक बनी रहती है। इलेक्शन इंक को बनाने का काम 1950 के दशक में शुरू हुआ था। इसे बनाने के पीछे यह वजह थी कि इससे फर्जी मतदान साथ ही दोबारा होने वाला मतदान रुक सके। इसे CSIR के वैज्ञानिकों ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी (CSIR -NPL) में इस जल्दी ना मिटने वाली स्याही का फार्मूला 1952 में इजाद किया था। बाद में इसे नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NRDC) ने पेटेंट करा लिया था। इस इंक या स्याही की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे बनाने में एक विशेष तरह के केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। जो इसे आसानी से मिटने नहीं देता है।

खास केमिकल से बना होता है इंक
इस चुनावी स्याही को बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट नामक केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और जल्दी आसानी से मिटता नहीं है। जानकारी के मुताबिक जब चुनाव कर्मी वोटर की उंगली पर नीली स्याही लगाता है तब सिल्वर नाइट्रेट जो हमारे उंगली पर लगता है हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है, जो काले रंग का होता है। इसकी खास बात यह है कि सिल्वर क्लोराइड पानी लगने से खराब नहीं होता है। साथ ही रोशनी में आने से और गहरा हो जाता है। चुनावी स्याही का निशान धीरे-धीरे मिटता है। त्वचा के सेल पुराने होने के साथ ही धीरे-धीरे इसका रंग उतरने लगता है।

कई देशों में होता है सप्लाई
जानकारी के मुताबिक यह इलेक्शन इंक मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड नामक कंपनी बनाती है। इस स्याही को 10 मिलीलीटर की लाखों बोतलों में रखा जाता है। जिसे इसी तरह के बोतल में भरकर मतदान केंद्र पर भेजा जाता है। भारत के अलावा इसका इस्तेमाल कई और देशों में भी किया जाता है। इस इलेक्शन इंक को कनाडा, घाना, मलेशिया, नेपाल, नाइजीरिया, मंगोलिया,दक्षिण अफ्रीका और मालदीव जैसे देशों में भेजा जाता है।

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