लेटरल एंट्री से डायरेक्ट भर्ती मामले में बड़ी खबर : केंद्र सरकार ने प्रक्रिया रद्द करने के लिए यूपीएससी को पत्र लिखा

UPT | केंद्र सरकार ने यूपीएससी को पत्र लिखा

Aug 20, 2024 13:48

संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी में लेटरल एंट्री से भर्ती के फैसले पर केंद्र सरकार बैकफुट पर आ गई है। विपक्ष के भयंकर विरोध के बाद अब केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी को चिट्ठी लिखकर भर्ती विज्ञापन को रद्द करने का अनुरोध किया है।

Short Highlights
  • लेटरल एंट्री से डायरेक्ट भर्ती पर रोक का अनुरोध
  • केंद्रीय मंत्री ने यूपीएससी को लिखा पत्र
  • प्रधानमंत्री मोदी के दखल के बाद लिखा पत्र
New Delhi : संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी में लेटरल एंट्री से भर्ती के फैसले पर केंद्र सरकार बैकफुट पर आ गई है। विपक्ष के भयंकर विरोध के बाद अब केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी को चिट्ठी लिखकर भर्ती विज्ञापन को रद्द करने का अनुरोध किया है। जानकारी के मुताबिक यह अनुरोध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आग्रह के बाद किया गया है।

मंत्री ने रद्द करने को कहा
कार्मिक मंत्रालय के मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी के अध्यक्ष को एक पत्र लिखकर इस भर्ती प्रक्रिया को तत्काल रद्द करने को कहा है। पत्र में उल्लेख किया गया है कि प्रधानमंत्री सामाजिक न्याय और संविधान के अनुसार आरक्षण के समर्थक हैं। डॉ. सिंह ने अपने पत्र में यूपीएससी अध्यक्ष से 17 अगस्त को जारी किए गए विज्ञापन को निरस्त करने का आग्रह किया है। 

अलग-अलग राय
सूत्रों का कहना है कि सरकार लेटरल एंट्री के माध्यम से होने वाली भर्तियों पर पुनर्विचार कर रही है। यह निर्णय आने वाले समय में सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला आरक्षण नीति को मजबूत करने और समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

लेटरल एंट्री क्या है?
लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है, जिसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव जैसे उच्च पदों पर नियुक्तियां की जाती हैं। यह अवधारणा पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान पेश की गई थी। 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसके पक्ष में सिफारिश की थी।

इस प्रक्रिया पर क्यों छिड़ा है विवाद?
लेटरल एंट्री योजना को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में शुरू किया गया था। 2018 में, सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों से आवेदन आमंत्रित किए। यह पहल पहली बार थी जब इस तरह के पदों के लिए दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को मौका दिया गया। हालांकि, इस योजना को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि यदि लेटरल एंट्री के माध्यम से अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी, तो इससे ओबीसी और एससी-एसटी वर्गों के लिए आरक्षण प्रभावित हो सकता है, जिससे इन वर्गों के लोगों को अधिकारियों के पदों पर पहुंचने का मौका कम हो सकता है।

सियासी घमासान के बाद ब्रेक
18 अगस्त को यूपीएससी ने विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक, और उप सचिव के 45 पदों पर विशेषज्ञों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया। इन पदों की नियुक्ति लेटरल एंट्री के माध्यम से की जानी थी। इस योजना को लेकर विपक्ष ने विरोध प्रदर्शन किया और इसे आरक्षण के अधिकारों को छीनने की व्यवस्था करार दिया। लेटरल एंट्री की इस प्रक्रिया के तहत निजी क्षेत्र के पेशेवरों को भी मंत्रालयों के प्रमुख पदों पर कार्य करने का अवसर मिलता है। लेकिन केंद्र सरकार के यू-टर्न के बाद ऐसा लगता है कि इस सियासी घमासान पर ब्रेक लगने वाला है।

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