वकील पर भड़का सुप्रीम कोर्ट : कहा- पत्रकारिता करने की इजाजत नहीं देते, जानिए पूरा ममाला

UPT | Supreme Court

Jul 30, 2024 16:29

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा की है। जिसमें एक वकील के पत्रकारिता करने के वैधता पर प्रश्न उठाया गया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच...

New Delhi News : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा की है। जिसमें एक वकील के पत्रकारिता करने के वैधता पर प्रश्न उठाया गया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने मोहम्मद कमरान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर ध्यान दिया।

बार काउंसिल के नियम नहीं देते अनुमति
मामला यह है कि न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील सुन रहा था, जिसमें पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था। बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप है कि उन्होंने शिकायतकर्ता मोहम्मद कमरान के खिलाफ मानहानिकारक आरोप लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया कि मोहम्मद कमरान एक वकील और पत्रकार दोनों के रूप में कैसे कार्यरत हो सकते हैं। न्यायमूर्ति ओका ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि "बार काउंसिल के नियम वकीलों को पत्रकारिता करने की अनुमति नहीं देते हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आप खुद को दोनों भूमिकाओं में कैसे देख सकते हैं।"

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के नियमों के मुताबिक एक वकील जो राज्य बार काउंसिल में पंजीकृत है। उसे किसी अन्य पेशे या रोजगार में शामिल होने की अनुमति नहीं है। हालांकि वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहा है, जिस पर बेंच ने संदेह जताया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) से अपीलकर्ता मोहम्मद कामरान के खिलाफ की जाने वाली संभावित कार्रवाई के बारे में जवाब माँगा है। न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया कि "हम नोटिस के अलावा यूपी बार काउंसिल और बीसीआई से भी जवाब मांगेंगे और उन्हें यह बताना होगा कि आपके खिलाफ कौन सी कार्रवाई की जाएगी।"

मामले की पृष्ठभूमि में बृज भूषण शरण सिंह ने सितंबर 2022 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को दो पत्र लिखे थे। जिसमें उन्होंने शिकायतकर्ता के खिलाफ विभिन्न आपराधिक मामलों का हवाला दिया था। इसके बाद शिकायतकर्ता ने बृज भूषण शरण सिंह पर मानहानि का आरोप लगाया, जिसका निष्कर्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था।

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