इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : आपराधिक मामलों में पासपोर्ट जब्ती अनिवार्य नहीं, 'हो सकता है' शब्द पर दिया जोर

UPT | Allahabad High Court

Jul 27, 2024 08:20

न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने पासपोर्ट अधिनियम में प्रयुक्त 'हो सकता है' शब्द पर विशेष ध्यान देते हुए कहा कि विधानमंडल ने इस शब्द का प्रयोग जानबूझकर...

Short Highlights
  • उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि  आपराधिक मामला लंबित होने पर पासपोर्ट जब्त करना अनिवार्य नहीं 
  • पासपोर्ट अधिनियम में प्रयुक्त 'हो सकता है' शब्द पर विशेष जोर दिया गया
Prayagraj News : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित होने पर उसका पासपोर्ट जब्त करना अनिवार्य नहीं है। न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने पासपोर्ट अधिनियम में प्रयुक्त 'हो सकता है' शब्द पर विशेष ध्यान देते हुए कहा कि विधानमंडल ने इस शब्द का प्रयोग जानबूझकर किया है। इसका तात्पर्य है कि पासपोर्ट अधिकारी को हर मामले में स्वविवेक से निर्णय लेना चाहिए, न कि स्वचालित रूप से पासपोर्ट जब्त कर लेना चाहिए।

इस मामले में आया फैसला
यह निर्णय मोहम्मद उमर नामक एक व्यक्ति की याचिका पर आया, जिसका पासपोर्ट उनकी पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए दहेज उत्पीड़न के मामले के आधार पर जब्त कर लिया गया था। उमर सऊदी अरब में कार्यरत थे और उनकी पत्नी फातिमा जहरा ने उनके विरुद्ध अम्बेडकर नगर के महिला थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी ने इस लंबित आपराधिक मामले के आधार पर उमर का पासपोर्ट जब्त कर लिया था।

पासपोर्ट जब्त करने का आदेश रद्द 
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि पासपोर्ट जब्त करने का निर्णय लेते समय संबंधित मामले के सभी तथ्यों पर विचार किया जाना चाहिए। इस मामले में, न्यायालय ने ध्यान दिया कि उमर के खिलाफ लंबित मामला वैवाहिक कलह से संबंधित था और उस पर उच्च न्यायालय द्वारा पहले ही रोक लगा दी गई थी। इसके अतिरिक्त, दोनों पक्षों के बीच सुलह की प्रक्रिया चल रही थी। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने पासपोर्ट जब्त करने के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने पासपोर्ट अधिकारी को निर्देश दिया कि वे छह सप्ताह के भीतर इस मामले में एक नया, विवेकपूर्ण आदेश पारित करें।

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