इलाहाबाद हाईकोर्ट का ट्रिपल तलाक पर फैसला : धारा 482 के तहत कोर्ट को तथ्य की जांच का अधिकार नहीं, केस कार्यवाही रद्द करने से इंकार

UPT | Allahabad High Court

Jul 13, 2024 14:02

तलाक ट्रिपल तलाक के मान्य होने के लायक हैं, इस पर ट्रायल कोर्ट में साक्ष्यों के आधार पर निर्णय होगा। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दाखिल चार्जशीट...

Short Highlights
  • हाईकोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया
  • कोर्ट ने मुस्लिम महिला कानून की धारा 3/4 के तहत जारी सम्मन रद्द करने का विरोध किया 
Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि क्या तलाक ट्रिपल तलाक के मान्य होने के लायक हैं, इस पर ट्रायल कोर्ट में साक्ष्यों के आधार पर निर्णय होगा। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दाखिल चार्जशीट या केस कार्यवाही को रद्द नहीं करने का निर्णय लिया है। 

सम्मन को अवैध घोषित किया गया
इसी दौरान, कोर्ट ने मुस्लिम महिला कानून की धारा 3/4 के तहत जारी सम्मन रद्द करने का विरोध किया है। हालांकि, कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत एक विवादित मामले में कोर्ट को विचार करने का अधिकार दिया है, जो कि दूसरी शादी करने पर लागू होती है। इसलिए, इस धारा में जारी सम्मन को अवैध घोषित किया गया है।

याची के वकील ने दावा किया था कि इस मामले में ट्रिपल तलाक का कोई केस नहीं बनता, क्योंकि उसने तलाक के पूर्व समय में तीन नोटिस दिए हैं, जो कि तलाक-ए-बिद्दत नहीं हैं। इसी बारे में, कोर्ट ने धारा 198 के तहत जारी सम्मन को अवैध घोषित करते हुए याचिका की मांग स्वीकार की है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का संदर्भ दिया
इस फैसले में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी संदर्भ दिया है, जिसके अनुसार केस के तथ्यों की जांच के लिए कोर्ट को अधिकार नहीं होता है। इस तरह के मामलों में केवल असामान्य परिस्थितियों में ही केस कार्यवाही रद्द की जा सकती है, जहां प्रथमदृष्टया अपराध का संकेत नहीं होता।

क्या है धारा 482?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 उच्च न्यायालयों को विशेष अधिकार प्रदान करती है। इस धारा के तहत उच्च न्यायालय या किसी अन्य अदालत को अपने अधिकार क्षेत्र में कानूनी दायरे के भीतर निम्नलिखित कार्य करने की अनुमति होती है:
  • जांच और अधिकृत निर्णय : धारा 482 के तहत न्यायिक अधिकारी या न्यायिक अदालत अगर समझे कि किसी मामले में कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ है या फिर न्याय का उद्देश्य सुरक्षित नहीं हो पा रहा है, तो वे स्वयं संज्ञान में इस मामले की जांच कर सकते हैं। इसके पश्चात्, वे उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिए गए अधिकृत निर्णय को रद्द कर सकते हैं और उच्चतम न्यायालय में अनुशासनात्मक निर्णय ले सकते हैं।
  • अदालती कार्य की स्थगिति : यह धारा अदालत को किसी मामले की निर्णयात्मक प्रक्रिया को स्थगित करने की अनुमति देती है, यदि ऐसा मामला पहले से स्थित है कि इसे अधिकृत निर्णय लेने के लिए उच्चतम न्यायालय के समक्ष रखा जाना चाहिए।
  • कानूनी दायरे में सुधार : इस धारा के अंतर्गत उच्च न्यायालय अदालत को कानूनी दायरे में सुधार करने का अधिकार देती है, अगर वह समझे कि किसी मामले में अदालत ने कानूनी दायरे में विचार किया है और उसमें त्रुटि है या फिर उसमें कोई अधिकारिक गलती हुई है।

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