प्रयागराज महाकुंभ 2025 : 'पेशवाई' और 'शाही स्नान' के नाम बदलने की मांग तेज, बैठक में होगा निर्णय

UPT | श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण

Sep 13, 2024 13:01

महाकुंभ से पहले अखाड़ों के नगर प्रवेश के अवसर पर पेशवाई और प्रमुख स्नान पर्वों के दौरान अखाड़ों द्वारा किए जाने वाले शाही स्नान के नाम को बदलने की मांग जोर पकड़ रही है...

Short Highlights
  • महाकुंभ में 'पेशवाई' और 'शाही स्नान' के नाम बदलने की मांग तेज
  • 'दिव्य स्नान', 'अमृत स्नान', या 'राजसी स्नान' जैसे नाम रखने का प्रस्ताव
  • बैठक में लिया जाएगा निर्णय
Prayagraj News : संगम नगरी पर जनवरी 2025 में महाकुंभ का आयोजन होने वाला है। महाकुंभ से पहले अखाड़ों के नगर प्रवेश के अवसर पर पेशवाई और प्रमुख स्नान पर्वों के दौरान अखाड़ों द्वारा किए जाने वाले शाही स्नान के नाम को बदलने की मांग जोर पकड़ रही है। साधु संतों द्वारा पेशवाई और शाही स्नान जैसे मुग़लकालीन नामों को बदलने की अपील की जा रही है। प्रयागराज के कीडगंज में स्थित श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन में विभिन्न अखाड़ों के संत-महात्माओं ने एक बार फिर से पेशवाई और शाही स्नान के नाम बदलने की मांग उठाई। इस पर अंतिम निर्णय साधु संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा लिया जाएगा।
संत महंत गोपाल दास जी महाराज ने किया समर्थन बता दें कि पेशवाई और शाही स्नान के नाम बदलने की मांग पर निर्वाणी अनी अखाड़े के संत महंत गोपाल दास जी महाराज ने कहा है कि समय के साथ परिवर्तन आवश्यक है, न केवल व्यक्तियों के लिए बल्कि राष्ट्र के लिए भी। उन्होंने साधु-संतों की इस मांग का समर्थन किया कि पेशवाई और शाही स्नान के मुग़लकालीन नामों को बदलकर संस्कृत के शब्दों का उपयोग किया जाए।



इन शब्दों का दिया विकल्प
संत महंत गोपाल दास जी महाराज के अनुसार, ऐसे शब्दों का चयन होना चाहिए जो हमारी सनातन परंपरा से जुड़े हों और जिन्हें सुनकर गर्व महसूस होता हो। महंत गोपाल दास जी ने सुझाव दिया कि शाही स्नान के स्थान पर 'दिव्य स्नान', 'अमृत स्नान', या 'राजसी स्नान' जैसे नाम उपयुक्त हो सकते हैं। इसके साथ ही, कुंभ के पहले अखाड़ों के नगर प्रवेश की पेशवाई का नाम बदलकर 'छावनी प्रवेश' करने की मांग का भी उन्होंने समर्थन किया है।
बैठक में लिया जाएगा निर्णय दरअसल, कुंभ और महाकुंभ के आयोजन से पहले अखाड़ों के महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, महंत और श्री महंत तथा अन्य साधु संत बैंड-बाजे के साथ अखाड़े के ईष्ट देवता और ध्वज के साथ नगर प्रवेश करते हैं, जिसे पारंपरिक रूप से पेशवाई कहा जाता है। हालांकि, अब पेशवाई को 'छावनी प्रवेश' के रूप में संदर्भित किए जाने की मांग उठ रही है। महंत गोपाल दास जी महाराज ने बताया कि प्राचीन काल में जब दो राजाओं के बीच युद्ध होते थे, तब 'छावनी प्रवेश' की परंपरा होती थी। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर सभी अखाड़ों के पदाधिकारियों की एक बैठक जल्द ही आयोजित की जाएगी, जिसमें इस संबंध में एक उचित निर्णय लिया जाएगा।   अदालतों और सरकारी कामकाज में प्रचलित हैं उर्दू-फारसी नाम
इस मुद्दे पर श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुना पुरी महाराज का कहना है कि अखाड़े अत्यंत प्राचीन संस्थाएं हैं और इनमें कई परंपराएं मुग़ल काल से चली आ रही हैं। उन्होंने कहा कि शाही स्नान और पेशवाई के नाम बदलने की बात करें, तो उर्दू और फारसी शब्द अब अदालतों और सरकारी कामकाज में भी प्रचलित हैं। पुराने अखाड़ा दस्तावेज़ों में भी यही नाम दर्ज हैं। 

हालांकि, महंत यमुना पुरी का कहना है कि यदि इन नामों को बदलना है, तो हर स्तर पर संशोधन करना पड़ेगा। उन्होंने यह भी बताया कि कुंभ मेले के पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की कई बैठकें प्रस्तावित हैं, जिनमें इस मुद्दे पर विचार कर एक सर्वसम्मत निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि संसार में परिवर्तन अनिवार्य है और हिंदी हमारी मातृभाषा है, इसलिए हमें अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए।   सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना सभी अखाड़ों का दायित्व महाकुंभ के आयोजन से पहले अखाड़ों के दोनों गुटों के एकजुट होने की संभावना पर महंत यमुना पुरी ने कहा है कि सांस्कृतिक दृष्टि से सभी अखाड़े एकजुट हैं। सभी अखाड़े अपने-अपने निर्धारित समय पर स्नान संस्कार सम्पन्न करते हैं और शोभायात्राएं भी तय समय पर आयोजित की जाती हैं। उन्होंने बताया कि अखाड़ों के बीच किसी प्रकार का मतभेद नहीं है और सभी अखाड़े सनातन परंपरा का पालन करते हैं। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी सभी अखाड़ों की है और वे इस कार्य को सहेज कर निभा रहे हैं।

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